Vertical Farming: खेती में करिश्मे से कम नहीं वर्टिकल फार्मिंग, 75% तक जमीन और 95% तक होती है पानी की बचत !

Vertical Farming: खेती में करिश्मे से कम नहीं वर्टिकल फार्मिंग, 75% तक जमीन और 95% तक होती है पानी की बचत !

Vertical farming future: एक एकड़ एरिया में जितनी सब्जियां उगाई जाती हैं उतना उत्पादन वर्टिकल फार्मिंग से खेती करने में सिर्फ 1000 वर्गमीटर में हो सकता है और करीब 3000 वर्गमीटर एरिया खेती के लिए बचाया जा सकता है. जानिए भविष्य में कितनी कारगर साबित हो सकती है ये तकनीक

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Vertical Farming:खेती में करिश्मे से कम नहीं वर्टिकल फार्मिंग, 75% तक जमीन और 95% तक होती है पानी की बचत !वर्टिकल फार्मिंग से बचेगी ज़मीन और पानी

What is Vertical farming : विकीपीडिया के मुताबिक वर्टिकल फार्मिंग का कॉन्सेप्ट 1999 में आया. कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डिक्सन डेस्पोमेयर ने न्यूयॉर्क सिटी की ऊंची ऊंची इमारतें जिन्हें स्काईस्क्रैपर कहते हैं वहां वर्टिकल तरीके से खेती करने के बारे में सोचा और छात्रों इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए कहा, उन्होंने 30 मंजिल इमारतों पर हाइड्रोपोनिक तरीके से खेती करने का प्रोजेक्ट शुरू किया, हालांकि उस वक्त खेती का ये तरीका पूरी तरह लागू नहीं हुआ लेकिन यहां से वर्टिकल फार्मिंग की शुरूआत हो गई. 

PUSA में प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर अवनी कुमार सिंह का जो  प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन/ हाइटेक कल्टीवेशन के एक्सपर्ट हैं, उनका मानना है कि वर्टिकल फार्मिंग का कॉन्सेप्ट नया नहीं है. गांवों में पहले भी सब्जियां वर्टिकल तरीके होती थीं अब उसे एक नई तकनीक बनाकर बड़े स्तर पर खेती की जा रही है. वर्टिकल फार्मिंग को भी दो ग्रुप में बांटा जाता है जिसमें से एक है हाइड्रोपोनिक सॉइललेस तरीका है जिसमें पानी, टेम्परेचर और मॉइश्चर को कंट्रोल किया जा सकता है. इसमें बिना मिट्टी के पेर्लाइट,  कोकोपीट और वर्मीक्यूलाइट का उपयोग करते पौध तैयार की जाती है और उनसे खेती की जाती है.

दूसरा तरीका हाइड्रोपोनिक्स है जिसमें लिक्विड बेस तैयार किया जाता है और पानी में ही खेती के लिए जरूरी न्यूट्रिएंट्स को मिला दिया जाता है. इसमें 20 से 30 PPM तक लेवल होता है और इसे पाइप के माध्यम से पौधों को दिया जाता है. इसमें किसान पौधों के मुताबिक मॉइश्चर, टेम्परेचर, PH लेवल, और पानी की मात्रा को कंट्रोल में रखते हैं और उस कंट्रोल्ड पर्यावरण में खेती होती है. वर्टिकल फार्मिंग ग्रीन हाउस, पॉली हाउस या खुले में भी की जा सकती है. खासतौर पर आजकल ग्रीन हाउस, पॉली हाउस में सब्जियां जैसे रंगीन शिमला मिर्च, खीरा, करेला, मशरूम ये सब वर्टिकल फार्मिंग से ही किया जा रहा है. 

वर्टिकल फार्मिंग का सेटअप पर सब्सिडी

वर्टिकल फार्मिंग अगर ग्रीन हाउस या पॉली हाउस में करनी है तो उसका सेटअप तैयार करने के लिए केन्द्र सरकार 50% तक सब्सिडी देती है जिसमें 2 एकड़ तक के एरिया में वर्टिकल फार्मिंग की जा सकती है. ग्रीन हाउस या पॉली हाउस में कुछ सब्सिडी राज्य सरकार की ओर से भी मिलती है

वर्टिकल फार्मिंग है खेती का फ्यूचर

  • भविष्य में वर्टिकल फार्मिंग की तरह ध्यान देना जरूरत नहीं मजबूरी बनेगी. जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है और खेती करने वाली जमीन लगातार कम होती जा रही है उसमें वर्टिकल फार्मिंग जैसी तकनीक काम आएगी. 
  • फूड सेक्योरिटी के लिए भी वर्टिकल फार्मिंग जरूरी है क्योंकि ज्यादा उत्पादन करना है तो ऐसे तरीकों को अपनाने की जरूरत है जिसमें कम खेती में ज्यादा पैदावार हो. वर्टिकल फार्मिंग में सब्जियों का उत्पादन 4-5 गुना ज्यादा हो सकता है.
  • शुरू में वर्टिकल फार्मिंग के सेटअप में खर्च आता है लेकिन बाद में ये किसानों के लिए एक फायदेमंद तकनीक है. इसमें कोई भी फसल, किसी भी मौसम में उगाई जा सकती है 
  • दूसरा फायदा पानी की बचत है क्योंकि इस तकनीक में सिर्फ ड्रिप इरिगेशन का ही इस्तेमाल होता है इसलिए पारंपरिक खेती के मुकाबले 95% तक कम पानी में फसल उगाई जा सकती हैं. 

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क्या मुश्किलें हैं वर्टिकल फार्मिंग में ?

  • अभी ये महंगी तकनीक है, पॉली हाउस में वर्टिकल फार्मिंग या खुले में वर्टिकल फार्मिंग करने के सेटअप में निवेश काफी लगता है और कई उत्पादन का मार्केट रेट उतना नहीं मिलता जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ जाता है.
  • वर्टिकल फार्मिंग अभी भी एक नया तरीका है जो किसानों के लिए नया है. युवा किसान इस तरह की तकनीक को अपना रहे हैं लेकिन ज्यादातर किसान पारंपरिक ढंग से ही खेती करते हैं
  • वर्टिकल फार्मिंग के सेटअप में आने वाला खर्च इसके बढ़ते प्रयोग में एक रुकावट है. कई बार किसान सरकार से मिलने वाली सहायता का उतना लाभ नहीं उठा पाते और अपने पास से पूंजी ना लगाने की वजह वर्टिकल फार्मिंग नहीं कर पाते
  • खेती में नई तकनीक का समावेश करना है तो स्कूल, कॉलेज और प्रोफेशल कोर्स में भी इस तरह की तकनीक को पढ़ाने और ट्रेनिंग देने की जरूरत है ताकि ये टेक्नॉलोजी लोगों की समझ में आए और वो उसे इस्तेमाल कर सकें.

 

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