भारत को उर्वरक के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार मिशन मोड में काम करते हुए दिख रही है. इन प्रयासों का उद्देश्य उर्वरक की विदेशी निर्भरता को कम करना और घरेलू उत्पादन बढ़ाना है. इसी कड़ी में केंद्र सरकार देश में सरकारी स्वामित्व वाली उर्वरक कंपनियों (PSU) को बेचने की तैयारी में है. अंग्रेजी अखबार द मिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में दो अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि केंद्र सरकार आठ प्रमुख उर्वरक सार्वजनिक क्षेत्र की यूनिट्स (PSU) को चरणबद्ध तरीके से बेचने की तैयारी में है. इसके अलावा, कुछ बंद पड़ी यूनिट्स को पुनर्जीवित करके बिक्री के लिए तैयार किया जा सकता है.
बेशक, उर्वरक आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए इस क्षेत्र में निजी कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़ाने की योजना सही हो, लेकिन विशेषज्ञ इसको लेकर चिंतित हैं. इस मामले में सहकारिता सेक्टर के बड़े दिग्गज और पूर्व सांसद दिलीप भाई संघाणी ने चिंता जताई है.
कांउसिल फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट के अध्यक्ष दिलीप भाई संघाणी ने किसान तक से विशेष बातचीत में कहा कि उर्वरक PSU यूनिट्स को बेचने के मामले में सरकार को जल्दीबाजी से बचना चाहिए. इस क्षेत्र में निजी कंपनियों को बढ़ावा देने से किसानों का नुकसान बढ़ सकता है. उन्होंने कहा कि वह इस मामले में सरकार को पत्र लिखकर जल्दीबाजी ना करने की मांग करेंगे. ध्यान रहे है कि दिलीप भाई संघाणी देश की सबसे बड़ी फर्टिलाइजर कॉआपरेटिव इफको के चैयरमैन भी हैं.
आइए आज इस पर विस्तार से बात करते हैं. समझते हैं पूरा मामला क्या है. उर्वरक मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए सरकार क्या कर रही है, योजना क्या है. क्यों एक्सपर्ट इस मामले में किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार से जल्दीबाजी ना करने की मांग कर रहे हैं.
भारत सरकार उर्वरक के मामले में आत्मनिर्भरता के लिए मिशन मोड पर काम कर रही है. इस याेजना के तहत साल 2024 के अंंत तक यूरिया इंपोर्ट में 30 फीसदी कटौती करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसको लेकर बीते दिनों उर्वरक मंत्रालय में राज्य मंंत्री अनुप्रिया पटेल ने राज्यसभा में जानकारी देते हुए बताया था कि भारत 2026 तक यूरिया इंपोर्ट फ्री होने की योजना पर काम कर रहा है.
पटेल की तरफ से राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार भारत मुख्य रूप से ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई से यूरिया इंपोर्ट करता है. 2026 तक यूरिया इंपोर्ट समाप्त करने की योजना है.
अनुप्रिया पटेल ने राज्यसभा में देश को उवर्रक के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए बताया था कि सरकार ने फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की रामागुंडम (तेलंगाना), गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), सिंदरी (झारखंड) और तालचेर (ओडिशा) यूनिट्स और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन लिमिटेड की बरौनी (बिहार) यूनिट को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की संयुक्त उद्यम कंंपनी के माध्यम से पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा है, जिसकी क्षमता 12.7 एलएमटीपीए (लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष) अमोनिया-यूरिया की हाेगी.
उन्होंने बताया कि रामागुंडम और गोरखपुर यूनिट्स को क्रमश: साल 2021 में चालू किया गया था, जबकि बरौनी और सिंदरी यूनिट्स को साल 2022 शुरू किया. इन यूनिट्स ने देश में प्रति वर्ष 50.8 लाख मीट्रिक टन स्वदेशी यूरिया उत्पादन में वृद्धि की है.
अंग्रेजी अखबार द मिंट ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से लिखा है कि केंद्र सरकार जिन 8 उर्वरक PSU को बेचने की तैयारी कर रही है, उनमें PSU ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉर्प लिमिटेड, फर्टिलाइजर्स एंड केम-इमिस त्रावणकोर, एफसीआई अरावली जिप्सम एंड मिनरल लिमिटेड, मद्रास फर्टिलाइजर्स लिमिटेड, नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड, राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स, फर्टिलाइजर कॉर्प इंडिया लिमिटेड और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉर्प लिमिटेड शामिल है.
