प्याज भारत की प्रमुख सब्जी फसलों में से एक है. भारत दुनिया का नंबर एक प्याज उत्पादक देश है. भले ही पिछले कुछ वर्षों में उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है, लेकिन अन्य देशों की तुलना में भारत में प्याज की औसत उत्पादकता बहुत कम यानी 16-18 टन प्रति हेक्टेयर ही है. प्याज के रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद, प्रति हेक्टेयर कम उत्पादकता के कारण उत्पादन लागत में वृद्धि हुई है. उत्पादकता बढ़ाने के लिए अच्छी किस्मों और शुद्ध बीजों की आवश्यकता होती है. खराब गुणवत्ता वाले बीजों से मार्केटिंग और एक्सपोर्ट योग्य उपज कम होती है. जिससे किसानों को अच्छा फायदा नहीं मिलता. इसलिए अच्छे फायदे के लिए अच्छी किस्म के बीजों की बुवाई बहुत जरूरी है.
प्याज की खेती में सबसे बड़ी बाधा किसानों द्वारा उपयोग की जाने वाली पारंपरिक किस्मों और बीज उत्पादन नियमों का पालन किए बिना बीजों की खेती करना है. किसी भी फसल की उपज बढ़ाने के लिए पारंपरिक और कम उपज वाली किस्मों के बजाय अनुशंसित उन्नत किस्मों को शामिल करना महत्वपूर्ण है. एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्याज लगाने के लिए 7 से 8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. इस गणना के अनुसार, देश में 16.20 लाख हेक्टेयर प्याज की खेती के लिए लगभग 11500 टन बीज की आवश्यकता होती है.
मौसम और रंग के आधार पर प्याज की कई किस्में होती हैं. प्याज और लहसुन अनुसंधान निदेशालय ने भीमा डार्क रेड, भीमा रेड, भीमा राज, भीमा सुपर, भीमा शक्ति, भीमा किरण, भीमा लाइट रेड, भीमा शुभ्रा, भीमा श्वेता और भीमा सफेद नाम से प्याज की दस किस्में विकसित की हैं. बीज उत्पादन के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले प्याज का चयन आवश्यक है.
ये भी पढ़ें: Onion Price: किसान ने 443 किलो प्याज बेचा, 565 रुपये घर से लगाने पड़े, निर्यात बंदी ने किया बेहाल
बीज उत्पादन की दृष्टि से प्याज की फसल तापमान के प्रति बहुत संवेदनशील होती है. यदि परागण अवधि के दौरान तापमान 35°C से ऊपर बढ़ जाता है, तो मधुमक्खियां कम सक्रिय होंगी. बीज उत्पादन के लिए तापमान के अलावा सूर्य का प्रकाश भी आवश्यक है. बादल छाए रहने या बारिश होने से बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है. साफ़ धूप और शुष्क मौसम फल लगने के लिए अनुकूल होते हैं. मध्यम से भारी मिट्टी में प्याज के बीज का उत्पादन अच्छा होता है. मिट्टी अच्छी जल निकास वाली होनी चाहिए. रेतीली या लवणीय मिट्टी में फसलें अच्छी तरह से विकसित नहीं होती हैं. साथ ही बीज उत्पादन हल्की या दोमट मिट्टी में नहीं करना चाहिए. ऐसी मिट्टी में फूलों की डंडियां और बीज कम पैदा होते हैं. इसलिए प्याज को अच्छी जल निकासी वाली मध्यम से भारी मिट्टी में उगाना फायदेमंद होता है.
रबी मौसम की किस्मों के पौधे नवंबर, दिसंबर और जनवरी के मध्य तक लगाए जाते हैं. अप्रैल-मई माह में प्याज को निकाल कर सुखा लिया जाता है और चाली में भर दिया जाता है. अक्टूबर माह में चाली से प्याज तोड़कर बीज उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है. चूंकि प्याज को लगभग 5 से 6 महीने तक पर्याप्त आराम मिलता है, फूल के डंठल बड़ी संख्या में निकलते हैं और बीज का उत्पादन खरीफ किस्मों की तुलना में अधिक होता है.
मधुमक्खियां पराग इकट्ठा करने के लिए एक फूल से दूसरे फूल या फूलों के समूह पर जाती हैं. इस प्रक्रिया में, परागकण अपने पैरों से चिपक जाते हैं और इस तरह दूसरे फूल को परागित करते हैं, जिसे क्रॉस-परागण कहा जाता है. यदि बीजोत्पादन के लिए डेढ़ किलोमीटर के अंदर दो प्रजातियां लगाई जाती हैं तो पर-परागण के कारण किस्मों की शुद्धता नहीं रह पाएगी. इससे बीज में मिलावट होती है. उन किस्मों से किसानों के लिए आवश्यक एवं महत्वपूर्ण गुण कम हो जाते हैं. किस्मों की शुद्धता बनाए रखने के लिए दो किस्मों के बीच कम से कम डेढ़ किमी की दूरी रखें.
ये भी पढ़ें: Turmeric Cultivation: हल्दी की फसल के लिए जानलेवा है थ्रिप्स कीट, किसान ऐसे करें बचाव
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today