कपास एक रेशेदार फसल है. इसका इस्तेमाल अब कपड़े बनाने के लिए एक प्राकृतिक फाइबर के तौर पर किया जाता है. मध्यप्रदेश (MP) में कपास सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में लगाया जाता है. भारत का लगभग 75 प्रतिशत कपास क्षेत्र निमाड़ क्षेत्र में आता है. इसके अलावा धार, झाबुआ, देवास और छिंदवाड़ा जिलों में भी कपास की फसल उगाई जाती है. मध्यम से भारी बलुई दोमट और गहरी काली मिट्टी जिसमें पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ और जल निकासी व्यवस्था हो, वो मिट्टी कपास के लिए अच्छी होती है. कपास की खेती कर रहे किसानों को ये सलाह दी जाती है कि वो कभी भी खाली जगहों पर कपास की बुवाई साधारण बीज से ना करें इससे काफी नुकसान हो सकता है.
पुराने समय में क्षेत्र में खंडवा-2, खंडवा-3, विक्रम, जवाहर, ताप्ती आदि देशी कपास की किस्मों की भी खेती की जाती थी, लेकिन उनकी कम उपज के कारण बाद में संकर बीजों का उपयोग किया जाने लगा. कुछ समय बाद हाइब्रिड कपास में डेडू बोरर कैटरपिलर का हमला बहुत बढ़ गया. इस समस्या को देखते हुए वैज्ञानिकों ने संकर कपास में बीटी नामक जीन शामिल किया, जिसके परिणामस्वरूप इल्लियों का हमला रुक गया. आजकल बीटी कपास किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है. बी.टी. कपास की अधिकतम उपज दिसम्बर के मध्य तक हो जाती है.
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बीज पैकेट के साथ दिये गये साधारण (गैर-बीटी) बीज का उपयोग खाली स्थान के लिए नहीं किया जाना चाहिए. बल्कि गैर-बीटी बीजों का प्रयोग कर खेतों की मेड़ों पर दूसरे फसल के रूप में उगाना चाहिए ताकि मुख्य फसल पर रस चूसने जैसे कीटों का आक्रमण कम हो और मुख्य फसल सुरक्षित रहे. इसी प्रकार गेंदे की फसल को जाल वाली फसल के रूप में उगाना चाहिए ताकि मुख्य फसल पर रस चूसने वाले कीटों का आक्रमण कम हो और मुख्य फसल सुरक्षित रहे. खाली जगह को भरने के लिए उसी किस्म के बीज का प्रयोग करना चाहिए जो पहले बोया गया हो.
कपास की खेती के लिए भूमि की तैयारी के समय से ही कपास को पोषण की आवश्यकता होती है. इसलिए खेत की तैयारी के बाद असिंचित खेती के लिए 3.5x1.5 फीट और सिंचित खेती के लिए 3.5x3.5 या 4x4 फीट की कतार बनाकर पौधे लगाने चाहिए. पौधे की दूरी असिंचित में 1.5-2 और सिंचित में 3.5 से 4 फीट होनी चाहिए, 5 से 6 इंच की दूरी पर गहरा निशान बनाकर और अच्छी तरह से पकी हुई गोबर की खाद और जिप्सम 2 बैग प्रति बीघे का उपयोग करें ताकि खाद मिट्टी में फैली हुई हो. इससे सूक्ष्म पोषक तत्वों को नुकसान नहीं होता है और खाद का उपयोग फसल के लिए सही ढंग से किया जा सकता है.
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इस विधि से एक एकड़ में 10 से 15 क्विंटल गोबर की खाद मिलती है और बची हुई गोबर की खाद को खेत में या पेड़ की छाया के नीचे थोड़ा सा पानी छिड़क कर मिट्टी से ढक देना चाहिए ताकि इसका उपयोग खड़ी फसल में किया जा सके.
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