आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने शुक्रवार को विधानसभा में वादा किया है कि वह हाल ही में हुई भारी बारिश और बाढ़ में नुकसान झेलने वाले हर किसान की मदद करेंगे. बारिश की वजह से एक लाख एकड़ से ज्यादा के धान के खेत पानी में डूब गए हैं. राज्य में पिछले 10 दिनों से जारी बारिश ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. मुख्यमंत्री नायडू ने कृषि मंत्री के अच्चन्नायडू और गृह मंत्री वांगलापुडी अनिता को बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा करने और पीड़ितों से मिलने का निर्देश भी दिया है.
सीएम नायडू ने विधानसभा में कहा, 'जब प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, तो लोगों की मदद करना सरकार की पूरी जिम्मेदारी होती है. मैं सभी बाढ़ पीड़ितों को भरोसा दे रहा हूं कि हम हर परिवार को बचाएंगे.' धान के खेतों के अलावा, 3,000 एकड़ से ज्यादा मकई के खेत और 960 एकड़ से ज्यादा कपास के खेतों को भी भारी बारिश की वजह से नुकसान पहुंचा है. माना जा रहा है कि यह संख्या और बढ़ सकती है क्योंकि ये आंकड़े सिर्फ शुरुआती अनुमान हैं.
यह भी पढ़ें-इन 3 राज्यों में बारिश से नहीं मिलेगी राहत, अगले 5 दिनों का अलर्ट जारी
25 किलो चावल और एक लीटर खाना पकाने के तेल समेत खाद्यान्नों की आपूर्ति के अलावा, राज्य सरकार बाढ़ से प्रभावित हर परिवार को 3,000 रुपये की आर्थिक मदद भी देगी. बाकी विचार-विमर्श के बाद, अध्यक्ष सी अय्यन्नापात्रुडु ने प्रथम विधानसभा सत्र की दूसरी बैठक के पांच दिन बाद सदन की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी. मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि आंध्र प्रदेश में बाढ़ प्रभावित किसानों को पूर्व में दी गई सहायता राशि से ज्यादा सहायता मिलेगी.
यह भी पढ़ें-Kharif Crops Sowing: धान और कॉटन के एरिया में गिरावट, दलहन-तिलहन और मोटे अनाजों की बुवाई बढ़ी
शुरुआती अनुमानों के अनुसार, राज्य में लगातार बारिश से एक लाख एकड़ से ज्यादा की फसलें प्रभावित हुई हैं. जबकि राज्य के दूसरे हिस्सों की तुलना में गोदावरी जिलों में नुकसान ज्यादा हुआ है. इन जिलों में नदियों के पानी में बह जाने से फसलें, खास तौर पर धान की फसलें, बहुत ज्यादा बर्बाद हो गई हैं. इन जिलों के 200 से ज्यादा गांव बारिश की वजह से डूब गए हैं. फसलों के अलावा, बारिश की वजह से राज्य के अलग-अलग हिस्सों में कई पुलिया, सड़कें और बिजली नेटवर्क को भी अच्छा-खासा नुकसान हुआ है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today