गेहूं की बुवाई संपन्न हो चुकी है और पौधे अब बड़े भी हो चुके हैं. लेकिन अगली बार जब इसकी खेती करें तो एक खास तकनीक का जरूर ध्यान रखें. इस तकनीक का नाम है सरफेस सीडिंग कम मल्चिंग प्रोसेस. इस तकनीक का इजाद पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने किया है. यह बेहद सस्ती और इको फ्रेंडली तकनीक है जिसमें धान की कटाई और गेहूं की बुवाई एक साथ होती है. यह तकनीक ऐसी है जो पराली की समस्या से छुटकारा दिलाती है. इस तकनीक में कंबाइन हार्वेस्टर से धान की कटाई के साथ गेहूं की बुवाई साथ में होती है. इसी क्रम में खेत में खाद भी डाली जाती है. मल्चिंग की विधि इसमें साथ में होती है क्योंकि हार्वेस्टर में लगे ब्लेड से पराली काट कर उसे खेत में मल्च के रूप में इस्तेमाल कर लिया जाता है.
इस तकनीक में पराली को मिट्टी की सतह से 3-4 इंच ऊपर काट लिया जाता है. कटाई और बुवाई के दौरान प्रति एकड़ खेत में 45 किलो गेहूं और 65 किलो डीएपी खाद डाली जाती है. अगर किसान के पास हार्वेस्टर की सुविधा नहीं है तो वह कंबाइन से पहले धान की कटाई करा लेता है. फिर कटर-कम स्प्रेडर मशीन से पराली काटकर उसमें हल्की सिंचाई कर दी जाती है. इसके बाद हाथ से ही गेहूं के बीज और खाद छिड़क दी जाती है.
इस तकनीक से किसानों को भारी बचत होती है क्योंकि एक साथ तीन काम होते हैं. धान की कटाई होती है, पराली का निपटान होता है और साथ में गेहूं की बुवाई के साथ खाद का छिड़काव होता है. इस तकनीक से और भी कई फायदे हैं, जैसे खर पतवार का नियंत्रण, सेहतमंद मिट्टी और पैदावार में बढ़ोतरी. इस तकनीक को चलाने के लिए बहुत अधिक हॉर्स पावर के ट्रैक्टर की जरूरत नहीं होती बल्कि कम एचपी के ट्रैक्टर से भी कटनी और बुवाई का काम साथ हो सकता है.
पंजाब-हरियाणा में पिछले साल बेमौसमी बारिश का असर गेहूं की फसल पर देखा गया था. मार्च महीने में भारी बारिश और ओलावृष्टि से फसलें खेतों में गिर गई थीं. दूसरी ओर, उन किसानों की गेहूं फसल का नुकसान कम हुआ था जिन्होंने सरफेस सीडिंग तरीके से गेहूं की बुवाई की थी. इस तकनीक में बुवाई के साथ ही मल्चिंग की सुविधा मिल जाती है, इसलिए खेत में पर्याप्त नमी बनी रहती है. इससे फरवरी-मार्च महीने में अचानक तेज धूप होने या गर्मी बढ़ने से गेहूं की फसल को नमी मिलती है और फसल हीट स्ट्रेस से बच जाती है.
सरफेस सीडिंग कम मल्चिंग तकनीक से खेत से पराली हटाने और गेहूं बुवाई का खर्च मात्र 650 रुपये प्रति एकड़ आता है जबकि पारंपरिक तरीके से यही काम करें तो खर्च 2000-2500 रुपये तक आता है. इस तकनीक को चलाने के लिए अधिक पावर वाले महंगे ट्रैक्टर की जरूरत नहीं होती.
तरन तारन जिले के बुर्ज देवा सिंह गांव के किसान गुरबचन सिंह बताते हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात प्रोग्राम में फसल प्रबंधन के बारे में सुना था. उसके बाद उन्होंने सरफेस सीडिंग कम मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल किया. वे इस तकनीक से 5 साल से गेहूं की खेती कर रहे हैं. वे 36 एकड़ में खेती करते हैं. वे बताते हैं कि इस तकनीक से बोई गई गेहूं फसल की जड़ें गहरी और घनी होती हैं जो फसल को गिरने से रोकती हैं. इस तरह खराब मौसम का प्रभाव गेहूं पर कम होता है.
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