मसाला फसलों में सौंफ का अपना विशेष स्थान है. यह एक सुगंधित मशाला के रूप में भी जाना जाता है. इसका उपयोग अलग-अलग व्यंजनों और औषधियों में किया जाता रहा है. हाल के दिनों में यह मसाला उत्पादन के रूप में काफी लोकप्रिय हो गया है. इसने हर घर और रेस्तरां की रसोई में अपनी जगह बना ली है. केसर और वेनिला की तरह सौंफ भी एक महंगा मसाला है. किसान सौंफ की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि किसान इस तरीके से सौंफ की सिंचाई करें ताकि अच्छी उपज मिल सके. क्या है वो खास तरीका आइए जानते हैं.
आपको बता दें सौंफ की खेती खरीफ और रबी दोनों मौसमों में की जा सकती है. खरीफ मौसम में इसकी बुआई जुलाई में और रबी मौसम में इसकी बुआई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक की जा सकती है. सौंफ की खेती के लिए खेत तैयार करते समय पहली जुताई के बाद मिट्टी को पलट दें और फिर 3 से 4 जुताई करके खेत को समतल बना लें. फसल की आखिरी जुताई के समय 150 से 200 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद को मिला कर पलट देना चाहिए ताकि खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाए. इसकी अच्छी पैदावार के लिए 20 से 30 डिग्री का तापमान बहुत जरूरी माना जाता है.
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जब सौंफ पूरी तरह विकसित हो जाए और बीज पूरी तरह पककर सूख जाएं तो गुच्छों की कटाई कर लेनी चाहिए. कटाई के बाद इसे एक या दो दिन तक धूप में सुखाना चाहिए और हरा रंग बनाए रखने के लिए इसे 8 से 10 दिन तक छाया में सुखाना चाहिए. कटाई के बाद गुच्छों को छाया में अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए.
सौंफ की फसल को सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है. अगर पहले मिट्टी में नमी की मात्रा कम हो तो बुआई या रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए. इस समय क्यारियों में पानी का बहाव तेज नहीं होना चाहिए, नहीं तो बीज बहकर क्यारियों के किनारों पर जमा हो सकता है. पहली सिंचाई के 8-10 दिन बाद दूसरी सिंचाई कर सकते हैं. ताकि सौंफ अंकुरित हो सके. दो सिंचाईयों के बाद मिट्टी की जल धारण क्षमता, फसल की अवस्था और मौसम के आधार पर 10 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. सौंफ को औसतन 7-9 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है.
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