केंद्र सरकार चुनावी मौसम में खाद्य पदार्थों की कीमतों को लेकर बेहद सतर्क है. क्योंकि खाद्य मंहगाई दर 8.55 फीसदी के पार चल रही है, जो पहले कम थी. दालों की महंगाई दोहरे अंक में है. ऐसे में सरकार खाद्य पदार्थों के निर्यात पर अंकुश लगाकर घरेलू आपूर्ति बरकरार रखने के मूड में है. बीते दिनों चीनी उत्पादक संगठनों ने निर्यात की छूट देने की मांग की थी, जिस पर सरकार की ओर से कहा गया था कि जून तक इस पर कोई कदम उठाने की योजना नहीं है. बता दें कि पहले से ही चावल, गेहूं, प्याज समेत कई अन्य खाद्य वस्तुओं के निर्यात पर सरकार ने रोक लगा रखी है.
चुनाव को देखते हुए केंद्र सरकार खाद्य वस्तुओं की कीमतों को लेकर पहले से ही सतर्कता बरत रही है, अब जून के बाद भी कीमतों को नियंत्रित रखने पर काम किया जा रहा है. बीते दिनों चीनी उद्योग से जुड़े एक संगठन ने हाल ही में सरकार से कुछ चीनी निर्यात की अनुमति देने का आग्रह किया, तो सरकार की ओर से दो टूक शब्दों में कहा गया कि जून के पहले सप्ताह तक इस मुद्दे पर जोर न दिया जाए. कारण स्पष्ट था कि सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती जिससे आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने की जरा भी आशंका हो.
जून के बाद भी कीमतें कम रखने की प्लानिंग है. इसी क्रम में जून के मध्य से सरकारी भंडार से गेहूं की बिक्री शुरू करना है. इसके अलावा सरकार ने चावल, गेहूं और प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. जबकि, चीनी पर तय मात्रा के साथ प्रतिबंध लगा है. क्योंकि कुछ देशों के अनुरोधों पर उन्हें कुछ मात्रा को छोड़कर कोई परमिट जारी नहीं किया गया है. इसी तरह चावल में केवल बासमती और 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क के साथ उबले हुए गैर बासमती किस्म को एक्सपोर्ट करने की अनुमति है, जबकि अन्य सभी किस्मों का निर्यात प्रतिबंधित है.
कुछ सप्ताह पहले जब प्याज किसानों ने निर्यात प्रतिबंध जारी रखने का विरोध किया तो सरकार ने कृषि कीमतों को बढ़ावा देने के लिए किसानों से बाजार दरों पर 5 लाख टन की खरीद की घोषणा की, लेकिन निर्यात प्रतिबंध हटाने से इनकार कर दिया. चीनी के अधिक उत्पादन की स्थिति में इथेनॉल बनाने पर इस्तेमाल किया जाएगा. गेहूं पर सरकार निर्यात के बजाय सबसे पहले सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत आवंटन बहाल करना चाहेगी.
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