2 June ki Roti: आखिर किस्मत वालों को ही मिलती है 2 जून की रोटी, जानें क्या हैं इसके मायने

2 June ki Roti: आखिर किस्मत वालों को ही मिलती है 2 जून की रोटी, जानें क्या हैं इसके मायने

2 जून ये कैलैंडर की एक तारीख है, जिसको लेकर एक कहावत भी प्रचलित है. 'किस्मत वालों को ही 2 जून की रोटी मिलती है' ज्यादातर लोग 2 जून को जून महीने से जोड़कर देखते हैं, लेकिन यह एक पुरानी अवधी कहावत है.

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2 June ki Roti: आखिर किस्मत वालों को ही मिलती है 2 जून की रोटी, जानें क्या हैं इसके मायनेदो जून की रोटी के मायने

दो जून कैलेंडर की एक तारीख है, लेक‍िन भारत में दो जून कई मायनों से प्रचल‍ित है. अक्सर चर्चाओं में दो जून का ज‍िक्र हो जाता है. असल में 2 जून को लेकर एक कहावत  प्रचलित है, ज‍िसमें 'किस्मत वालों को ही 2 जून की रोटी मिलती है' जैसी बातें कहीं जाती है. इस कहावत में ज्यादातर लोग 2 जून (2 june ki roti) को जून महीने से जोड़कर देखते हैं, लेकिन यह सच नहीं है. असल में ये एक पुरानी अवधी कहावत है, जिसका मतलब होता है तो वक्त के खाने से. 2 जून कहावत का प्रयोग सबसे पहले अवध क्षेत्र में हुआ, जिसके बाद पूरे देश में 2 जून की रोटी वाली कहावत फैल गई.  आज भी देश की एक बड़ी आबादी को 2 जून की रोटी नहीं नसीब हो पाती है क्योंकि इसके पीछे गरीबी मुख्य वजह है . 

क्या है 2 जून की रोटी का मतलब

2 जून की रोटी का मतलब दो वक्त की रोटी से है. जून शब्द अवधी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब वक्त से हैं. 2 जून का मतलब है सुबह-शाम की रोटी से. देश के हर व्यक्ति की यह ख्वाहिश होती है कि उसे और उसके परिवार को 2 जून की रोटी समय से मिल जाए. देश में सरकारें भी गरीबी हटाने और देश की बड़ी आबादी के लिए 2 जून की रोटी को उपलब्ध कराने के प्रयास में लगी हुई हैं फिर भी 19 करोड़ लोगों को 2 जून की रोटी उपलब्ध नहीं हो पाती है.

दो जून की रोटी के लिए महंगा है आटा

रोटी बनाने के लिए आटे की जरूरत होती है] लेकिन इन दिनों गेहूं की उपज के बाद भी आटे की महंगाई कम नहीं है. बाजार में 35 रुपये प्रति किलो तक आटा बिक रहा है . ऐसे में देश की मेहनतकश आबादी जो मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. उन्हें 2 जून की रोटी मिलना मुश्किल हो रहा है, जबकि सरकार मुक्त राशन योजना के तहत गरीब परिवारों को चावल, गेहूं उपलब्ध कराने का काम कर रही है, लेकिन आज भी शहरों में ऐसे परिवार हैं जिनके पास ना तो राशन कार्ड है और नहीं अपना घर. ऐसे में इन परिवारों को 2 जून की रोटी मिलना भी मुश्किल है.

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मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल है भोजन

जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में भोजन को शामिल किया गया है. यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स आर्टिकल 25 के अनुसार भोजन को मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल किया गया है फिर भी भारत में आजादी के 70 सालों के बाद भी पूरी आबादी को 2 जून का भोजन नसीब नहीं हो पा रहा है. देश के भीतर 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में 51.4% एनीमिया के शिकार हैं क्योंकि इन महिलाओं को 2 जून की रोटी सही समय से नहीं मिल पा रही है. 

क्या कहते हैं ये आंकड़ें

2017 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के एक आंकड़ें के अनुसार भारत में 19 करोड़ लोगों को दो वक्त का भोजन उपलब्ध नहीं होता है. देश में केंद्र सरकार के द्वारा 2020 से ही 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने का काम कर रही है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में देश के भीतर बड़ी आबादी गरीबी के चंगुल से बाहर निकली है. फिर भी भारत में अभी भी 30 करोड़ लोग गरीबी के दायरे में हैं. देश के बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य हैं, जहां आज भी गरीबों को 2 जून की रोटी नहीं नसीब हो रही है. भारत में कोरोना का सबसे ज्यादा असर गरीबी पर हुआ है. भारत की आबादी का 16.4 फीसद लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं जिनमें 4.2% लोग बेहद निर्धन हालत में है. 

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