बीते कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन का असर खेती पर बड़े पैमाने पर देखने को मिला है. जलवायु परिवर्तन से कमाई और स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है. देश और दुनिया पर जलवायु परिवर्तन का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है. सेहत पर असर डालने के साथ ही तापमान में हो रही बढ़ोतरी से ग्लोबल इनकम में भी कमी आ सकती है. भारत में तो आय में कमी वैश्विक औसत से भी ज्यादा होने की आशंका एक स्टडी में जताई गई है.
भू-राजनीतिक समस्याओं के साथ ही महंगाई जैसी अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने वाली समस्याओं के बीच अब ग्लोबल इकॉनमी के सामने एक और चुनौती तेजी से बढ़ रही है. ये समस्या है जलवायु परिवर्तन की, जिसके बारे में जानकारी तो काफी पहले से मौजूद है लेकिन इससे निपटने के उपायों की स्पीड काफी सुस्त है. 'नेचर' मैगजीन में पब्लिश एक नई स्टडी के मुताबिक वायुमंडल में पहले से मौजूद ग्रीनहाउस गैसों और सामाजिक-आर्थिक जड़ता के चलते आने वाले 50 सालों में वैश्विक अर्थव्यवस्था की आय में औसतन 19 फीसदी की कमी आ सकती है.
नई स्टडी के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था की आय में कमी का असर वैसे तो सभी देशों में देखने को मिलेगा, लेकिन भारत में ये आंकड़ा 22 फीसदी होने की आशंका है. ये नुकसान उन उपायों की लागत से छह गुना ज्यादा है जो तापमान में बढ़ोतरी को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए ज़रूरी हैं. ये अनुमान तब है जबकि कार्बन उत्सर्जन में आज से ही भारी कटौती की जाएगी.
स्टडी में कहा गया है कि उत्तरी अमेरिका और यूरोप समेत ज्यादातर क्षेत्रों में आय में भारी कमी आने की आशंका है. लेकिन दक्षिण एशिया और अफ्रीका सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. इसकी वजह है कि जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादन, श्रम उत्पादकता या बुनियादी ढांचे जैसे आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण पहलुओं पर असर डालेगा. ऐसे में वैश्विक वार्षिक नुक़सान का अनुमान 2050 तक 38 खरब डॉलर है, जिसकी संभावित सीमा 19 से 59 खरब डॉलर के बीच मानी जा रही है.
ये नुकसान मुख्य तौर पर बढ़ते तापमान की वजह से होता है, लेकिन बारिश में बदलाव और तापमान में उतार-चढ़ाव से भी ये जुड़ा है. अगर तूफान या जंगल की आग जैसी दूसरी मौसम संबंधी बड़ी समस्याओं को भी इसमें शामिल कर लिया जाए, तो ये नुक़सान और भी बढ़ सकता है. आशंका है कि हालात कंट्रोल ना होने पर नुकसान का वैश्विक औसत साल 2100 तक 60 फीसदी तक हो सकता है. इसमें दावा किया गया है कि जलवायु की रक्षा करने पर किए जाने वाला खर्च इससे होने वाले नुकसान के मुकाबले काफी कम है.
इस स्टडी में जलवायु परिवर्तन के असर में हो रही असमानता पर भी फोकस किया गया है. स्टडी के मुताबिक तकरीबन हर जगह नुक़सान हो रहा है, लेकिन tropical क्षेत्रों में इसका सबसे ज्यादा असर होगा. भारत के भी कई हिस्सों में tropical क्षेत्रों जैसा ही वातावरण है. दरअसल, ये देश पहले से ही गर्म मौसम की मार सहते आ रहे हैं और अब तापमान बढ़ने से यहां सबसे ज्यादा नुकसान होगा.
स्टडी में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के लिए कम ज़िम्मेदार देशों को उच्च आय वाले देशों के मुकाबले 60 फीसदी अधिक, ज्यादा एमिशन करने वाले देशों के मुकाबले 40 परसेंट अधिक आय में कमी का सामना करना पड़ेगा. इसकी वजह है कि उनके पास जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए कम संसाधन हैं. इसमें सुझाव दिया गया है कि अपनी सुरक्षा के लिए और रकम बचाने के लिए रिन्यूबल एनर्जी सिस्टम तो तेजी से अपनाना चाहिए. पृथ्वी के तापमान को स्थिर करने के लिए तेल, गैस और कोयले का इस्तेमाल बंद करने की बात भी इसमें कही गई है. ( आदित्य के राणा)
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