देश के कुछ इलाकों में डीएपी (DAP) खाद की किल्लत है. इसकी खबरें लगातार सामने आ रही हैं. हालांकि खाद की इस किल्लत का असर देश में सरसों के उत्पादन पर देखने को नहीं मिलेगा. देश के प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) एक प्रमुख उर्वरक है. किसान डीएपी का इस्तेमाल कर सरसों का अधिक उत्पादन लेते हैं. इन राज्यों में अभी रबी सीजन के सरसों की खेती चल रही है. एक्सपर्ट का मानना है कि इन क्षेत्रों में डीएपी खाद की भले कमी हो, लेकिन सरसों की उपज पर इसका कोई असर शायद ही देखने को मिले.
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) में डायरेक्टोरेट ऑफ रेपसीड मस्टर्ड रिसर्च (DRMK) के निदेशक रहे धीरज सिंह ने 'बिजनेसलाइन' से कहा, किसानों ने सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) खाद के लिए आवेदन दिया है. सरसों की खेती के लिए यह काफी है. सरसों बोने से पहले अगर अगर डीएपी न भी मिले तो इससे काम चल सकता है. दरअसल एसएसपी तीन खादों का मिश्रण है जिसका स्थान सबसे प्रचलित फॉस्फेटिक उर्वरक डीएपी के बाद आता है. एसएसपी में तीन तरह के खाद फॉस्फोरस, सल्फर और कैल्शियम होते हैं. इसके अलावा एसएसपी में कई माइक्रो न्यूट्रियंट भी होते हैं. एसएसपी के साथ अच्छी बात ये है कि इसका उत्पादन देश में बड़े पैमाने पर होता है और शॉर्ट नोटिस पर भी किसानों को इसे मुहैया करा दिया जाता है. तिलहन की खेती करने वाले किसान एसएसपी को प्राथमिकता देते हैं.
ऐसी सूरत में अगर किसानों को डीएपी खाद की कमी भी हो जाए, तो वे उसकी भरपाई एसएसपी खाद से कर सकते हैं. एसएसपी खाद भरपूर मात्रा में है, लिहाजा सरसों की खेती वाले क्षेत्रों में डीएपी की कमी का कोई बड़ा असर देखने को नहीं मिलेगा. धीरज सिंह 'बिजनेसलाइन' से कहते हैं, अभी तक मौसम उपयुक्त चल रहा है और सितंबर महीने में बोई गई सरसों की फसल में बढ़वार संतोषजनक है. लेकिन उपज को बाद में कितना दाम मिलेगा, ये थोड़ा चिंता का विषय हो सकता है. फरवरी-मार्च में कटनी के बाद सरसों की उपज मंडियों में आना शुरू होगी, उस वक्त सरसों के क्या दाम होंगे, इस पर सोचना होगा.
कुछ इसी तरह की बात एग्रोटेक इंडिया के को-फाउंडर अखिलेश जैन कहते हैं. जैन के मुताबिक, अभी तक ऐसा कुछ देखने में नहीं आया है जो सरसों के उत्पादन पर असर डाल सकता है. इस साल सरसों की उपज बेहतर रहने की संभावना है अगर अगले कुछ महीनों में मौसम खराब न हो और ओले गिरने जैसी घटनाएं न हों. कृषि मंत्रालय की ओर से जारी एक आंकड़ा बताता है कि इस साल सरसों के रकबे में 14 फीसद की वृद्धि देखी जा रही है. इस बार सरसों की खेती 70.89 लाख हेक्टेयर में की गई है जबकि पिछले साल इसकी खेती 61.96 लाख हेक्टेयर थी.
सरसों के इस रकबे में हरियाणा शामिल नहीं है जहां सामान्य तौर पर हर साल 6-7 लाख हेक्टेयर में सरसों की खेती होती है. हरियाणा को शामिल कर लें तो इस बार सरसों की खेती बड़े पैमाने पर देखने को मिल रही है. राजस्थान में सबसे अधिक सरसों की खेती होती है जहां इस बार 9.6 परसेंट अधिक खेती हुई है. यहां रकबा 37.16 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है. मध्य प्रदेश में 24 परसेंट और यूपी में 1.2 परसेंट अधिक खेती की गई है. अभी राज्यों के बीच सरसों के उत्पादन में भारी अंतर देखा जा रहा है जिसे सरकार पाटना चाह रही है. सरसों के उत्पादन में राज्यों के बीच 27 परसेंट का अंतर है जिसे 2025-26 तक कम कर 15 परसेंट पर लाना है. अंतर को पाटने के लिए राज्यों में सरसों की खेती बढ़ानी होगी जिस पर सरकार ध्यान दे रही है.
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