Kharif Special: इस तरीके से कम खर्च पर खेतों की उर्वरक क्षमता बढ़ाएं क‍िसान

Kharif Special: इस तरीके से कम खर्च पर खेतों की उर्वरक क्षमता बढ़ाएं क‍िसान

Kharif Special: खेत को उपजाऊ बनाए रखना आधुनिक कृषि के सबसे बड़ी और कठिन चुनौतियों में से एक है. इसलिए, यह बहुत जरूरी है कि किसान हमेशा मिट्टी के सेहत के प्रति जागरूक रहें और खरीफ मौसम से पहले ही एकीकृत पोषण प्रबंधन (आईएनएम) तकनीकों के माध्यम से अपने खेतों की उर्वरता बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाएं.

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Kharif Special: इस तरीके से कम खर्च पर खेतों की उर्वरक क्षमता बढ़ाएं क‍िसान समेकित पोषक तत्व प्रबंधन से क‍िसान अपने खेतों को उपजाऊ बना सकते हैं. फोटो क‍िसान तक

Kharif Special: देश मे हरित क्रांति के बाद कृषि उपज में तो खूब बढ़ोतरी हुई, लेकिन अधि‍क उपज पाने की चाहत में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का भी जमकर इस्तेमाल हुआ. उसका दुष्परिणाम अब धीरे-धीरे दिखने लगा है. इसलिए मौजूदा समय में खेत को उपजाऊ बनाए रखना आधुनिक कृषि की सबसे बड़ी और कठिन चुनौती बना गया है. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि किसान हमेशा मिट्टी के सेहत के प्रति जागरूक रहें और खरीफ मौसम से पहले ही समेकित पोषक तत्व प्रबंधन यानी इंटीग्रेटेड न्यूट्रिशनल मैनेजमेंट (आईएनएम) तकनीकों के माध्यम से अपने खेतों की उर्वरता बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाएं. क‍िसान तक की खरीफ सीजन सीर‍ीज खरीफनामा की इस कड़ी में आज क‍िसानों के ल‍िए इंटीग्रेटेड न्यूट्रिशनल मैनेजमेंट से जुड़ी पूरी जानकारी प्रस्तुत है. 

कैसे करें मृदा स्वास्थ्य का प्रबंधन ?

कृषि विज्ञान केन्द्र गौतमबुद्ध नगर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. विपिन शर्मा ने बताया कि मृदा में जैविक, रासायनिक और भौतिक गुण होते हैं. इनमें से किसी भी एक गुण में बदलाव मृदा के मूलभूत स्वरूप में, उसके स्वभाव में बहुत बड़ा परिवर्तन कर देता है. अंजाम ये होता है कि मृदा की उर्वरता में खासी कमी देखने को मिलती है. उन्होंने कहा कि उत्तर भारत के कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां की भूमि को एक वक्त काफी उपजाऊ माना जाता था, लेकिन अब वो कम उत्पादक हो गई है. जैविक खादों के अपेक्षा रासायनिक उर्वरकों के ज्यादा उपयोग से मृदा में मौजूद लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में भारी कमी भी आई है, जो अनुपजाऊ मृदा का मुख्य कारण है. मृदा में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ, मिट्टी अच्छे उपजाऊपन होने सूचक होते हैं, लेकिन केमिकल खादों पर ज्यादा निर्भरता और प्राकृतिक खादों के कम प्रयोग से भी ज़मीन के सेहत पर बुरा असर पड़ा है, जिससे एक समय की उपजाऊ जमीन भी बाद में अनुपजाऊ की श्रेणी में आ गई है. 

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समेकित पोषक तत्व प्रबंधन

डॉ. विपिन शर्मा ने बताया कि समेकित पोषक तत्व प्रबंधन एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें पोषक तत्वों के प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कार्बनिक, जैविक और रासायनिक उर्वरक स्रोतों का समुचित और संतुलित समन्वित प्रयोग किया जाता है. इन तीनों पोषक तत्वों के स्रोतों को फसलों की जरूरत के मुताबिक एक खास अनुपात 1:2:2 के हिसाब से जैविक, कार्बनिक और रासायनिक खाद उपयोग की सलाह दी जाती है. प्राकृतिक कार्बनिक खाद में से पौधों को पोषक तत्व के साथ साथ मृदा में कार्बन भी उपलब्ध होता है, जो सूक्ष्म जीवों के लिए ऊर्जा का एक अहम स्रोत है. इसके कारण मृदा जीवंत रहती है और सूक्ष्म जीवों के लिए एक अनुकूल आश्रय बनती है.

