आपने ड्रिप सिंचाई सिस्टम के बारे में जरूर सुना होगा. ये भी सुना होगा कि इससे पानी की बचत होती है. आपको ये भी पता होगा कि इसे बनाने के लिए पाइपों और अन्य जरूरी चीजों की जरूरत होती है. लेकिन क्या आपको ये पता है कि देश का एक ऐसा राज्य भी है जहां ड्रिप सिंचाई सिस्टम बनाया जाता है, लेकिन उसमें पाइप नहीं लगती. उसमें पाइप वाले ड्रिप से बहुत कम खर्च आता है, लेकिन उसका काम लाजवाब होता है. यह ड्रिप सिस्टम बांस से बनता है और इसे बनाते हैं मेघालय के किसान. यह सिस्टम आज से नहीं बल्कि 200 साल से अपनाया जा रहा है. आइए बांस वाले इस ड्रिप सिस्टम के बारे में मसझ लेते हैं.
दरअसल, मेघालय के आदिवासी किसान बांस ड्रिप सिस्टम को अपनाते हैं. इसमें प्लास्टिक की पाइप के बदले बांस की खोखली नली का इस्तेमाल करते हैं और उसी से पानी को एक से दूसरी जगह तक पहुंचाया जाता है. पानी को तालाब या झील से खेतों तक पहुंचाया जाता है.
इसमें पानी का मुख्य स्रोत किसी ऊंचे स्थान पर होता है. वहां से पानी को नीचे किसी छोटे स्थान पर लाया जाता है जिसमें बांस के सिस्टम का उपयोग होता है. फिर खेत तक बांस की नालियों के जरिये पानी पहुंचाया जाता है, वह भी बूंद-बूंद में. मुख्य स्रोत से पानी 18-20 लीटर प्रति मिनट की दर से चलता है जबकि उसे पौधे तक 20-80 बूंद प्रति मिनट की दर से पहुंचाया जाता है. इस पूरे सिस्टम में बांस के चैनल, सपोर्ट स्ट्रक्चर और डाइवर्जन पाइप लगाए जाते हैं.
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इसमें बांस का स्ट्रक्चर इस ढंग से बनाया जाता है कि पानी की बर्बादी न के बराबर होती है. मेघालय के उन इलाकों में यह सिस्टम लगाया जाता है जहां की मिट्टी में पानी रोकने की क्षमता बहुत कम होती है. ऐसे इलाकों में जमीन से पानी निकाल कर सिंचाई करना भी मुश्किल होता है, इसलिए बांस से बने ड्रिप सिस्टम से किसान खेतों में सिंचाई करते हैं.
इसमें बांस के चैनल के जरिये पानी को सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है. इससे पानी की बचत होती है और भाप या लीकेज से बर्बादी रुकती है. इससे पानी का अधिक से अधिक इस्तेमाल हो जाता है.
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