बीजों में डालें ये दो जैविक खाद, फिर फसल में यूरिया छिड़कने की नहीं होगी जरूरत

बीजों में डालें ये दो जैविक खाद, फिर फसल में यूरिया छिड़कने की नहीं होगी जरूरत

सभी दलहनी फसलों की जड़ों में छोटी-छोटी गांठें होती हैं. इनमें राइजोबियम जीवाणु रहते हैं. ये जीवाणु हवा से नाइट्रोजन लेकर पौधों को खाद के रूप में देते हैं. आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी के जरिये राइजोबियम की संख्या लैब में बढ़ाकर कल्चर के रूप में देना संभव हो गया है. राइजोबियम कल्चर एक जीवाणु खाद है, जिसमें हवा से नाइट्रोजन लेने वाले जीवाणु काफी संख्या में रहते हैं. इसे दलहन और तेलहन की उपज में वृद्धि के लिए बीज को उपचारित करने में प्रयोग करते हैं.

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बीजों में डालें ये दो जैविक खाद, फिर फसल में यूरिया छिड़कने की नहीं होगी जरूरतराजइजोबिय कल्चर से यूरिया की जरूरत होगी खत्म

खेती में यूरिया ने जितना नुकसान पहुंचाया है, उतना शायद ही किसी खाद ने. हालत ये हो गई है कि मिट्टी 30 परसेंट तक बीमार हो गई है. उसमें पोषक तत्वों की मात्रा घट गई है. देश की इतनी बड़ी आबादी को खिलाने के लिए खेती की मिट्टी अब जर्जर हो चली है. यही वजह है कि जैविक खाद और प्राकृतिक खेती पर जोर दिया जा रहा है. ऑर्गेनिक खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी कड़ी में ही हम आपको कुछ जैविक खादों के बारे में बताएंगे जिसके इस्तेमाल से यूरिया की जरूरत खत्म हो जाएगी. साथ ही जैविक खाद डालने से मिट्टी लहलहा उठेगी. नीचे दो खादों के बारे में बता रहे हैं.

राइजोबियम कल्चर

सभी दलहनी फसलों की जड़ों में छोटी-छोटी गांठें होती हैं. इनमें राइजोबियम जीवाणु रहते हैं. ये जीवाणु हवा से नाइट्रोजन लेकर पौधों को खाद के रूप में देते हैं. आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी के जरिये राइजोबियम की संख्या लैब में बढ़ाकर कल्चर के रूप में देना संभव हो गया है. राइजोबियम कल्चर एक जीवाणु खाद है, जिसमें हवा से नाइट्रोजन लेने वाले जीवाणु काफी संख्या में रहते हैं. इसे दलहन और तेलहन की उपज में वृद्धि के लिए बीज को उपचारित करने में प्रयोग करते हैं.

राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से पौधों को नाइट्रोजन हवा से मिलता है. जैविक नाइट्रोजन से रासायनिक खाद की बचत होती है. उपज में 15 से 20 प्रतिशत वृद्धि होती है. भूमि की उर्वरता में विकास होता है. दलहन फसल के बाद अन्य दूसरी फसलों को भी नाइट्रोजन मिलता है. इससे 40 से 50 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष मिलता है, जो 85-110 किलो यूरिया के बराबर है. रांची स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में अरहर, उरद, मूंग, सोयाबीन, मूंगफली, चना, मसूर और मटर आदि के कल्चर उचित मूल्य पर लिए जा सकते हैं.

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राइजोबियम कल्चर से बीज उपचारित करने के लिए 200 ग्राम गुड़ की मात्रा एक लीटर पानी में डालकर पंद्रह मिनट तक उबालें. अच्छी तरह ठंडा होने पर इस घोल में दो पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला दें. एक एकड़ के लिए पर्याप्त बीज को कल्चर के घोल में डालकर साफ हाथों से अच्छी तरह मिला दें. इसे अखबार या साफ कपड़े में रखकर छाया में आधे घंटे तक सूखने दें. इसके बाद उपचारित बीजों की बुआई जल्द करें. 

अम्लीय मिट्टी में कल्चर युक्त बीज का चूना प्रतिकरण (1 किलो बारीक चुना प्रति 10 किलो बीज के लिए) करना लाभदायक होगा. कल्चर को धूप से बचाएं. कल्चर जिस फसल का हो, उसका प्रयोग उसी फसल के बीज के लिए करें. कल्चर का प्रयोग पैकेट पर अंकित अवधि तक जरूर कर लें. इस अवधि तक इसे ठंडे और सूखे स्थान पर रखें. कल्चर की क्षमता बढ़ाने के लिए फॉस्फेट खाद की पूरी मात्रा मिट्टी में जरूर मिलाएं.

एजोटोबैक्टर कल्चर

इस कल्चर का प्रयोग अनाज वाली फसलों, जैसे- धान, गेहूं, जौ, ज्वार, मक्का, सब्जी वाली फसलों जैसे- टमाटर, आलू, बैंगन और नकदी फसलों जैसे- गन्ना आदि के लिए करते हैं. एजोटोबैक्टर कल्चर के प्रयोग से 25 से 30 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की बचत की जा सकती है जो लगभग 55-65 किलो यूरिया के बराबर है. इसके प्रयोग से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है और जड़ें जमीन के अंदर काफी फैल जाती हैं, जिससे ज्यादा मात्रा में पौधों द्वारा नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है. 

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एजोटोबैक्टर पौधों की जड़ों में होने वाली फफूंद जनित बीमारियों से बचाने में भी सहायक होता है. इस कल्चर के प्रयोग से अनाज वाली फसलों में 10 से 20 प्रतिशत और सब्जी फसलों में 10 से 15 प्रतिशत तक पैदावार में वृद्धि होती है. इससे उपचार करने का तरीका राइजोबियम कल्चर की तरह ही है. बिचड़ों के उपचार के लिए कल्चर के घोल में बिचड़ों की जड़ों को 10-15 मिनट तक डुबोकर रोपाई करें.

 

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