Word ocean day: हर साल 8 जून को मनाया जाता है जिसका उद्देश्य लोगों में महासागरों के महत्व और समुद्री संसाधनों के संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाना है.महासागर न केवल पानी का स्रोत हैं, बल्कि भोजन और पोषण का भी स्रोत हैं. कई लोगों की आजीविका महासागरों से जुड़ी हुई है .एक तऱफ खेती लायक जमीन कम होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर जल संसाधनों की कमी होती जा रही है. इन सभी अनिश्चित स्थितियों में समुद्र के प्रभावी प्रबंधन द्वारा बेहतर लाभ भी कमाया जा सकता है और समुंद्र को कोई क्षति भी नही पहुंचेगी। इसलिए ना केवल समुद्र से मछलिया पकड़ें ,बल्कि समुंद्र में मछलियां पाले भी क्योंकि आधुनिक तकनीक के जरिए मछली पालन कर देश में मछली की बढ़ती मांग को भी पूरा किया जा सकता है. इससे मछुआरों को भी बड़े पैमाने पर रोजगार मिलेगा .
भारतीय मृदा और जल संरक्षण संस्थान देहरादून के फीशरीज के प्रधान वैज्ञानिक और केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान कोच्चि, केरल मे कार्य चुके डॉ एम मुरुगानंदम ने किसान तक को बताया कि हाल के वर्षों में दुनिया भर में समुद्री खाद्य उत्पादन का तेजी से विस्तार हुआ है.समुद्र में खेती को एक प्रमुख विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, इसमें समुद्र में केज सिस्टम से मछली पालन करना एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर रहा हैं जिसे ओपेन सी केज फिश फार्मिंग कहा जाता है .उन्होंने बताया कि भारत विशाल समुद्री मात्स्यिकी संसाधनों से संपन्न देश है ।हमारे देश मे 8,118 किमी लंबी तटीय रेखा है. जिसमें देश के लगभग 66 तटीय जिले के 3433 गांव के 40 लाख लोग मछली करोबार से जुड़े हुए है. आज के समय में अपने देश में एक करोड़ चालीस लाख टन मछली का उत्पादन हो रहा है और समुद्री मछली पकड़ने का स्तर लगभग 35 लाख टन सलाना पर स्थिर हो रहा है , मछलियो की मांग देखते हुए साल 2030 तक देश में लगभग एक करोड़ 80 लाख टन मछलियों का उत्पादन करने की जरूरत है.
डॉ एम मुरुगानंदम ने किसान तक से बातचीत के दौरान बताया कि देश में मछली उत्पादन को लगभग 50 लाख टन बढ़ाना है।और यह आंकड़ा दर्शाता है कि केवल समुद्र में मछली पकड़ने से हमारी जरूरते पूरी नही होगी.।इसलिए अब समुद्र में मछलियों को पकड़ने केअलावा समुद्र में मछलियों को पालना औऱ बढ़ाना भी जरूरी है ताकि भविष्य की जरूरते पूरी हो सकें इसके लिए आईसीएआर-सीएमएफआरआई, कोच्चि और एनएफडीबी, हैदराबाद संस्थानों ने समुद्र में मछली पालन को बढाना देने की दिशा मे लगातार काम कर रहे हैं. समुद्र में ओपन केज कल्चर तकनीक को अपनाया जा रहा है . इस तकनीक में गोलाकार और चौकोर आकार का तैरता हुआ केज होता है औऱ ये केज फ्लोटिंग फ्रेम, जाल और हाईडेंसिटी पॉलिथिन से बना होता है, जिसे समुद्र में स्थापित किया जाता है. इस केज का इस्तेमाल समुद्र में मछली पालन के लिए किया जाता है.
डॉ .एम. मुरुगानंदम ने बताया कि, समुद्र में मछली पालन के लिए दो प्रकार के केज का इस्तेमाल किया जाता हैं. एक वो जो स्थिर रहें यानी एक ही जगह पर रहें और दूसरा वो जो पानी में तैरने वाले होते हैं. एक केज की घेरे की लंबाई छह मीटर , चौड़ाई चार मीटर और गहराई चार मीटर होती है फ्लोटिंग ब्लॉक का लगभग तीन मीटर हिस्सा पानी में डूबा रहता हैऔर एक मीटर ऊपर तैरते हुए दिखाई देता है. केज फ्रेम में तीन जाल का उपयोग किया जाता है, एक केज जाल के अन्दर होता है ,जिसमें मछली का पालन किया जाता है. दूसरा जाल केज के चारो तरफ लगाया जाता है, जिससे कि समुद्र की समुद्री जीव जन्तुओं से मछलियों को बचाया जा सकें. तीसरा केज के उपर लगाया जाता है जिससे कि पक्षियों से मछलियों की रक्षा की जा सकें.
डॉ. एम. मुरुगानंदम बताया कि डॉ एम मुरुगानंदम ने कहा कि कहा की केज सिस्टम में ज्यादा डिमांड औऱ अधिक मुल्य वाली मछलियों पाला जाता है. उन्होंने कहा कि आईसीएआर-सीएमएफआरआई, कोच्चि और एनएफडीबी, हैदराबाद जैसे सस्थानो ने जैसी समुद्री मछलियों की प्रजाति की कोबिया और पोम्पानो की हेचरी से मछलियो का बीज उत्पादन समुद्र में मछली पालन का बढावा दे रही है.इसके अलावा, इंडियन कैम्पनों सिल्वर कैम्पनों, कोबिया सैनेपर और सीबास जैसी मछलियों का पालन किया जाता है .जिसकी बाजार में कीमत 300 से 400 रूपयो किलो है इससे बड़े पैमाने पर मछुआरों की आजीविका में मदद मिलेगी और खाद्य उत्पादन में वृद्धि होगी.
एक केज की लागत लगभग 110 घनमीटर की होती है. खर्च लगभग तीन लाख रूपये आता है ,जिसको आसानी से लगभग आठ से दस साल तक इस्तेमाल किया जा सकता हैं.मोटे तौर पर, से 4 से 5 महीने मे लगभग 1800-2400 किलोग्राम मछली का उत्पादन होता है। एक केज से लगभग शुद्ध आय 2 लाख रूपए की होती है .इस समय गुजरात से लेकर पश्चिम बंगाल जैसे समुद्रीय तटीय राज्यो तक मे इस विधि से मछली पालन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस समय तीन हजार दो सौ केज द्वारा समुद्र में मछली पालन किया जा रहा है औऱ लगभग 10 हजार टन मछलियों का उत्पादन हर साल किया जा रहा हैं.
केन्द्र सरकार की तरफ से चलाई जा रही मत्स्य संपदा योजना में ओपन सी केज सिस्टम पर ज्यादा जोर दिया जा रहा हैं . इस तकनीक को बढ़ावा देने लिए सरकार की तरफ से 40 से लेकर 60 फीसदी तक सब्सिड़ी का प्रवधान किया गया है
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