उत्तर प्रदेश में हर रोज बड़ी संख्या में श्मशान घाट में शव को जलाने में लकड़ी का प्रयोग होता है. लकड़ी के जलने से जहां वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ रही है तो वहीं जमीन पर हरियाली में भी तेजी से कमी आ रही है. यूपी के शाहजहांपुर में हरित शवदाह प्रणाली को तैयार किया जा रहा है. नगर निगम की ओर से जिले में तीन श्मशान घाटों पर ग्रीन क्रीमेशन सिस्टम लगाया जा रहा है. इस सिस्टम के लगाने से 60 फ़ीसदी तक लकड़ी की बचत होगी. ऐसे में जिले की हरियाली भी बचेगी.
भारत सरकार के सहयोग से हरित शवदाह प्रणाली की शुरुआत सबसे पहले हरिद्वार में हुई फिलहाल अब तक सात राज्यों में 54 से अधिक यूनिट का संचालन हो रहा है.
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उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में भारत सरकार के सहयोग से हरित शवदाह प्रणाली की शुरुआत होने जा रही है. जिले में शमशान घाट पर शव को जलाने में होने वाली लकड़ी की खपत को कम करने के लिए नगर निगम ने शहर के तीन शमशान घाटों पर ग्रीन क्रीमेशन सिस्टम लगाने की तैयारी शुरू करती है. जिले में खन्नोत घाट , गर्रा नदी घाट और गौटिया स्थित मोक्ष धाम पर ग्रीन क्रीमेशन सिस्टम लगाया जा रहा है. इस प्रणाली को लगाने से 60 फ़ीसदी से ज्यादा लकड़ी की बचत होगी. शव को जलाने में 3 से 5 कुंतल तक लकड़ी की खपत होती है. शवदाह के लिए प्रयोग होने वाली लकड़ी की कीमत 800 से लेकर ₹1000 प्रति क्विंटल होती है. ऐसे में शव जलाने वाले व्यक्ति की दो से ₹3000 तक की बचत भी होगी.
शाहजहांपुर के नगर आयुक्त संतोष कुमार शर्मा ने बताया कि हरित शवदाह प्रणाली को शहर के तीन श्मशान घाटों पर लगाए जाने का निर्णय हुआ है. इस प्रणाली से शव जलाने में लकड़ी की खपत 60 फ़ीसदी तक कम होगी.
श्मशान घाट पर शव को जलाने में परंपरागत तरीके से लकड़ी का प्रयोग होता है. वहीं अब भारत सरकार के सहयोग से पूरे देश में ग्रीन क्रीमेशन सिस्टम लगाया जा रहा है जिसको हरित शवदाह प्रणाली कहा जा रहा है. दोनों ही प्रणालियों में कोई विशेष अंतर नहीं है. अंतर इस बात का है की परंपरागत शवदाह जमीन पर होता है जबकि हरित शवदाह प्रणाली में एक फ्रेम पर रख कर शव को जलाया जाता है.
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