अंग्रेजी अखबार द मिंट ने एक अन्य अधिकारी के हवाले से लिखा है कि 8 उर्वरक PSU के अलावा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, झारखंड के सिंदरी, ओडिशा के तालचेर और तेलंगाना के रामागुंडम में स्थित फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन की कई यूनिट्स भी सूची में हैं, जिनकी हिस्सेदारी बेची जा सकती है. अखबार के अनुसार योजना चर्चा के स्तर पर है और इस संबंध में अंतिम निर्णय जल्द ही लिया जाएगा.
असल में साल 2022 में नीति आयोग ने रणनीतिक बिक्री के लिए 8 उर्वरक PSU की पहचान की थी. जिस पर केंद्र सरकार की तरफ से अगले साल रोक लगा दी थी. जिसका जिन्न एक बार फिर बाहर निकलता हुआ दिख रहा है.
वहीं अंग्रेजी अखबार ने सरकारी अधिकारी के हवाले से लिखा है कि उर्वरक PSU की बिक्री से किसानों को उर्वरकों में मिलने वाली सब्सिडी पर असर नहीं पड़ेगा. असल में केंद्र सरकार किसानों को सब्सिडी में उर्वरक उपलब्ध कराती है. जिसके तहत सब्सिडी में उर्वरक के कट्टे उपलब्ध कराए जाते हैं. पिछले कई सालों से उर्वरकों के दामों में बढ़ोतरी होने पर भी किसानों को पुराने दामों में उर्वरक उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इसके लिए केंद्र सरकार ने उर्वरक सब्सिडी बीते साल 2 लाख करोड़ से अधिक खर्च किए थे.
कांउसिल फाॅर एग्रीकल्चर रूरल डेवलपमेंट के अध्यक्ष और सहकारी नेता दिलीप भाई संघाणी ने कहा कि उन्हें मीडिया के माध्यम से ये जानकारी मिली है. अगर सरकार उर्वरक PSU को बेचने की तैयारी कर रही है तो इससे बहुत सारी दिक्कतें आएंगी. मसलन, किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी. संघाणी ने कहा कि अगर निजी कंंपनियों के पास उर्वरक कंपनियां का स्वामित्व या पूरा मैनेजमेंट जाता है तो इससे किसानों को महंगी खाद मिलेगी.
उन्होंने कहा कि सरकार को इस मामले में जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए. देश में आज भी कई जगहों पर किसानों को उर्वरक नहीं मिल रहा है. जरूरत है कि इस मामले में किसानों को केंद्र में रखकर एक स्टडी कराई जाए.उन्हाेंने कहा कि वह जल्द ही इस मामले में सरकार को एक पत्र लिखेंगे.
उर्वरक PSU में निजी कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़ने से कैसे किसानों को महंगा उर्वरक मिलेगा? इसका पूरा गणित कांउसिल फाॅर एग्रीकल्चर रूरल डेवलपमेंट के अध्यक्ष और सहकारी नेता दिलीप भाई संघाणी ने किसान तक को समझाया. संघाणी ने बताया कि अमूमन देश में 30 फीसदी उर्वरक का प्रोडक्शन इफको करता है, जबकि 70 फीसदी निजी कंपनियां करती हैं, लेकिन दो साल पहले इंटरनेशनल स्तर पर उर्वरक के दामों में बढ़ोतरी से ये तस्वीर उलट गई है. मसलन, दामों में बढ़ोतरी के बाद 70 फीसदी उर्वरक प्रोडक्शन इफको कर रहा है, जबकि 30 फीसदी प्राेडक्शन निजी कंपनियां कर रही हैं.
इसके पीछे का कारण समझाते हुए वह कहते हैं कि अगर सरकार दामों पर नियंत्रण रखती हैं तो निजी कंपनियां नुकसान का हवाला देते हुए उत्पादन में कटौती करने लगती हैं. इन हालातों में किसानों को नुकसान हो सकता है. बेशक उत्पादन बढ़ाने के लिए ये तरीका हो सकता है, लेकिन किसानों को उर्वरक संकट का सामना ना करने पड़े ये सुनिश्चित करना होगा.
वहीं देश की अन्य सहकारी एजेंसी कृभको ने भी उर्वरक PSU बेचने की योजना को किसान विरोधी बताया है. कृभको के चैयरमैन सीपी यादव ने किसान तक से बातचीत में कहा कि अगर PSU सरकारी नियंत्रण में रहेंगे तो बेहतर काम करेंगे. उन्होंने कहा कि जरूरत है कि उर्वरक PSU को बेचने की जगह उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ाई जाए. इनकी बिक्री की योजना किसानों के हित में नहीं है. किसानों की उर्वरक की आवश्यकता को PSU पूरी करती हैं. निजीकरण होगा तो बेहतर काम नहीं कर पाएंगे.
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