खादों के लिहाज से अनाज की खेती दिनों दिन भारी पड़ती जा रही है. किसानों के माथे पर पारंपरिक फसलों की खेती खर्च का बोझ बढ़ा रही है. यही वजह है कि किसानों को धान, गेहूं जैसी फसल छोड़कर आधुनिक खेती की ओर बढ़ावा दिया जा रहा है. इस आधुनिक खेती में फल और सब्जियां सबसे प्रमुख हैं. इससे किसान कम खर्च में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. इन फसलों की खेती में खाद भी कम लगती है जिससे किसानों का खर्च बचेगा. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में अब उन किसानों की तादाद बढ़ती हुई दिख रही है जो प्रीमियम खादों का प्रयोग करते हुए फल और सब्जियों की खेती कर रहे हैं. इससे किसानों की कमाई बढ़ने के साथ ही खरीदारों को सेहतमंद फल और सब्जियां मिलेंगी.
एक्सपर्ट बताते हैं कि हाल के वर्षों में लोगों का डायट पैटर्न बदला है, लोग सेहतमंद खाने को लेकर जागरूक हुए हैं. इसमें लोग फल और सब्जियों को अधिक तवज्जो दे रहे हैं. तभी इसकी खेती के लिए किसान प्रीमियम खादों का प्रयोग कर रहे हैं. इस बारे में एक्सपर्ट कहते हैं कि आने वाले समय में खादों की मांग और जोर पकड़ेगी. ऐसे खादों को स्पेशलिटी खाद का नाम दिया गया है क्योंकि इसका प्रयोग खास किस्म की फसलों के लिए होता है.
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फसलों के लिए पोषक तत्व बनाने वाली मशहूर कंपनी यारा इंटरनेशनल के एमडी संजीव कंवर बताते हैं कि आधुनिक खेती के बढ़ते चलन और ड्रिप सिंचाई पर जोर दिए जाने से स्पेशलिटी खाद की मांग भी बढ़ रही है. यही वजह है कि 2012 में जिस एस्पेशलिटी खाद की खपत 20,000 टन हुआ करती थी, अभी वह बढ़कर तीन लाख टन पर पहुंच गई है.
स्पेशलिटी खादों की मांग देश में कितनी तेजी से बढ़ रही है, इसे समझने के लिए उसके ग्रोथ रेट को भी देख सकते हैं. ऐसी खादों की सालाना ग्रोथ रेट 15 से 20 परसेंट है जबकि यूरिया का बिजनेस दो से तीन परसेंट की दर से आगे बढ़ रहा है. साल 2018 में नॉर्वे की एक कंपनी ने टाटा केमिकल्स के यूपी के एक प्लांट को खरीदा गया. यह प्लांट बरबाला में है जिसका बिजनेस अब देश के 15 राज्यों में पसर चुका है. इस कंपनी ने अब तक 1,000 डिस्ट्रिब्यूटर बनाए हैं और इसके 65 वेयरहाउस हैं.
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यारा इंटरनेशनल के एमडी संजीव कंवर बताते हैं कि पिछले 50-60 साल में देस में एक किलो अनाज उपजाने के लिए खादों की खपत की मात्रा तेजी से बढ़ी है. 1960 के दशक में 12 किलो अनाज उगाने के लिए एक किलो एनपीके खाद की जरूरत होती थी. अब अनजा का उत्पादन घटकर पांच किलो पर आ गया है. यानी एक किलो एनपीके के खर्च से केवल पांच किलो अनाज ही उगाया जा रहा है. ऐसे में किसान जब तक खेती का पैटर्न नहीं बदलेंगे, पारंपरिक खेती के बजाय आधुनिक खेती की ओर नहीं बढ़ेंगे, तब तक इस तरह के खर्च को रोकना मुश्किल है. खादों का पैटर्न बदलने से ही खेती की उत्पादकता भी बढ़ेगी.
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