जैविक खाद व हरी खाद का अधिक प्रयोग करें

कृषि विशेषज्ञोंं के अनुसार खेत को उपजाऊ बनाने के लिए समेकित पोषक तत्व प्रंबधन तहत खेत में कुल पोषक तत्वों की आपूर्ति जैविक खाद, हरी खाद, फसलें अवशेष और बायोफर्टिलाइजर के द्वारा 50 से 75 फीसदी तक की पूर्ति की जानी चाहिए. इससे खेत की उर्वरता बढ़ती है और फसलों से बेहतर पैदावार मिलती है. समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के लिए सबसे पहले मिट्टी परीक्षण करना चाहिए और मिट्टी जांच के आधार पर ही उर्वरकों और जैविक खादों का प्रयोग करें.

जैविक खाद में कम्पोस्ट, गोबर खाद, केंचुआ खाद को जुताई करके गर्मी में खेतों में मिला देना चाहिए और हरी खाद के लिए  सनई, ढैंचा, लोबिया, मूंग और ग्वार हरी खाद के लिए अच्छी फसलें हैं,जिसकी बुवाई इस समय खाली खेतों में करनी चाहिए. इसके अलावा फसल अवशेष कम्पोस्ट और अजोला का इस्तेमाल करना चाहिए . 

कई फसलों के लिए जैविक उर्वरक उपलब्ध हैं

डॉ. विपिन शर्मा के ने बताया कि  केमिकल  खाद और कम्पोस्ट खाद के आलावा प्रकृति में मिलने मिलने वाले जीवाणुओं को पहचान कर उनसे कई तरह के पर्यावरण को लाभ पहुचाने वाले उर्वरक तैयार किए गए हैं, जिन्हें जैव उर्वरक यानी बायोफर्टिलाइजर कहते हैं. इन जैविक उर्वरकों से प्राकृतिक तरीके से पौधों को जरूरी पोषक तत्व दिया जाता हैं, अलग- अलग फसलों के लिए बीज उपचार और मृदा उपचार के जरिए अलग-अलग बायोफर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे नाइट्रोजन के लिए दलहनी फसलों में राईजोबियमकल्चर और खाद्यान्न फसलों को एज़ोटोबैक्टर, एज़ोस्पाइरिलम, एसीटोबैक्टर का इस्तेमाल किया जाता है. इसके आलावा धान की फसल में नाइट्रोजन देने के लिए नील हरि‍त शैवाल का इस्तेमाल किया जाता है.

फसलों को फॉस्फोरस मिल सके, उसके लिए एसपर्जिलस, पैनिसिलियम, सयूडोमोनॉस, बैसिलस जैसे जीवाणु खाद का इस्तेमाल किया जाता है, जो जमीन में फास्फोरस की उपल्बधता बढ़ाते है. इसके आलावा पोटाश और लोहा तत्व फसलों को मिले, इसके लिए बैस्लिस, फ्रैच्युरिया, एसीटोबैक्टर का इस्तेमाल किया जाता है.

आईएनएम से उपज और उर्वरता में बढ़ोतरी  

बायो फार्टिलाइजर रासायनिक खाद से बेहतर और सस्ता होता है. साथ ही यह मिट्टी की प्राकृतिक गुणवत्ता को भी बनाए रखते हैं. रासायनिक उर्वरक आज भी पोधों के लिए पोषण के प्रमुख स्रोत हैं. बढ़ती आबादी को देखते हुए, पोधों के पोषण के लिए इनका कोई दूसरा संभावित विकल्प भी निकट भविष्य में नहीं दिखता. इसलिए बंपर उत्पादन के साथ साथ पोषक तत्वों की ज़रूरत पूरा करने के लिए रासायनिक खादों का इस्तेमाल करना ज़रूरी हो गया है. पौधों के लिए समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के पीछे मूल उद्देश्य ये है कि खेत और बाहरी स्रोतों से मिलने वाले कार्बनिक पदार्थों का यथासंभव उपयोग करना चाहिए. मृदा में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढाने के लिए जैविक खाद, हरी खाद और जैविक उर्वरकों किया जाए, जिससे रासायनिक खादों पर निर्भरता कम की जा सके. इसके साथ फसल के मांग के अनुसार सही समय पर पोषक तत्वों की सही मात्रा देना चाहिए. खेती की लागत में कमी लाना जिससे फसल उत्पादन ज्यादा लाभकारी साबित हो सके.

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