सोयाबीन भारत की महत्वपूर्ण तिलहन फसलों में से एक है. इसकी खेती खरीफ मौसम में प्रमुख रूप से की जाती है. सोयाबीन की खेती सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में होती है. बंपर पैदावार के लिए किसानों को इसकी उन्नत किस्में और बुवाई के सही तरीके की जानकारी होना बेहद जरूरी है. उसका तौर तरीका पता है तो उत्पादन अच्छा होगा. सोयाबीन की खेती जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही इसकी कटाई और गहाई भी. भंडारण का तरीका भी आपको जानना चाहिए. सोयाबीन की फसल आमतौर पर बुवाई के 95 से 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है. यदि सही समय पर कटाई न की जाए तो फलियां चटक जाती हैं और उपज भी कम हो जाती है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसल की कटाई तेज़ दरांती की सहायता से ज़मीन के पास से करनी चाहिए. कटी हुई फसल का तुरंत ढेर नहीं लगाना चाहिए. यदि कटाई के तुरंत बाद धूप में सुखाए बिना ढेर लगा दिया जाए तो उसमें फफूंद लग जाती है और उपज की गुणवत्ता खराब हो जाती है. इसलिए कटी हुई फसल को खेत में ही धूप में रख देना चाहिए. अगर किसान ने सोयाबीन बड़े क्षेत्र में लगाया गया है तो समय और पैसे बचाने के लिए मशीन से कटाई करना उचित रहेगा.
सोयाबीन की फसल की कटाई पत्तियों के पीली पड़ते ही करनी चाहिए. काटी गई फसल को खलिहान में पहुंचाना आवश्यक है. देरी से कटाई करने पर फलियां चटकने से दाने झड़ने की संभावना बढ़ जाती है. कटाई के समय दानों में नमी 15-17 प्रतिशत तक रहनी चाहिए. इससे कम नमी न रहे.
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चूंकि कटाई के समय नमी की मात्रा अधिक रहती है. इसलिए खलिहान में भी फसल उलटते-पलटते फफूंद लग जाएगी जिससे बीज अंकुरण क्षमता कम हो जाएगी एवं दाना भी खराब हो जाएगा. फसल को 2-3 दिन सुखाकर थ्रेशर से धीमी गति (300-400 आर.पी.एम.) पर गहाई करें. गहाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज का छिलका न उतरे एवं बीज में दरार न पड़े. थ्रेशर की गति को कम करने के लिए बड़ी पुली लगाएं. बहुत अधिक सूखी फसल की गहाई से दाना अधिक टूटता है.
बीज का भंडारण दानों को 3-4 दिन अच्छी तरह सुखाकर ही करें. भंडारण बोरियों में करें एव ठंडे और हवादार स्थान पर रखें. भंडारण के समय बीज में नमी की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए. यदि फसल बीज के लिए तैयार की गई है तो उसकी गहाई थ्रेशर से न करें वरना अंकुरण क्षमता प्रभावित हो सकती है. बीजों को नमी से मुक्त सूखी जगह पर या बोरियों में संग्रहित किया जाना चाहिए. भंडारण स्थान सूखा एवं नमीरोधी होना चाहिए.
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