बीते कुछ सालों में ग्रीन टी की मांग काफी तेजी से बढ़ी है. अब लोग दूध वाली चाय पीने की बजाय ग्रीन टी पीने लगे हैं. वजह हैं इससे जुड़े हेल्थ बेनिफिट्स. कई रिसर्च और शोध यह दावा करते हैं ग्रीन टी ना सिर्फ वजन घटाने में मददगार है बल्कि तनाव कम करने में भी यह कारगर है. कोरोना के बाद से ही लोग अपनी फिटनेस को लेकर काफी जागरूक हुए हैं. हेल्दी रहने के लिए जड़ी-बूटी और औषधियों का सेवन भी बढ़ गया है. ग्रीन टी भी एक ऐसी ही औषधि है, जो दिखने में तो साधारण सी पत्तियां होती हैं, लेकिन इसके औषधीय गुण सेहतमंद रखने में मदद करते हैं. मगर बाजार में आ रही कई तरह की ग्रीन टी और उनके दाम को लेकर कई बार लोग परेशान होते हैं. इसका उपाय ये है कि आप अपने घर में ही ग्रीन टी उगाएं और ताजा पत्तियों से चाय बनाएं.
आपको बता दें, ग्रीन टी एक घासनुमा पौधा होता है, जो आपको किसी भी नर्सरी में आसानी से मिल जाएगा. वहीं इस पौधे के चार टुकड़े लेकर अपनी बालकनी में आप किसी भी गमले में आराम से लगा सकते हैं. अच्छी बात ये है कि ग्रीन टी उगाने के लिए कंपोस्ट, खाद, कोकोपिट जैसी चीजों की जरूरत नहीं पड़ती. ये एक औषधीय पौधा है जो सीधा मिट्टी में उग सकता है. इसके बाद महीने भर के अंदर ही ये पौधा विकसित होने लगता है. यह पौधा घास की तरह बढ़ता है, इसलिए हर 60 दिन में आप इसकी कटिंग करके इसको सुखा कर और रोस्ट करके चाय में इस्तेमाल कर सकते हैं.
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ग्रीन टी का सेवन हेल्थ के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है. इसके सेवन से कई बीमारियों का खतरा कम होता है. यह वजन घटाने से लेकर हार्ट की बीमारियों को कम करने में भी सहायक होता है. वहीं ग्रीन टी एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होती है. जो पाचन तंत्र के लिए भी सहायक है. एक स्टडी के मुताबिक इसमें पॉलीफेनोल्स मौजूद होते हैं, जो कैंसर के जोखिम को कम करते हैं.
ग्रीन टी घासनुमा पौधा है, जिसे किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है. इसे लगाने के लिए सबसे पहले गमला तैयार करें. इसके लिए घर में पड़ा किसी भी कंटेनर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.कंटेनर में गोबर की खाद, लकड़ी की राख और खेत की मिट्टी का मिश्रण बनाकर भर दें. इसके बाद ग्रीन टी के पौधे को गमले में लगा दें. करीब 60 से 90 दिन के अंदर पौधा बड़ी घास में तब्दील हो जाता है. इसे समय-समय पर पानी देते रहें, जिससे घास की अच्छी ग्रोथ हो सके. अच्छी बात यह है कि इसकी ज्यादा देखभाल करने की भी जरूरत नहीं पड़ती. इन पौधों में कीट-रोगों का खतरा भी कम ही रहता है.
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