बाजरा मोटे अनाजों में अहम स्थान रखता है. इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट की वजह से इसके इस्तेमाल को लेकर लोगों में जागरूकता आई है. बाजरा की खेती पूरी तरह से बारिश पर आधारित है. यह फसल बारिश की अनियमितता, देरी एवं अतिवृष्टि से प्रभावित होती है. इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखकर बाजरा की खेती करनी चाहिए. इसका उत्पादन बढ़ने की अपार संभावनाएं हैं. बाजरा की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है. उपलब्ध होने पर 20-22 टन गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद पहली जुताई के समय खेत में डालें. अच्छी बारिश होने के बाद 2-3 बार हैरो चलाकर खेत तैयार करें एवं खेत को समतल करें, जिससे बारिश के समय पानी का निकास अच्छी तरह से हो सके.
बाजरा की बुवाई जून से जुलाई में की जाती है. बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 15 जून से 15 जुलाई के बीच है. जून में अच्छी बारिश हो तो बुवाई कर देनी चाहिए. यदि देरी से या लगातार भारी बारिश हो, तो ऐसी स्थिति में बाजरा की सीधी बुवाई न करें. पौध तैयार कर मुख्य खेत में रोपित किया जा सकता है. बाजरा की फसल के लिए 4-5 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है. इसकी बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए. पंक्तियों में बुवाई से फसल को कम पानी की आवश्यकता होती है. पोषक तत्व भी सही मात्रा में पौधे को उपलब्ध होते हैं.
बुवाई में 45 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति की दूरी और 10-12 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी रखनी चाहिए. यही नहीं 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाई करें. इस प्रकार पौने दो लाख से दो लाख पौधे प्रति हेक्टेयर होने चाहिए.
बाजरा की संकर प्रजातियां पूसा 23, पूसा 415, पूसा 605, पूसा 322, एचएचबी 50. एचएचबी 67, एचएचडी 68, एचएचबी 117. एचएचबी इम्प्रूव्ड, आरएचडी 30, जीएचबी 318, नंदी 8, एलएलबीएच 104 प्रमुख हैं. अन्य प्रजातियों में पूसा कम्पोजिट 701, पूसा कम्पोजिट 1201, पूसा कम्पोजिट 266, पूसा कम्पोजिट 234 एवं पूसा कम्पोजिट 383 आदि हैं.
रासायनिक खादों का प्रयोग मिट्टी की जांच के बाद ही करना चाहिए. अनुमान के अनुसार बाजरा की संकर प्रजातियों के लिए 80-90 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस व 50 किलोग्राम पोटाश तथा संकुल प्रजातियों के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फॉस्फोरस व 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. सभी परिस्थितियों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा लगभग 3-4 सेंटीमीटर की गहराई पर डालनी चाहिए. नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा अंकुरण से 4-5 सप्ताह बाद खेत में बिखेरकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए.
ये भी पढ़ें: नासिक की किसान ललिता अपने बच्चों को इस वजह से खेती-किसानी से रखना चाहती हैं दूर
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today