Heat effect: बढ़ती गर्मी से मौसमी सब्जियों की उपज और क्वालिटी में गिरावट, बचाव में ये उपाय करें किसान

Heat effect: बढ़ती गर्मी से मौसमी सब्जियों की उपज और क्वालिटी में गिरावट, बचाव में ये उपाय करें किसान

आजकल बढ़ती गर्मी और बदलते मौसम के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. मौसमी सब्जियों की उपज में गिरावट आ रही है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसे में, सही जानकारी और तकनीकों को अपनाकर इस समस्या से बच सकते हैं. नीचे कुछ अहम उपाय दिए गए हैं जिन्हें अपनाकर किसान अपनी उपज को सुरक्षित और बेहतर बना सकते हैं.

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Heat effect: बढ़ती गर्मी से मौसमी सब्जियों की उपज और क्वालिटी में गिरावट, बचाव में ये उपाय करें किसानसब्जियों पर गर्मी की मार

पूरा उत्तर भारत इन दिनों भीषण गर्मी (हीट वेव) की मार झेल रहा है. अप्रैल से अधिक तापमान और मई से ही लगातार गर्म हवाएं चल रही हैं और बारिश की एक-एक बूंद के लिए धरती तरस रही है. हर दिन चल रही हीट वेव से इंसान हो या जानवर या किसानों की फसल, हर कोई बेहाल है. हालात इतने बदतर हो गए हैं कि कई जगहों पर रात के समय भी तापमान तेजी से बढ़ रहा है. दिल्ली में बुधवार को 14 वर्षों बाद सबसे गर्म रात रही, जिसमें न्यूनतम तापमान 35.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. यह इस मौसम के सामान्य तापमान से आठ डिग्री अधिक था. इस वर्ष हीट वेव (लू) का सब्जियों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा है. विगत वर्षों में मॉनसून से पूर्व कम से कम 4 से 5 बार वर्षा हो जाती थी, जबकि इस वर्ष मॉनसून से पूर्व केवल एक बार वर्षा हुई है.

इस वर्ष अप्रैल से लेकर 19 जून तक सामान्य से कम से कम 4 से 5 डिग्री सेल्सियस तापक्रम ज्यादा था. इस वर्ष हीट वेव (लू) की वजह से मौसमी सब्जियों जैसे ककड़ी, खीरा, लौकी, नेनुआ, तरबूज, खरबूज, टमाटर, परवल, गोभी, पत्ता गोभी के अलावा इस सीज़न में उगाई जाने वाली लगभग सभी सब्जियों पर बहुत बुरा असर पड़ा है. इन सब्जियों की उपज और गुणवत्ता दोनों काफी प्रभावित हो रही है जिससे किसानों की लागत बढ़ रही है और उत्पादन कम मिल रहा है.

जून में कम बारिश ने बढ़ाई चिंता

उत्तर भारत में, जून के मध्य तक मॉनसून के आने की संभावना रहती है. यह समय किसानों के लिए अहम होता है. लेकिन 1 जून से 17 जून 2024 तक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में केवल 2 मिमी बारिश हुई है, जो सामान्य से 92 फीसदी कम है. वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में 6 मिमी बारिश हुई है, जो सामान्य से 83 फीसदी कम है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, बिहार में 1 जून से 17 जून 2024 तक 17 मिमी बारिश हुई है. इस तरह 73  फीसदी कम बारिश हुई है. झारखंड में 1 जून से 17 जून तक 22 मिमी बारिश हुई है. इस तरह से 67 फीसदी कम बारिश हुई है. इसके कारण किसानों को जून में सब्जी फसलों की अधिक सिंचाई करनी पड़ रही है. दूसरी तरफ अधिक तापमान से सब्जियों में उपज और गुणवत्ता में कमी आई है. 

उपज और गुणवत्ता में कमी

डॉ.राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा, समस्तीपूर के डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी के हेड डॉ एस.के. सिंह ने बताया कि अधिक तापमान सब्जियों की वृद्धि और विकास में बाधा डालता है, जिससे उपज काफी कम हो जाती है. हीट वेव (लू) से फूल और फल झड़ जाते हैं. सब्जियों की उपज मात्रा में भारी कमी आ जाती है. दूसरी तरफ अधिक गर्मी सब्जियों के आकार, रंग और स्वाद को प्रभावित करती है. गर्मी से प्रभावित पौधे अक्सर छोटे, विकृत और कम स्वादिष्ट उत्पाद पैदा होते हैं.

