आटा की कीमतों में भिन्नता पर आटा मिलर्स फेडरेशन ने चिंता जताते हुए कहा है कि इससे बाजार में क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है. फेडरेशन ने कहा है कि आटा ग्राहकों को परिवहन लागत सब्सिडी का लाभ नहीं दिया जा रहा है. फेडरेशन ने कहा है कि इस तरह की भिन्नताओं से फूड सब्सिडी सिस्टम पर बोझ बढ़ता है. इसके अलावा इन भिन्नताओं के चलते मिल मालिकों को कटाई के समय गेहूं खरीदारी करने से रोकता है, जिससे बाजार की गतिशीलता बाधित होती है. फेडरेशन ने ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत मौजूदा समान मूल्य निर्धारण नीति की समीक्षा करने की अपील की है.
उत्तर भारतीय आटा मिलर्स फेडरेशन (NIFMF) के नेतृत्व में आटा मिलों के एक समूह ने पत्र के जरिए खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा से ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMS) के तहत मौजूदा समान मूल्य निर्धारण नीति की समीक्षा करने की अपील की गई है. कहा गया है कि कीमतों में भिन्नता के चलते बाजार की क्षमता प्रभावित हुई है और गैर सरकारी खरीद पर भी बुरा असर पड़ा है. उत्तर भारतीय आटा मिलर्स फेडरेशन (NIFMF) के अध्यक्ष संजय पुरी ने कहा कि वर्तमान में देशभर में ओएमएसएस के तहत एक समान गेहूं की कीमत के बावजूद गेहूं के आटा की कीमतें विभिन्न क्षेत्रों में काफी भिन्न होती हैं. यह विसंगति संकेत देती है कि परिवहन लागत सब्सिडी का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया जा रहा है.
फेडरेशन के अनुसार दिल्ली (उत्तर) में आटे की एक्स मिल कीमत 2,600 रुपये प्रति क्विंटल, हैदराबाद (दक्षिण) में 3,500 रुपये प्रति क्विंटल, कोलकाता (पूर्व) में 3,100 रुपये प्रति क्विंटल और मुंबई (पश्चिम) में 3,120 रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि, रिजर्व प्राइस यूआरएस के तहत 2,125 रुपये प्रति क्विंटल और एफएक्यू यानी उचित औसत गुणवत्ता के लिए 2,150 रुपये प्रति क्विंटल पर एक समान तय किया गया है. फेडरेशन ने कहा कि ऐसे में कीमतों में यह भिन्नता बाजार की क्षमता को प्रभावित कर रही है.
फेडरेशन की ओर से कहा गया है कि हम परंपरागत रूप से कटाई के समय किसानों से सीधे गेहूं खरीदते हैं और ऑफ सीजन के लिए सीमित स्टॉक रखते हैं. इसके अलाव हमारी वित्तीय और भंडारण सीमाओं के कारण हमारी निर्भरता भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पर बढ़ जाती है.कहा गया कि ओएमएसएस ने अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित करने और गेहूं और आटे की कीमतों को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन एफसीआई परंपरागत रूप से लुधियाना जैसे प्रमुख उत्पादक और खरीद स्थानों पर आधार मूल्य के साथ-साथ परिवहन और हैंडलिंग लागत के आधार पर नीलामी में गेहूं की कीमतें निर्धारित करता था. खरीदारों को तय डिपो पर डिलीवरी या अपने स्वयं के परिवहन की व्यवस्था करने का विकल्प था.
आटा मिलर्स फेडरेशन ने कहा कि हम पूरे भारत में एक समान मूल्य निर्धारण मॉडल में हालिया बदलाव के बारे में चिंतित है. हालांकि, मूल्य निर्धारण नियम प्राप्त करने के लिए डिजाइन की गई यह नीति अनजाने में हैंडलिंग और आकस्मिक खर्चों यानी लगभग 95 रुपये प्रति क्विंटल पर सब्सिडी की ओर ले जाती है. इसके अलावा माल ढुलाई लागत, जिससे आर्थिक लागत और नीलामी में नीलामी रिजर्व प्राइस के बीच का अंतर और बढ़ जाता है. इससे बाजार संतुलन पर बुरा असर पड़ता है. वहीं, गैर सरकारी खिलाड़ियों को सीधी खरीद से रोक देता है. इसके चलते किसानों, मिलिंग इंडस्ट्री और उपभोक्ता पर प्रतिकूल असर पड़ता है.
फेडरेशन ने कहा है कि इस तरह की भिन्नताओं से फूड सब्सिडी सिस्टम पर बोझ बढ़ता है. इसके अलावा इन भिन्नताओं के चलते मिल मालिकों को कटाई के समय खरीदारी करने से रोकता है और खरीद पर दबाव बढ़ाता है, जिससे बाजार की गतिशीलता बाधित होती है.
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