खरीफ सीजन में मूंग की खेती करने वाले किसानों के लिए सफेद मक्खी कीट बड़ी मुसीबत बन गया है. उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में इसके प्रकोप से मूंग किसान परेशान हैं. इस सफेद मक्खी के चलते मूंग फसल में पीला मोजेक रोग (Yellow mosaic virus) का फैलाव बढ़ रहा है, जिसकी रोकथाम में देरी की स्थिति फसल उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है. उत्तर प्रदेश विभाग की ओर से किसानों को इससे बचाव के लिए 3 कीटनाशकों के इस्तेमाल की सलाह दी गई है.
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार इस बार खरीफ सीजन में दालों की बंपर बुवाई हुई है. 20 अगस्त तक के आंकड़ों के अनुसार मूंग दाल का रकबा पिछले साल की तुलना में 3 लाख हेक्टेयर अधिक दर्ज किया गया है. देशभर में किसानों ने 33.24 लाख हेक्टेयर में मूंग की बुवाई की है, जबकि पिछले साल इसी सीजन में 30.27 लाख हेक्टेयर बुवाई की गई थी. वहीं, अरहर, उड़द समेत अन्य सभी दालों का कुल रकबा 120.18 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है. पिछले सीजन में 113.69 लाख हेक्टेयर रकबा दर्ज किया गया था.
बारिश के चलते खेतों में पानी भरने की वजह से मूंग दाल के किसान इन दिन सफेद मक्खी के प्रकोप से परेशान हैं. यह मक्खी पीला मोजेक वायरस को पौधों पर छोडती है, जिससे पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और पौधे का विकास रुक जाता है. इस मक्खी के संक्रमण से फसल को नुकसान से बचाने के लिए उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के प्रसार शिक्षा और प्रशिक्षण ब्यरो के वैज्ञानिकों ने किसानों उपाय बताए हैं.
यूपी कृषि विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार मूंग में पीला मोजेक रोग (Yellow mosaic virus) के प्रकोप से पौधों में पीलेपन की शिकायत देखी जा रही है. इस रोग को फैलाने वाली सफेद मक्खी होती है, जो रोगग्रस्त पौधे पर बैठकर जब दूसरे स्वस्थ पौधे पर जाती है तो उसे भी संक्रमित कर देती है. इससे फसल में पीले मोजेक रोग से बचने के लिए सफेद मक्खी को कंट्रोल करना जरूरी है.
कृषि एक्सपर्ट ने कहा कि अगर किसान बुवाई करते ही रोगप्रतिरोधी किस्मों का चयन करें तो यह रोग फसल में नहीं आता है. लेकिन, अब उसका समय तो निकल चुका है और फसल बढ़ने की स्थिति में है. ऐसे में खड़ी फसल में कीटनाशक सायपरमेथ्रीन, डेल्टामेथ्रिन या फिर डाईमिथोएट का मानक पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव किया जाना चाहिए. किसान ध्यान दें कि इन तीन में से कोई एक कीटनाशक का ही इस्तेमाल फसल में करें.
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