मौजूदा समय में उर्वरकों के असंतुलित मात्रा में प्रयोग करने से हर दिन मिट्टी की उत्पादकता में कमी आ रही है. इसका सीधा असर फसल के उत्पादन पर पड़ रहा है. नतीजतन उपज बढ़ने की बजाय पिछले कुछ वर्षों से घटती चली जा रही है. मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा में कमी आने से यह गंभीर स्थिति बन रही है. ऑर्गेनिक कार्बन को पोषक तत्वों को इकट्ठी करने के रूप में जाना जाता है. ऑर्गेनिक कार्बन की कमी से मिट्टी की भौतिक, जैविक और रासायनिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं. मिट्टी की पोषकता में सुधार के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक नई पहल शुरू की है, जिसके तहत हरी खाद के रूप में पहचानी जाने वाली ढैंचा के बीज को सरकार खरीदेगी. इससे किसानों की कमाई भी बढ़ेगी.
हरी खाद के रूप में पहचानी जाने वाली फसल ढैंचा के बीज उत्पादन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग 8 हजार क्विंटल ढैंचा बीज ब्लॉक स्तरीय बिक्री केद्रों पर 50 प्रतिशत अनुदान पर वितरित किए हैं. जो किसान ढैंचा का बीज उत्पादन के लिए ढैंचा की खेती करना चाहते हैं, उन्हें 100 फीसदी अनुदान दिया गया है, जिससे वे बीज उत्पादन कर सकें और सरकार उनसे खरीदकर इसे बेच सके. उत्तर प्रदेश सरकार का राज्य बीज निगम विभाग किसानों का ढैंचा 4600 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदेगा. ढैंचा बिक्री के लिए किसानों को उत्तर प्रदेश बीज निगम में पंजीकरण करना होगा.
ढैंचा सस्बेनिया कुल के पौधों की श्रेणी में आता है. इसके पौधे के तने में सिम्बायोटिक जीवाणु होते हैं, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन का नाइट्रोजिनेज नामक एंजाइम की सहायता से मृदा में स्थिरीकरण करते हैं. ढैंचा को अगर हरी खाद के रूप में लगाते हैं तो 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 8-10 किलोग्राम फास्फोरस और 4-5 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ मिलती है. ढैंचा कार्बनिक अम्ल पैदा करता है, जब खेत खाली होते हैं तो हरी खाद के रूप में लगाते हैं और 40-50 दिन यानी फूल आने की अवस्था में हल या रोटावेटर चलाकर मृदा में मिला दिया जाता है. मिट्टी में मिलाने से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश प्राप्त होने के साथ-साथ खेत की मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण सुधार होता है और ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी बढ़ती है. इससे किसानों को कम रासायनिक खादों पर निर्भर रहना पड़ता है और अन्य रासायनिक उर्वरकों से मृदा के नुकसान से बचाया जा सकता है.
ढैंचा गहरी जड़ वाली फसल है और जल-जमाव वाली तथा लवणीय मिट्टी के लिए अत्यधिक उपयुक्त है. इसमें गांठें होती हैं और यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को सोख कर मिट्टी में स्थिर कर देती है. इसलिए इसे दोहरे उद्देश्य वाली फसल के रूप में जाना जाता है. यह एक आदर्श हरी खाद वाली फसल है, क्योंकि यह तेजी से बढ़ने वाली, रसीली, कम नमी की आवश्यकता वाली और आसानी से सड़ने वाली होती है. यह अधिकतम मात्रा में कार्बनिक पदार्थ और नाइट्रोजन जोड़ती है. इसे पशुओं के चारे के रूप में भी उगाया जाता है. सेस्बेनिया रोस्ट्रेल को बलीन, लवणीय-सोडियम मिट्टी में सुधार के लिए भी उगाया जाता है. ढैंचा को मरुस्थल और सीमांत भूमि में भी उगाया जा सकता है.
ढैंचा एक बहुत ही किफायती फसल है और इसे बहुत कम मात्रा में खाद की जरूरत होती है और इसे बिना खाद के भी उगाया जा सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, ढैंचा की 5 प्रजातियाँ हैं और उनमें से सेसबानिया रोस्ट्रेटा और सेसबानिया एक्यूलेटा हरी खाद और बीज के लिए बहुत लोकप्रिय हैं. ढैंचा की फसल लगाने के बाद 40 से 45 दिन बाद हरी खाद के लिए तैयार हो जाती है लगभग 150 से लेकर 175 क्विंटल प्रति एकड़ सूखा पदार्थ प्राप्त होता है.
गेहूं की कटाई के बाद लगभग मई-जून के महीने में खेत खाली रहते हैं. इस बीच इसमें कई तरह के नुक़सानदेह खरपतवार अपना अड्डा जमा लेते हैं, जो खेतों से पोषक तत्व चुरा लेते हैं. साथ ही खेती में लगातार असंतुलित खाद-फर्टीलाइजर देने के कारण भी खेतों का स्वास्थ्य काफी ख़राब हो जाता है.आगे आप जो भी फ़सल लगाएंगे, उसमें आपको मुश्किल होगी. लेकिन, इन तमाम समस्याओं से निपटने का एक आसान हल है ग्रीन मेन्यूरिंग यानी हरी खाद. अगर ढैंचा के लिए लगाते हैं तो यह बीज के लिए मात्र सौ दिन में तैयार हो जाता है.
ढैंचा की बीज की खेती के लिए बुआई का सर्वोत्तम समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक होता है. मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बनाने के लिए मानसून से पहले भूमि की अच्छी तरह जुताई करें. जुताई के बाद मिट्टी को खरपतवार और ठूंठ मुक्त कर लें. फिर मिट्टी को ठीक से समतल करें. खेत की तैयारी के समय 3-4 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह सड़ी हुई गाय का गोबर डालें. बीज उत्पादन के लिए 8 से 10 किलो बीज की जरूरत होती है. इसके लिए बीज से बीज की दूरी 45 से 20 सेंटीमीटर पर 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए. बुवाई के समय प्रति एकड़ 10 किलोग्राम फास्फोरस और 12 किलोग्राम नाइट्रोजन करने की सिफारिश की जाती है. बीज उत्पादन के लिए बोई गई फसल लगभग 100 दिन में तैयार हो जाती है, जिसे अक्टूबर के पहले सप्ताह में कटाई करके बीज निकालकर बेचा जा सकता है. एक एकड़ में औसतन 6 क्विंटल उत्पादन मिलता है, जिसे बेचकर लाभ कमाया जा सकता है.
ढैंचा किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है तो मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार कर कृषि उत्पादकता को भी बढ़ावा देने में मददगार है. इससे किसानों को कम रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर रहना पड़ेगा और मिट्टी के नुकसान से बचाव होगा.
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