किसानों की खेती की लागत बढ़ी 

डॉ एस.के सिंह ने बताया कि अधिक तापमान वाष्पीकरण दर को बढ़ाता है, जिससे फसलों की पानी की मांग अधिक होती है. इसलिए सब्जी बोने वाले किसानों को खेत में ज्यादा पानी देना पड़ता है. अगर पानी की समुचित व्यवस्था नहीं की गई तो पौधे मुरझा जाते हैं, विकास कम हो जाता है और यहां तक कि पौधे मर भी सकते हैं. हीट वेव (लू) के कारण मिट्टी की नमी जल्दी से वाष्पित हो जाती है, जिससे मिट्टी सूखी और भुरभुरी हो जाती है. इससे जड़ों का विकास और पोषक तत्वों का अवशोषण प्रभावित होता है, जिससे पौधों पर और अधिक दबाव पड़ता है. 

परागण और पकने पर असर 

कृषि विशेषज्ञ डॉ. सिंह के अनुसार सब्जी के पौधे उच्च तापमान के संपर्क में आने से उनकी परिपक्वता में देरी होने लगती है, जिससे बाजार में सब्जियों की उपलब्धता बाधित हो जाती है. अधकि गर्मी के तनाव से टमाटर में ब्लॉसम एंड रॉट और लेट्यूस में टिप बर्न जैसी कई समस्याएं आ जाती हैं. अधिक तापमान परागण की गतिविधि को प्रभावित करता है, जिससे सफल परागण और फल लगने की दर कम हो जाती है. हीट वेव मिट्टी से पोषक तत्वों को अवशोषित करने की पौधे की क्षमता को ख़राब करती है, जिससे पोषक तत्वों की कमी और पौधे का स्वास्थ्य खराब हो जाता है.

किसानों का आर्थिक नुकसान

डॉ एस.के सिंह ने कहा कि सब्जियों की कम पैदावार और गुणवत्ता में कमी होने से किसानों को आर्थिक नुकसान होता है. सिंचाई के लिए अधिक लागत खर्च करनी पड़ती है. हीट वेव कीटों और रोगों के प्रसार के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना सकती हैं. एफिड्स, व्हाइट फ़्लाइज़ और माइट्स जैसे आम कीट गर्म परिस्थितियों में पनपते हैं, जिससे कीट नियंत्रण उपायों की ज़रूरत बढ़ जाती है. कीट नियंत्रण और अन्य प्रबंधन प्रथाओं की बढ़ी हुई लागत संसाधनों पर और अधिक दबाव डालती है.

लू के दुष्प्रभाव को कैसे कम करें 

डॉ एस.के. सिंह ने सुझाव दिया कि इन प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए किसान इन उपायों को अपना सकते हैं-

  • मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए ड्रिप या स्प्रिंकलर बेहतर सिंचाई तकनीक का उपयोग करना चाहिए.
  • पौधों को सीधी धूप से बचाने के लिए छाया जाल यानी शेड नेट की व्यवस्था करना चाहिए
  • मिट्टी की नमी को संरक्षित करने और मिट्टी के तापमान को कम करने के लिए जैविक मल्च का उपयोग करना चाहिए.
  • भविष्य के लिए गर्मी-सहिष्णु किस्में, गर्मी प्रतिरोधी सब्जी की किस्मों की खेती पर जोर देना चाहिए.
  • हीट वेव अवधि से बचने के लिए सही समय से खेती और बुवाई करनी चाहिए. 
  • तापमान में उतार-चढ़ाव को कम करने के लिए खेत की मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को बढ़ानी चाहिए.
  • इन सुझावों को लागू करने से किसानों को गर्मी की लहरों यानी हीट वेव से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने और सब्जी उत्पादन को बनाए रखने में मदद मिल सकती है.

 

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