वियना स्थित कॉम्प्लेक्सिटी साइंस हब (सीएसएच) और ऑस्ट्रिया सप्लाई चेन इंटेलिजेंस इंस्टीट्यूट (एएससीआईआई) ने संयुक्त रूप से एक शोध पत्र जारी किया है. इस शोध में दोनों ने चावल आयातक देशों को अपनी डिमांड को पूरा करने के लिए किसी एक सोर्स पर निर्भर नहीं रहने की सलाह दी है. सीएसएच और एएससीआईआई ने कहा है कि जो देश अपनी जनता का पेट भरने के लिए चावल आयात को लेकर सिर्फ एक स्रोत पर डिपेंडेंट हैं, अब उन्हें दूसरे निर्यातकों की तरफ भी रूख करना चाहिए.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, सीएसएच और एएससीआईआई ने भारत द्वारा चावल निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों पर भी अपनी राय रखी है. उनके अनुसार, एक देश पर चावल आयात के लिए निर्भर रहने पर उसके किसी एक राजनीतिक फैसले से कीमतें बढ़ जाएंगी. इससे खरेलू मार्केट में चावल की किल्लत हो जाएगी. ऐसे में आयातकों को चावल निर्यात को लेकर कई नए स्त्रोत की तलाशन करने की जरूरत है.
सीएसएच और एएससीआईआई ने रिपोर्ट में कहा है कि भारत द्वारा गैर- बासमती चावल के निर्यात पर लगाया गया प्रतिबंध अगले साल भी जारी रहने की उम्मीद है. ऐसे में कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है, क्योंकि भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है, जिसकी पूरे विश्व के निर्यात में हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है.
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रिपोर्ट में कहा गया है कि कई मध्य पूर्वी और अफ्रीकी देशों के साथ-साथ करीबी पड़ोसी देश भी चावल आयात के लिए भारत पर बहुत अधिक निर्भर हैं. दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक देश भारत ने जुलाई 2023 में गैर-बासमती और टूटे हुए सफेद चावल पर प्रतिबंध लगा दिया और 20 प्रतिशत शुल्क के साथ केवल उबले चावल के शिपमेंट की अनुमति दी. बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य भी 950 डॉलर प्रति टन है, जिसके नीचे कोई अनुबंध पंजीकृत नहीं किया जा सकता है.
भारत में, पिछले एक साल में चावल की कीमत में 11.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वैश्विक स्तर पर दूसरे और तीसरे सबसे बड़े चावल निर्यातक थाईलैंड और वियतनाम में चावल की बेंचमार्क कीमतें क्रमशः 14 प्रतिशत और 22 प्रतिशत बढ़ी हैं. इसमें कहा गया है कि चावल आयात देशों का एक दीर्घकालिक, विविध समूह स्थापित करना चाहिए, जो वैश्विक मूल्य श्रृंखला में एक स्थिर और टिकाऊ आपूर्ति प्रदान करता हो.
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रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर भारत द्वारा चावल निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाता है, तो अफ्रीकी और मध्य पूर्वी देशों को गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ेगा, जो जिबूती के मामले में प्रति व्यक्ति 304 किलोग्राम तक पहुंच जाएगा. इसमें कहा गया है कि जिबूती, गिनी, नेपाल, बेनिन और लाइबेरिया ऐसे देश हैं, जहां प्रति व्यक्ति चावल की कुल हानि सबसे अधिक है.
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