पशुओं के चारे के रूप में अजोला तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. यह तेजी से बढ़ने वाला एक प्रकार का जलीय फर्न है, जो मुख्य तौर पर पानी की सतह पर तैरने हुए दिखाई देता है. इसका उपयोग पशु आहार के रूप में गाय, भैंस, बकरी, भेड़, मछली और मुर्गियों आदि के लिए किया जाता है. इसमें प्रोटीन, खनिज लवण, अमीनो अम्ल, विटामिन 'ए', विटामिन 'बी' तथा बीटा कैरोटीन आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. अजोला के तौर पर चारा उत्पादन कम समय, स्थान और लागत में किया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यह दूध की उत्पादन लागत को कम करने के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने में भी मददगार साबित हो सकता है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार आने वाले दिनों में हरे और सूखे चारे की मांग काफी बढ़ जाएगी. इस मांग को पूरा करने के लिए चारे की आपूर्ति को प्रतिवर्ष 1.69 प्रतिशत की दर से बढ़ाने की आवश्यकता है. पिछले दो-तीन दशकों से चारे की फसलों के तहत क्षेत्रफल केवल 8.4 मिलियन हेक्टेयर पर स्थिर है. वर्ष भर हरे चारे की कमी वाले क्षेत्रों में पशुधन की मांग को पूरा करने के लिए अजोला फर्न फायदेमंद साबित हो सकता है. यह आसान, सस्ता एवं लाभकारी विकल्प है. पशुपालक, अजोला का उत्पादन अपनी आवश्यकतानुसार आसपास खाली पड़ी जमीन के अलावा घर की छत पर भी कर सकते हैं.
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अजोला का उत्पादन पशुपालक कम खर्च, कम समय, कम स्थान एवं बिना किसी आधुनिक तकनीक के साथ अनुकूल परिस्थितियों में वर्ष भर कर सकता है.
इसमें अधिक पोषक तत्व होने के कारण इसे पूरक रूप से खिलाया जा सकता है, जो उत्पादन की लागत को कम व पशुपालकों की शुद्ध आय को बढ़ाने का काम करता है.
इसे खिलाने से पशुओं में आवश्यक अमीनो अम्ल, विटामिन (विटामिन 'ए', विटामिन 'बी' तथा बीटा कैरोटीन) एवं खनिज लवण जैसे-कैल्शियम, फॉस्फोरस, 12 पोटेशियम, आयरन की आवश्यकता की पूर्ति होती है. इससे पशुओं का शारीरिक विकास अच्छा होता है.
पशुओं को प्रतिदिन आहार के साथ अजोला खिलाने से शारीरिक वृद्धि के साथ-साथ दूध के उत्पादन में भी वृद्धि देखी गई है. जबकि मुर्गियों को आहार के साथ प्रतिदिन अजोला खिलाने से उनके वजन तथा अंडा उत्पादन क्षमता में वृद्धि आंकी गयी है.
अजोला उत्पादन के लिए आंशिक छाया वाली जगह का चयन करें, जहां 25 से 50 प्रतिशत ही सूर्य का प्रकाश आता हो.
कच्ची क्यारी के अंदर से नुकीले पत्थर, पेड़ की जड़ों और कांटों को भली-भांति साफ कर लेना चाहिए. ये प्लास्टिक शीट में छेद कर देते हैं, जिससे पानी का रिसाव होता रहता है. तथा यह सुनिश्चित कर लें कि प्रयोग में ली जाने वाली प्लास्टिक शीट में कोई छेद न हो.
अजोला उत्पादन अवधि के दौरान क्यारी में नियमित रूप से पानी का समान स्तर (10-12 सेमी) बनाए रखना चाहिए. पहली बार अजोला कल्चर किसी प्रतिष्ठित संस्थान से लेना चाहिए. पूसा में यह फ्री में मिल सकता है.
अजोला की तेज बढ़वार तथा अधिक उत्पादन के लिए प्रतिदिन 200-250 ग्राम प्रतिवर्ग मीटर की दर से उपयोग के लिए इसे निकाल लेना चाहिए.
प्रत्येक 10-15 दिनों बाद क्यारी में से 25-30 प्रतिशत पुराने पानी को ताजा पानी से बदल देना चाहिए. हर महीने क्यारी में से 5 किग्रा पुरानी मिट्टी को ताजी मिट्टी से बदल देना चाहिए.
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