डायबिटीज एक खतरनाक बीमारी है जो दुनिया भर में काफी तेजी से बढ़ती जा रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक विश्व में 42.2 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. इसके साथ ही करीब 15 लाख लोगों की मौत हर साल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से डायबिटीज के कारण होती है. हर उम्र के लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं. डायबिटीज होने पर लोगों का ब्लड शुगर बढ़ जाता है और इससे शरीर के बाकी अंग प्रभावित होना शुरू हो जाते हैं. दवा इसका इलाज है, लेकिन जानकार कहते हैं कि लाइफस्टाइल और खानपान में बदलाव से भी डायबिटीज की बीमारी को ठीक किया जा सकता है. इसी से जुड़ी एक रिसर्च भी हाल ही में सामने आई है. इस रिसर्च का दावा है कि डायबिटीज की बीमारी को खत्म करने के लिए बस एक सब्जी ही काफी है.
ये बात जानकर आपको हैरानी हो सकती है कि आपकी किचन में रखी एक हरी सब्जी डायबिटीज का काम-तमाम कर सकती है.आइए जानते हैं कौन सी है वो सब्जी और कैसे देती है डायबिटीज से राहत.
एक शोध में पता चला है कि डायबिटीज के मरीजों के लिए बींस बेहद लाभकारी सब्जी होती है. इसके सेवन से ब्लड शुगर लेवल को काफी हद तक कम किया जा सकता है. इस रिसर्च को करने वाले शोधकर्ताओं का मानना है कि बींस को ब्लड शुगर कंट्रोल करने का सबसे सस्ता और कारगर तरीका माना जाता है. महज कुछ रुपयों की बींस आपके ब्लड शुगर को छूमंतर कर सकती है. सबसे बड़ी बात यह है कि बींस के सेवन से साइड इफेक्ट्स का खतरा भी काफी कम है. ऐसे में इसके सेवन का सही तरीका जान लेना चाहिए. वहीं डायबिटीज के लिए बींस को सुपर फूड के रूप में जाना जाता है.
ये भी पढ़ें:- Crop Damage: बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से सैकड़ों टन प्याज बर्बाद, लागत निकालना भी मुश्किल
अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन का मानना है कि डायबिटीज के मरीजों को बींस का सेवन अवश्य करना चाहिए. बींस में भरपूर मात्रा में प्रोटीन और फाइबर पाया जाता है. बींस को शोधकर्ताओं ने ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए सबसे सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला तरीका बताया है.
बींस को हेल्थ के लिए कई मायनों में काफी फायदेमंद माना जाता है. बींस का सेवन करने से डाइजेशन अच्छा रहता है. इसमें मौजूद फाइबर इसे पाचन के लिए भी बेहतरीन बनाता है. अगर आप बींस का रोजाना सेवन करेंगे तो कब्ज और बवासीर की समस्या में आपको आराम मिलेगा.
ये भी पढ़ें:-
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today