बढ़ती हुई जनसंख्या और आमदनी को ध्यान में रखते हुए उपज को बढ़ाना बहुत जरूरी है. वहीं किसानों को अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक का प्रयोग करना पड़ता है. नतीजतन, जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे हैं.
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार पिछले कुछ सालों से किसानों से टिकाऊ खेती करने की सिफारिश कर रही है. इसके अलावा, टिकाऊ खेती को ध्यान में रखते हुए केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से कई योजनाएं भी चलाई जा रही हैं.
किसानों को अगले साल मिलेंगे बीज
इसी क्रम में रसायनिक खादों का प्रयोग कम करने और गेहूं उत्पादन पर इसका प्रभाव न पड़ने के लिए हिसार स्थित हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और करनाल के गेहूं शोध निदेशालय के कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की तीन किस्में डीबीडब्ल्यू-332, डीबीडब्ल्यू-327 और डब्ल्यूएच 1270 ईजाद की हैं. कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि इन किस्मों से प्रति एकड़ 26 से 28 क्विंटल तक गेहूं का उत्पादन लिया जा सकता है. वहीं, हरियाणा बीज विकास निगम के अधिकारियों के अनुसार इन किस्मों के बीज अगले साल तक किसान को मिलने लगेंगे.
वापस लौटा दिया गया था चावल
ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा के किसानों ने रासायनिक खादों का इस्तेमाल करके गेहूं का रिकार्ड तोड़ उत्पादन तो किया है, लेकिन मिट्टी की उर्वरा शक्ति में लगातार गिरावट दर्ज की गई है. इतना ही नहीं, हरियाणा से विदेशों में भेजे गए चावल में रसायनों की मात्रा अधिक पाई गई थी, इसलिए इसे वापस लौटा दिया गया था.
वहीं, मध्य प्रदेश का गेहूं बाजार में धाक जमा चुका है. भले ही उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है, इसके बाद पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश हैं, लेकिन मौजूदा वक्त में मध्य प्रदेश भारत में गेहूं के सबसे बड़े निर्यातकों राज्यों में से एक है. राज्य में विशेष रूप से उगाई जाने वाली शरबती और कठिया (दुरुम) जैसी गेहूं की किस्मों की मांग पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी से बढ़ी है.
3 लाख क्विंटल बीज तैयार करेगा निगम
खबरों के मुताबिक, हरियाणा बीज विकास निगम लिमिटेड के मुख्य प्रबंधक सुनील कुमार ने बताया कि हरियाणा में लगभग 60 लाख एकड़ में गेहूं की खेती होती है. इसके लिए 25 लाख क्विंटल बीज की जरूरत पड़ती है. जिसमें से किसान 15 से 16 लाख क्विंटल बीज बाजारों से खरीदते हैं और बाकि 35 से 40% किसान खुद का बीज तैयार करके बुवाई करते हैं. निगम हर साल 2.50 से 2.75 लाख क्विंटल बीज की बिक्री करता है. वहीं, निगम ने इस बार 3 लाख क्विंटल बीज तैयार करने लक्ष्य रखा है.
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