लहसुन एक कंद वर्गीय फसल है. लहसुन जमीन के अंदर तैयार होता है. इसके कंद को उखाड़ कर बाजार में बेचा जाता है. यह एक तरह से औषधि के रूप में भी इस्तेमाल होता है और मसाला फसल तो है ही. लेकिन, लहसुन की खेती कैसे अच्छी होगी इसके लिए इसकी देखभाल और उसमें दी जाने वाली खाद भी काफी मायने रखती है. किसान इसकी अच्छी पैदावार लेने के लिए तरह-तरह के खादों और न्यूट्रिएंट्स का प्रयोग करते हैं. लेकिन कुछ ऐसी खाद भी हैं जो कंद वर्गीय फसलों में बड़े अच्छे रिजल्ट देती हैं. यह खाद कंद का साइज बढ़ाने के साथ-साथ यह कंद का वजन बढ़ाने में भी सहायता करती है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लहसुन की फसल में आप कंद का वजन और साइज बढ़ाने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट का प्रयोग कर सकते हैं. यह कंद वर्गीय फसलों के लिए एक बड़ा अच्छा उत्पाद है.
कैल्शियम नाइट्रेट द्वितीय पोषक तत्व में आता है. कैल्शियम नाइट्रेट आपको बाजार में कई प्रकार के मिलते हैं. कुछ बोरोनेट कैल्शियम नाइट्रेट होते हैं. जिनमें कैल्शियम के साथ बोरोन मिक्स होता है. जबकि कुछ में कैल्शियम के साथ-साथ कुछ और सूक्ष्म पोषक तत्व भी मिक्स होते हैं. पोषक तत्वों को तीन भागों में बांटा जाता है. प्राथमिक पोषक तत्व, द्वितीय पोषक तत्व और सूक्ष्म पोषक तत्व. प्राथमिक पोषक तत्व में हमारे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश आते हैं. यही खेती में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होते हैं. जबकि द्वितीय पोषक तत्व भी बहुत महत्व के होते हैं. जिनमें कैल्शियम, सल्फर और मैग्नीशियम तत्व आते हैं. सूक्ष्म पोषक तत्वों में हमारे अन्य जो भी पोषक तत्व हैं, जैसे- मॉलीब्लेडिनम, जिंक, आयरन, बोरोन और अन्य सभी तत्व पौधे के लिए जरूरी होते है.
कैल्शियम नाइट्रेट का प्रयोग लहसुन में कंद बनने के समय करना चाहिए. जब आपका कंद बनने लगे, उसे समय आप कैल्शियम नाइट्रेट का प्रयोग करें. यह अवस्था 75 से 80 दिन के लगभग लहसुन में आती है. 90 दिन के बाद लहसुन में आपको किसी भी प्रकार के कोई खाद प्रयोग करने का लाभ इतना नहीं मिलने वाला. इसलिए पूरा लाभ लेने के लिए समय पर खादों का प्रयोग करना चाहिए.
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लहसुन की बुवाई हेतु स्वस्थ एवं बडे़ आकार की शल्क कंदो (कलियों) का उपयोग किया जाता है. बीज 5-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. शल्ककंद के मध्य स्थित सीधी कलियों का उपयोग बुआई के लिए नहीं करना चाहिए. बुआई पूर्व कलियों को मैकोजेब+कार्बेंडिज़म 3 ग्राम दवा के सममिश्रण के घोल से उपचारित करना चाहिए.
गोबर की खाद, डीएपी एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि मे मिला देनी चाहिए. शेष यूरिया की मात्रा को खड़ी फसल में 30-40 दिन बाद छिड़काव के साथ देनी चाहिए. इससे उत्पादन अच्छा होगा. उत्पादन अच्छा होगा तो लाभ ज्यादा मिलेगा.
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