गन्ने की उन्नत किस्म को अब नर्सरी में भी तैयार किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास विभाग के द्वारा महिलाओं के सहायता समूह को गन्ना बड चिप तैयार करने की ट्रेनिंग दी जा रही है जिसके चलते अब किसानों को उन्नत किस्म के गन्ने के बीज मिल रहे हैं. अमरोहा जनपद की ऐसी ही एक महिला कामिनी हैं जिन्होंने गन्ने की नर्सरी के द्वारा अपनी एक पहचान बनाई है. उन्होंने स्वयं सहायता समूह के जरिए उन्नत किस्म के गन्ने की किस्म की नर्सरी को तैयार किया है. वहीं अन्य महिलाओं को भी वह प्रशिक्षण दे रही हैं. अमरोहा ब्लॉक के गांव धनौरी मीर की रहने वाली कामिनी किसानी का काम करती हैं. आज गन्ने के बीजों की नर्सरी को तैयार करके वे खुद भी आत्मनिर्भर बनने की राह पर हैं. इसके साथ ही दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रही हैं.
अमरोहा ब्लॉक के धनौरी मीर गांव की रहने वाली कामिनी किसानी का काम करती हैं. ससुराल में गन्ने की फसल को प्रमुखता से उगाया जाता है. उन्नत किस्म के बीजों के अभाव के चलते फसल का उत्पादन प्रभावित होता है. वही बीमारी के चलते कभी-कभी नुकसान भी उठाना पड़ता है. 2 साल पहले उन्होंने गन्ने की नर्सरी को तैयार करने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया. गन्ने की बड चिप तैयार करके आज वह किसानों को सस्ती दरों पर उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध करा रही हैं. इसके साथ ही अपने स्वयं सहायता समूह के जरिए दूसरी महिलाओं को भी रोजगार देने का काम कर रही है.
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कामिनी देविका महिला स्वयं सहायता समूह का संचालन करती हैं. उनके समूह के द्वारा धामपुर शुगर मिल से सीओजे 11015, धनौरा शुगर मिल से सीओजे 0118 के अलावा सीओजे 13235 करने का बीज लेकर सिंगल बड तकनीक से नर्सरी तैयार करने का काम करती हैं. नर्सरी में उन्होंने सीओजे 0118 के पौधे को मार्च में बोया था जो आज 12 फीट से भी अधिक अधिक ऊंचाई का गन्ना तैयार खड़ा है. कामिनी बताती हैं कि इस बार उन्होंने हरियाणा के करनाल से गन्ने की किस्म सीओजे 17231 की बुकिंग कराई है. उन्हें उम्मीद है कि इस काम से सफलता मिली तो उनका मुनाफा और भी ज्यादा होगा.
गन्ने की बुवाई पहले पुरानी विधि से होती थी जिसमें तीन आंख वाली गुल्ली को खेतों में बोया जाता था. वहीं बड चिप विधि में एक एकड़ में 80 से 100 किलो गन्ना बीज की जरूरत है. बड के टेक्नोलॉजी में पहले गन्ने की नर्सरी को उगाया जाता है, फिर मशीन से गन्ने की बड यानी आंख निकालते हैं. इसके बाद बड को उपचारित करने के बाद प्लास्टिक के ट्रे के खानों में रखते हैं. ट्रे के खानों को वर्मी कंपोस्ट से भरा जाता है. इसके बाद बड की बुवाई के समय फव्वारे से हल्की सिंचाई करते हैं. जब नर्सरी में पौधा चार से पांच सप्ताह का हो जाता है तब इसे खेतों में रोपा जाता है.
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