"बिहार में आज भी भारत की ग्रामीण दुनिया की असल झलक देखने को मिलती है. यहां के ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती और मजदूरी रहा है. हालांकि, समय के साथ यह पारंपरिक पहचान धीरे-धीरे बदल रही है. साथ ही राज्य की बेटियां अब बेटों की तुलना में अपनी अलग पहचान बना रही हैं. ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है अरवल ज़िले की कोमल की, जिन्होंने पुनपुन नदी की लहरों से निकलकर हांगकांग के पोडियम तक का सफर तय किया है. कोमल एक साधारण किसान परिवार से हैं औऱ उनके पिता भी खेती-किसानी करते हैं.
इसके बावजूद कोमल ने खेल के मैदान को चुना और उसमें देश का नाम रोशन किया. कोमल ने ड्रैगन बोट रेस में कांस्य पदक जीतकर न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है. उनकी इस उड़ान में बिहार सरकार की ‘मेडल लाओ, नौकरी पाओ’ और ‘खेल सम्मान समारोह’ जैसी योजनाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिन्होंने उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुंचने का हौसला और सहारा दिया.
अरवल जिले के करपी प्रखंड के डीही गांव की रहने वाली कोमल चार बहनों और एक भाई में सबसे छोटी हैं. कोमल बताती हैं कि जब वह पांचवीं कक्षा में थीं, तब पहली बार कबड्डी की एक प्रतियोगिता में भाग लिया. उनके खेल कौशल से उनका भाई बहुत प्रभावित हुआ और उसने उन्हें खेलों की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. ड्रैगन बोट रेस में आने की अपनी यात्रा को याद करते हुए कोमल बताती हैं कि वे अक्सर पुनपुन नदी के किनारे बोटिंग किया करती थीं. इसी दौरान उनके पिता लालदेव सिंह ने साल 2018 में एक छोटी नाव खरीदी. यहीं से शुरू हुआ कोमल का वह सफर, जिसमें उन्होंने अब तक तीन स्वर्ण पदक जीतकर अपनी एक मजबूत राष्ट्रीय पहचान बना ली है.
कोमल को 2020 में बिहार ड्रैगन बोट एसोसिएशन ने मोतिहारी कैंप में बुलाया. यहां तीन महीने के प्रशिक्षण के बाद उनका राष्ट्रीय टीम के लिए चयन हुआ. उन्होंने नेशनल लेवल पर तीन गोल्ड मेडल जीते. वहीं, 2023 में थाइलैंड वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया, हालांकि वहां उन्हें पदक नहीं मिला. लेकिन हार मानने की बजाय कोमल ने गांव लौटकर पुनपुन नदी में फिर से अभ्यास शुरू किया. 2024 में उनका चयन एशियन ड्रैगन बोट चैंपियनशिप के लिए हुआ. इसके बाद चीन के हांगकांग में 500 मीटर और 200 मीटर रेस में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया.
खेती और मजदूरी के सहारे अपना परिवार चलाने वाले कोमल के पिता लालदेव सिंह कहते हैं, "यह सिर्फ मेरी बेटी की जीत नहीं, बल्कि हर उस बेटी की जीत है जो सीमित संसाधनों में बड़े सपने देखती है. अगर समय पर बिहार सरकार और जिला खेल विभाग का सहयोग नहीं मिलता, तो कोमल शायद इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती. वहीं, राज्य सरकार ने कोमल को तीन बार प्रोत्साहन राशि दी और सम्मानित किया. कोमल की मेहनत और लगन ने यह साबित कर दिया कि सच्ची लगन के आगे कोई भी अभाव मायने नहीं रखता.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today