देश के मक्का किसान परेशान हैं. उनकी यह चिंता दोहरी है. एक तो इस बार मक्के की इतनी बंपर पैदावार हुई है कि किसान उसे संभाल नहीं पा रहे. किसानों के पास मक्का रखने की जगह नहीं है. मंडियां भी इससे अटी पड़ी हैं. बंपर पैदावार का नतीजा ये हुआ है कि मांग से अधिक सप्लाई है. ऐसे में मक्के का भाव गिरना लाजिमी है. अभी यह हालात देखे जा रहे हैं. गिरते दाम के बीच किसानों को यह चिंता सताए जा रही है कि उनकी उपज का क्या होगा. क्या उनकी लागत भी निकल पाएगी या औने-पौने दाम पर ही फसल बेचनी होगी. दूसरी बड़ी चिंता मक्के का निर्यात घटने की है. दुनिया के कई देशों में इस बार मक्का बंपर हुआ है जिससे भारत के मक्के की मांग गिरती जा रही है.
आने वाले दिनों में मक्के का दाम बढ़ने की संभावना इसलिए भी नहीं है क्योंकि बड़े-बड़े एक्सपोर्टर और व्यापारियों ने पहले ही इसे खरीद कर स्टॉक कर लिया है. जब मक्के का भाव 1700 रुपये क्विंटल चल रहा था, उसी समय व्यापारियों ने इसे खरीद लिया क्योंकि उनके लिए यह फायदे का सौदा था. स्टॉक भरे होने की वजह से अब नई खरीदारी की संभावना कम ही है. इसलिए किसान और भी अधिक परेशान हैं.
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आइए अब बात करते हैं मक्के के निर्यात की. एक्सपर्ट मानते हैं कि इस साल मक्के का निर्यात तेजी से गिर सकता है क्योंकि मुख्य उत्पादक देशों में इसकी बंपर उपज है. 'बिजनेसलाइन' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल दुनिया में 1200 लाख टन से अधिक मक्के का उत्पादन बढ़ सकता है. ऐसी सूरत में भारत से मक्के का निर्यात 10 फीसद से अधिक गिरने की आशंका है.
अमेरिकी कृषि विभाग के मुताबिक, भारत से इस साल मक्के का निर्यात 40 लाख टन से गिरकर 36 लाख टन पर जा सकता है. कुछ ऐसी ही गिरावट की आशंका 'फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी' यानी कि APEDA ने भी जताई है. ऐसे में निर्यात घटने से किसानों को सबसे अधिक घाटा झेलना होगा क्योंकि उनकी उपज की बिक्री कम हो जाएगी. रेट भी गिरने की आशंका प्रबल होगी.
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दुनिया के देशों में मक्के के दाम में गिरावट का असर भारत में भी देखा जा रहा है. यहां भी मक्के की दर तेजी से गिरी है. कृषि मंत्रालय की एजेंसी एगमार्कनेट के अनुसार अभी देश में मक्के का औसत भाव 1800 रुपये के आसपास चल रहा है जबकि सरकार ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 1962 रुपये तय किया है. किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल रहा क्योंकि पूरी दुनिया में मक्के के भाव में गिरावट है. हाल के दिनों में मक्का 1700 रुपये क्विंटल भी बिका है. जिन किसानों के पास मक्का रखने की जगह नहीं है, वे जल्दी में अपनी उपज बेचकर निकल गए हैं.
भारत में धान और गेहूं के बाद सबसे अधिक मक्के की खेती होती है. सरकार इसीलिए किसानों को मक्के पर अच्छी-खासी एमएसपी देती है. सरकार इसकी खेती को पहले से अधिक प्रोत्साहन दे रही है क्योंकि आने वाले दिनों में इसकी मदद से इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी. अभी इथेनॉल बनाने के लिए गन्ने का सबसे अधिक प्रयोग होता है. पेट्रोल में 20 परसेंट इथेनॉल मिलाने के लिए इसका उत्पादन भी बढ़ाना होगा. ऐसे में केवल गन्ना ही विकल्प नहीं हो सकता. इसके लिए मक्के को भी इस्तेमाल में लिया जाएगा. लेकिन किसान इस चिंता में हैं कि जब मक्के की एमएसपी ही नहीं मिलेगी, तो वे इसकी खेती के लिए कैसे प्रोत्साहित होंगे.
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