प्याज एक अहम नगदी फसल है, जो भारत के अधिकांश हिस्सों में उगाई जाती है. हालांकि, प्याज को तीनों सीजन में उगाया जा सकता है, उत्तर भारत के अधिकतर किसान रबी सीजन में इसे उगाते हैं. इस समय प्याज की फसल बढ़वार की अवस्था में होती है और इसी दौरान पर्पल ब्लॉच रोग (Alternaria porri) फसल के लिए एक गंभीर चुनौती बन जाता है. यह रोग प्याज के पत्तियों और तनों पर प्रभाव डालता है, जिससे पौधों का विकास रुक जाता है और फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यदि समय रहते इसके नियंत्रण के उपाय नहीं अपनाए जाते, तो यह रोग फसल को भारी नुकसान पहुँचा सकता है.
डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी पूसा- समस्तीपुर, बिहार डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी के हेड ड़ॉ एस. के सिंह ने बताया कि प्याज में पर्पल ब्लॉच रोग का प्रारंभिक लक्षण प्याज की पत्तियों पर छोटे, पानी से भरे हल्के पीले धब्बों के रूप में दिखाई देता है. जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, ये धब्बे भूरे या बैंगनी रंग में बदल जाते हैं और चारों ओर पीला घेरा बन जाता है. गंभीर संक्रमण की स्थिति में पत्तियाँ पूरी तरह से सूखकर झुलसने लगती हैं, और तने भी प्रभावित हो सकते हैं, जिससे पौधे का समग्र विकास रुक जाता है.
जब पत्तियां समय से पहले सूखने लगती हैं तो बल्ब का विकास रुक जाता है जिससे प्याज की उपज में कमी आती है और फसल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. पर्पल ब्लॉच रोग का फैलाव मुख्य रूप से हवा, संक्रमित पौधों के अवशेष और अधिक नमी के कारण होता है. अधिक नमी, बारिश या अत्यधिक सिंचाई की स्थितियों में यह रोग तेजी से फैलता है. यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में पाया जाता है, जहां नमी की अधिकता होती है.
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डॉ. एस.के सिंह ने बताया कि पर्पल ब्लॉच रोग के नियंत्रण के लिए जैविक तरीके अपनाने में ट्राइकोडर्मा का उपयोग प्रभावी हो सकता है. यह पौधों के रोगजनकों पर नियंत्रण पाने में सहायक है और खेत में जैविक नियंत्रण के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है या 5% निमोल का छिड़काव करने से भी इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त, जैविक खाद का उपयोग करने से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जो पर्पल ब्लॉच रोग से बचाव में मदद करता है.
प्याज के पर्पल ब्लॉच रोग को केमिकल दवाओं से नियंत्रण के लिए की प्रारंभिक अवस्था में मैनकोजेब 75 WP का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है या इसके अतिरिक्त, प्रोपिकोनाज़ोल 25 EC का 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है, या फिर क्लोरोथैलोनिल ( का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है. इन केमिकल दवाओं का छिड़काव फसल पर 10-15 दिन के अंतराल पर दो बार करना चाहिए ताकि रोग पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित किया जा सके.
डॉ. एस.के सिंह ने किसानों को सुझाव दिया कि ड्रिप सिंचाई का उपयोग सुबह के समय करें, जिससे पानी का अधिक जमाव न हो और पत्तियों पर नमी न बने. ओवरहेड सिंचाई से बचें, क्योंकि इससे पानी पत्तियों पर गिरता है, जिससे नमी बढ़ती है और रोग का प्रसार होता है.
बुवाई से पहले बीजों को थायरम या कैप्टन (2-3 ग्राम/किलो बीज) से उपचारित करें ताकि बीज से संबंधित रोगजनकों से बचाव हो सके.फसल के 30-35 दिन बाद, रोग के नियंत्रण के लिए फफूंदनाशकों का छिड़काव करें.खेत में पानी का जमाव न होने दें, क्योंकि अत्यधिक जल जमाव से रोग फैलने की संभावना बढ़ जाती है.
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का संतुलित मात्रा में उपयोग करें, क्योंकि नाइट्रोजन की अधिकता से रोग के प्रकोप में वृद्धि हो सकती है. प्याज को अन्य फसलों के साथ चक्रीय रूप से उगाने से मिट्टी में रोगजनकों की संख्या कम हो सकती है और रोग का प्रसार भी रुक सकता है. इन उपायों को अपनाकर पर्पल ब्लॉच रोग की रोकथाम की जा सकती है और प्याज की फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है.
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