देश में यूरिया के उत्पादन में तेजी देखी जा रही है. उत्पादन में वृद्धि 25 फीसद से भी अधिक है. इसकी वजह है देश में दोबारा शुरू हुए चार यूरिया प्लांट्स. ये प्लांट कई साल से बंद पड़े थे, लेकिन मौजूदा सरकार ने फंड जारी कर इन प्लांटों को दोबारा शुरू किया है. ये चारों प्लांट सरकारी हैं जिनके नाम हैं-गोरखपुर, सिंदरी, बरौनी, और रामागुंडम. बंद पड़े इन चारों प्लांटों के दोबारा शुरू होने से इस साल यूरिया के उत्पादन में 25 फीसद तक वृद्धि हुई है. हालांकि उत्पादन तो बढ़ा है, लेकिन अभी बिक्री में उस हिसाब से तेजी नहीं देखी जा रही है. वजह ये है कि साल के शुरुआती महीनों में खेती के काम होते हैं. थोड़ी-बहुत अगर जरूरत होती है तो बाजार में यूरिया की उपलब्धता अच्छी बनी हुई है. इसलिए किसानों में यूरिया के लिए मारामारी नहीं देखी जा रही. जून से धान की रोपाई का सीजन शुरू होगा जिसके बाद यूरिया की मांग में तेजी देखी जा सकती है.
यूरिया के अलावा डाइअमोनियम फॉस्फेट (DAP) का उत्पादन भी बढ़ा है. पिछले साल की तुलना में इस वर्ष डीएपी का उत्पादन 10 फीसद तक बढ़ा है. देश में डीएपी की मात्रा बढ़ने के पीछे एक वजह ये भी है कि इसका आयात पहले से अधिक हुआ है. उर्वरक उद्योग से जुड़े एक विशेषज्ञ ने 'बिजनेसलाइन' से कहा, यूरिया और डीएपी दो प्रमुख खाद हैं जिन्हें किसान जून में धान की रोपाई से पहले अपने पास स्टॉक रखते हैं. इस साल यूरिया और डीएपी दोनों खादों का पर्याप्त स्टॉक है, इसलिए अभी खादों की सामान्य बिक्री चल रही है.
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विशेषज्ञों के मुताबिक देश में जब से नए भारत ब्रांड के तहत खादों की बिक्री शुरू की गई है, तब से खादों की स्थिति बेहतर हुई है. इसके अलावा सरकार ने खादों के लिए घरेलू स्तर पर फ्रेट सब्सिडी देने का नियम भी बनाया है जिससे खादों की बिक्री में किसी तरह की मारामारी नहीं देखी जा रही है. सरकार ने खाद कंपनियों से कहा है कि प्लांट के 500 किमी के दायरे में खाद बेचने पर अधिक ध्यान दिया जाए ताकि ढुलाई का खर्च बचे और सरकार की सब्सिडी का बोझ न बढ़े.
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एओपी खाद को लेकर किसानों में शुरू से चिंता बनी हुई है क्योंकि इसका दाम हमेशा से अधिक रहा है. इस बार भी दाम के मोर्चे पर कोई राहत मिलती नहीं दिखती. यूरिया और डीएपी की तुलना में एमओपी का रेट हमेशा ज्यादा रहता है और किसान भी इसकी मांग अधिक करते हैं. इस बार उम्मीद थी कि एमओपी का दाम कुछ गिरेगा, लेकिन अब यह संभव नहीं है क्योंकि सब्सिडी में कटोती की गई है. पिछले वर्ष की तुलना में सरकार ने खाद सब्सिडी में 27 परसेंट की कटौती की है जिससे एमओपी के दाम कम रहने की संभावना खत्म हो गई है.
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