हरियाणा में कपास उत्पादक किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. उनकी फसल गुलाबी सुंडी और बहुत अधिक गर्मी की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. इसके चलते हिसार, सिरसा, फतेहाबाद, जींद और भिवानी जिलों के कपास बेल्ट में किसानों को काफी नुकसान हुआ है. कृषि विभाग के अधिकारियों और चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, इस खरीफ सीजन में भी फसल को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, ये लगातार तीसरा सीजन है जिसमें फसल को गुलाबी सुंडी और गर्मी से फसल को नुकसान पहुंचा है. हिसार, सिरसा, फतेहाबाद और आसपास के जिलों में राज्य के कुल कपास क्षेत्र का लगभग 70 फीसदी हिस्से में इसकी खेती की जाती है.वैज्ञानिकों का कहा है कि गुलाबी सुंडी के अलावा, तीव्र गर्मी ने भी पौधों को जला दिया, जिससे लगभग 30-40 फीसदी नुकसान हुआ है. सिरसा जिले के नाथूसरी चोपटा ब्लॉक के दुकड़ा गांव के किसान दलबीर सिंह ने हाल ही में पौधों में गुलाबी सुंडी देखने के बाद एक एकड़ से अधिक की अपनी पूरी फसल नष्ट कर दी.
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एक अन्य किसान दिलावर सिंह ने कहा कि पौधों में गुलाबी सुंडी दिखाई दे रही थी. उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों ने हमें स्प्रे का इस्तेमाल करने की सलाह दी है, लेकिन हमें लगता है कि इसके लिए अभी बहुत जल्दी है.सिरसा जिले में कृषि विभाग के एक अधिकारी ने माना कि गुलाबी सुंडी की रिपोर्ट मिली है. उन्होंने कहा कि पौधे फूलने की अवस्था में होते हैं, जब सुंडी सतह पर आती है. उन्होंने कहा कि विभाग के अधिकारियों और सिरसा के केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान (सीआईसीआर) की टीम ने खेतों का दौरा किया और किसानों को पिछले साल के कपास के पौधों की टहनियों को नष्ट करने की सलाह दी, जो अक्सर सुंडी को आगे ले जाती हैं.
उन्होंने कहा कि किसानों ने सलाह को नजरअंदाज कर दिया, जिसके चलते सुंडी फिर से सतह पर आ गई. खेतों का निरीक्षण करने वाली टीम का हिस्सा रहे एचएयू के एक वैज्ञानिक ने कहा कि राजस्थान की सीमा से लगे इलाकों में गुलाबी सुंडी की रिपोर्ट मिली है. उन्होंने कहा कि पिछले साल राजस्थान में कपास में गुलाबी सुंडी के हमले के कारण अधिक नुकसान हुआ था. यह शुरुआती चरण में सीमावर्ती बेल्ट में सतह पर आ रहा है और आगे हरियाणा के अंदर भी फैल सकता है. एक अन्य वैज्ञानिक डॉ. करमल सिंह ने माना कि लंबे समय तक चलने वाली गर्मी ने पौधों को कुछ नुकसान पहुंचाया है. प्रति एकड़ लगभग 6,000-8,000 पौधे हैं. लेकिन इस साल प्रति एकड़ पौधों की संख्या घटकर 4,000 प्रति एकड़ रह गई है.
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