Water Crisis: देश के 151 जिले पानी की कमी से जूझ रहे, फसलों की फ्लड सिंचाई पर लगेगा ब्रेक 

Water Crisis: देश के 151 जिले पानी की कमी से जूझ रहे, फसलों की फ्लड सिंचाई पर लगेगा ब्रेक 

कुलपति ने कहा कि जल जैसे प्राकृतिक संसाधन के कृषि में सही इस्तेमाल करने के लिए कृषि योजना बनानी होगी. खरीफ में कम पानी में उगाई जाने वाली व बेहतर उत्पादन देने वाली किस्मों को अपनाकर जल संरक्षण करना होगा. बायोसैंसर जैसी आधुनिक तकनीक का जल संसाधनों में बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. 

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Water Crisis: देश के 151 जिले पानी की कमी से जूझ रहे, फसलों की फ्लड सिंचाई पर लगेगा ब्रेक कम पानी में बेहतर पैदावार देने वाली किस्मों का परीक्षण अधिक करना जरूरी.

जलवायु बदलावों का असर तेजी से भूजल स्तर पर भी गिरावट के रूप में दिखने लगा है. जबकि, अनियंत्रित तरीके से दोहन ने भूजल स्तर को नीचे जाने में निराशाजनक तरीके से मदद की है. कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि देश के 151 जिले पानी की कमी से जूझ रहे हैं. उन्होंने चिंता जताई है कि जल्द ही फसलों की सिंचाई के लिए वर्तमान में इस्तेमाल की जा रही फ्लड सिंचाई विधि को बंद करना पड़ेगा. वैज्ञानिकों ने वॉटर एफिसिएंट क्रॉप की बुवाई करने की सलाह किसानों को दी है. बताया गया हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में जरूरत से ज्यादा पानी जमीन से निकाला गया है, जो बेहद खतरनाक स्थिति की ओर ले जा रहा है. 

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में वॉटर एफिशिएंट क्रॉप कल्टीवार को लेकर उच्चस्तरीय समिति की बैठक कृषि वैज्ञानिकों ने सिंचाई के लिए पानी की घटती उपलब्धता और गिरते भूजल स्तर पर चिंता जताई है. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बीआर काम्बोज ने कहा कि जल संसाधनों का संरक्षण व सदुपयोग समय की जरूरत बन गई है. कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि जल संसाधनों के अधिक दोहन को रोकना, खरीफ मौसम में कम पानी में उगाये जानी वाली किस्मों की बुवाई करना होगा. इससे जुड़े शोध की समीक्षा करने के साथ ही अन्य संस्थानों के साथ रिसर्च को बढ़ावा देने पर जोर दिया. 

कुलपति ने कहा कि जल जैसे अमूल्य प्राकृतिक संसाधन के कृषि में सदुपयोग करने व उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप कृषि योजना बनाकर प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के महत्व पर गहनता से विचार करना होगा. उन्होंने बताया कि खरीफ के मौसम में कम पानी में उगाई जाने वाली व बेहतर उत्पादन देने वाली किस्मों को उगाने के लिए उन्नत बुवाई विधियां अपनाकर जल संरक्षण करना होगा. उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी के उज्जवल भविष्य के लिए जल संसाधनों का संरक्षण बहुत जरूरी है. बायोसैंसर जैसी आधुनिक तकनीक का जल संसाधनों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है. 

फसल बदलाव का सुझाव 

मक्का की फसल धान वाले क्षेत्रों में पानी बचाने के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकती है. मक्का का साईलेज 70-80 दिन में तैयार हो जाता व चारे की कमी के दिनों में पशुओं के लिए उपयोगी होता है. इसी तरह गेहूं वाले क्षेत्रों में राया की फसल उगा कर पानी की बचत की जा सकती है. राया के बाद छोटी अवधि की फसल जैसे मूंग उगाई जा सकती है जिससे मुनाफा बढने के साथ संसाधनों की बचत भी होगी.पद्मश्री डॉ बीएस ढिल्लों ने बताया कि खरीफ के मौसम में धान की कम पानी में उगाई जाने वाली व धान की सीधी बुवाई के लिए उपयुक्त किस्मों को अपनाना चाहिए. उन्होंने खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली अन्य फसलें जैसे मूंग, अरहर, बाजरा व कपास की भी कम पानी में बेहतर पैदावार देने वाली किस्मों को अपनाने की बात किसानों से कही है. 

CCS Haryana Agriculture University

जरूरत से ज्यादा निकाला जा रहा जमीन से पानी 

डॉ. सीएल आचार्य ने बताया कि भूमिगत जल संसाधनों का अधिक दोहन हो रहा है जिसके चलते पूरे देश में 151 जिले पानी की कमी से जूझ रहे हैं. साथ ही भूमिगत जल में पाये जाने वाले हानिकारक तत्व भी होते है. बीते साल हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में क्रमश: 8.69, 16.98 व 11.25 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत जल निकाला जा सकता था, जबकि 11.8, 27.8 व 16.74 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत जल निकाला गया, जो अनुमान से भी अत्यधिक था. 

फ्लड सिंचाई विधि बंद करनी होगी 

उन्होंने बताया कि आगे ऐसा समय भी आयेगा जब फ्लड सिंचाई बंद करनी होगी.फ्लड सिंचाई फसलों को पानी देने की एक विधि है जिसमें पानी को जमीन के ऊपर खेत में बहने दिया जाता है. उन्होंने कहा कि अधिक दक्षता वाले सिंचाई के तरीके जैसे टपका, फव्वारा सिंचाई, ड्रिल और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी तकनीकों को अपनाना होगा. डॉ. एसएस कुकल ने बताया कि कम पानी में बेहतर पैदावार देने वाली नई किस्मों का परीक्षण अधिक से अधिक स्थानों पर करना जरूरी है ताकि उनके नतीजे सत्यापित हो सकें. 

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