Paddy: धान में कब दें नाइट्रोजन की दूसरी और अंतिम डोज, सिंचाई का क्या है नियम?

Paddy: धान में कब दें नाइट्रोजन की दूसरी और अंतिम डोज, सिंचाई का क्या है नियम?

नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग करते समय इस बात का ध्यान रखें कि धान के खेत में 2-3 सेमी से अधिक पानी नहीं होना चाहिए. इस महीने धान में झोंका यानी कि ब्लास्ट रोग का खतरा अधिक रहता है. यह रोग फफूंद से फैलता है. पौधों के सभी भाग इस रोग से प्रभावित होते हैं. असिंचित धान में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है.

Advertisement
Paddy: धान में कब दें नाइट्रोजन की दूसरी और अंतिम डोज, सिंचाई का क्या है नियम?धान की खेती

सितंबर महीना धान की खेती के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस महीने में धान के खेत में सिंचाई से लेकर खाद प्रबंधन तक का पूरा ध्यान रखना पड़ता है, वरना फसल पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. एक्सपर्ट बताते हैं कि धान में बालियां और फूल निकलने के समय खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए जरूरत के अनुसार सिंचाई करें.  नाइट्रोजन डोज के बारे में सलाह है कि इसकी दूसरी और अंतिम मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में 50-55 दिनों के बाद दें.

रिसर्च में यह बात सामने आई है कि धान में पहली सिंचाई के बाद खेत का पानी सूखने के 2 से 3 दिनों बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए. ऐसा करने से न सिर्फ पानी की जरूरत में कमी आती है, बल्कि उपज में भी बढ़ोतरी होती है. खाद की बात करें तो धान में नाइट्रोजन की दूसरी और अंतिम मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में 50-55 दिनों के बाद अर्थात बाली बनने की शुरुआती अवस्था में अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्मों के लिए 30 किलो और सुगंधित किस्मों के लिए 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.

कब, कितना दें खाद?

नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग करते समय इस बात का ध्यान रखें कि धान के खेत में 2-3 सेमी से अधिक पानी नहीं होना चाहिए. इस महीने धान में झोंका यानी कि ब्लास्ट रोग का खतरा अधिक रहता है. यह रोग फफूंद से फैलता है. पौधों के सभी भाग इस रोग से प्रभावित होते हैं. असिंचित धान में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है. इस रोग का प्रकोप होने पर पत्तियां झुलसकर सूख जाती हैं. गांठों पर भी भूरे रंग के धब्बे बनते हैं. इससे पूरे पौधे को नुकसान होता है.

ये भी पढ़ें: बाढ़ के बाद फसल और बागवानी में कैसे कम करें नुकसान? कृषि विशेषज्ञ ने सुझाए प्रभावी उपाय

झोंका रोग से धान के पौधों के तनों की गांठें पूरी तरह से या उसका कुछ भाग काला पड़ जाता है. कल्लों की गांठों पर कवक के आक्रमण से भूरे धब्बे बनते हैं. इससे गांठ के चारों ओर से घेर लेने की वजह से पौधे टूट जाते हैं. बालियों के निचले डंठल पर धूसर बादामी रंग के धब्बे बनते हैं. इस रोग का प्रकोप जुलाई-सितंबर में अधिक होता है. इस रोग के नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले बीजों को ट्राईसाइक्लेजोल 2.0 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए. धान के पौधे में दौजियां निकलने और फूल खिलने की अवस्था में जरूरत पड़ने पर कार्बेंडाजिम का छिड़काव करें.

ये भी पढ़ें: इस राज्य में किसानों को धान बेचने पर 500 रुपये क्विंटल मिलेगा बोनस, मुख्यमंत्री ने दिया आदेश

 

POST A COMMENT