गाय, भैंस और बकरी के दूध के बारे में तो अक्सर बात होती ही है, लेकिन ऊंटनी के दूध के बारे में कम लोग जानते हैं. आधुनिक विज्ञान की मदद से किसान दूध के लिए गाय के बदले ऊंट पाल सकते हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों सोनिया सांगवान और रमन सेठ के अनुसार औसतन एक ऊंटनी एक दिन में 2 से 3 लीटर दूध का उत्पादन कर सकती है. अच्छी देखभाल की जाए तो यह 4 से 5 लीटर तक उत्पादन कर सकती है. मानव और पशु अध्ययनों में पाया गया कि ऊंटनी का दूध मधुमेह, कैंसर, विभिन्न प्रकार के संक्रमण, भारी धातु विषाक्तता, कोलाइटिस और शराब से प्रेरित विषाक्तता से निपटने और लीवर के लिए फायदेमंद होता है.
ऊंटनी के दूध में अधिक चिपचिपाहट होती है. इसमें उच्च विटामिन 'सी' और वसा की मात्रा (2.9 से 5.5 प्रतिशत) होती है. घुमंतू लोगों द्वारा ऊंटनी के दूध का उपयोग सदियों से औषधीय रूप में किया जाता रहा है. यह दूध मानव शिशुओं के लिए मां के दूध के सबसे बेहतर विकल्पों में से एक है. ऊंटनी का दूध सामान्य गाय के दूध की तुलना में स्वाद में थोड़ा नमकीन होता है. वैज्ञानिकों ने इसके कई फायदे बताए हैं.
वैज्ञानिकों के अनुसार इसके दूध का उपयोग लीवर को स्वस्थ रखने में सहायक हो सकता है. लीवर कुछ खास एंजाइम को रक्त में डालता है. वायरस अटैक की वजह से लीवर डैमेज की स्थिति बनती है, तो इन एंजाइम का स्तर बढ़ जाता है. हैपिटाइटिस-सी के मरीजों में इसका दूध लीवर एंजाइम के बढ़े हुए स्तर को कम करने में मदद करता है, यह लीवर के स्वास्थ्य की दृष्टि से एक सकारात्मक संकेत है.
वहीं, दूसरी ओर ऊंटनी का दूध बढ़े हुए ग्लोब्यूलिन (रक्त में मौजूद एक प्रकार के प्रोटीन) के स्तर को कम कर सकता है. लीवर के रोग के दौरान कम होने वाले टोटल प्रोटीन, प्लेटलेट्स (एक प्रकार के रक्त सेल्स और एल्ब्यूमिन), लीवर द्वारा बनाए जाने वाले प्रोटीन के स्तर को बढ़ाने में भी यह मदद करता है.
इसके दूध में एंटी-डायरियल गुण होते हैं. बच्चों में रोटावायरस से दूषित खाना खाने के कारण दस्त लगने की स्थिति में इसका दूध लाभदायक हो सकता है. इसका दूध एंटी-रोटावायरस एंटीबॉडी से भरपूर होता है.
इसके दूध में रोग से लड़ने वाले इम्युनोग्लोबुलिन पाए जाते हैं. इन इम्युनोग्लोबुलिन की एलर्जी के लक्षणों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है. ऐसा दावा किया जाता है कि इसके दूध का सेवन कैंसर से बचाव कर सकता है. दरअसल इसके दूध का उपयोग ऑटोफैगी को बढ़ावा देकर आंत और स्तन कैंसर कोशिकाओं पर एंटीप्रोलिफेरेटिव प्रभाव (बढ़ती कोशिकाओं को रोकने का प्रभाव) डालता है. ऑटोफैगी सेल्स से जुड़ी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोशिकाएं स्वयं से अनावश्यक घटकों को हटाने का काम करती हैं.
ब्लड में कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर को हृदय रोग के लिए एक बड़ा जोखिम कारक माना जाता है. खमीरयुक्त इसके दूध का उपयोग हाइपोकोलेस्टेरोलेमिक (कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला) प्रभाव पैदा करता है. इसके दूध के बायोएक्टिव व पेप्टाइड्स और कोलेस्ट्रॉल के स्तर के बीच प्रतिक्रिया होती है, जिससे कोलेस्ट्रॉल कम होता है. ऊंटनी के दूध में ओरोटिक एसिड (न्यूक्लिक एसिड के चयापचय में एक मध्यवर्ती के रूप में काम करता है) होता है, जिसे चूहों और मनुष्य में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
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