
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक, प्रोसेसर और उपभोक्ता है. इसके बावजूद इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं है. क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पादन से ज्यादा मांग है. दालों के मामले में देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है. भारत में चने की बंपर पैदावार हो रही है लेकिन अरहर, मसूर और उड़द की कमी है. ऐसे में हम दालों के बड़े आयातक भी हैं. इसके बावजूद वर्तमान खरीफ सीजन में दलहन फसलों की बुवाई पिछले साल के मुकाबले कम हुई है. इस साल 14 जुलाई तक सिर्फ 66.93 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दालों की बुवाई हुई है, जबकि 2022 में इसी तारीख तक 77.17 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी. इस प्रकार पिछले वर्ष की तुलना में इस बार अब तक दलहन फसलों की बुवाई 10.25 लाख हेक्टेयर कम क्षेत्र में हुई है.
देश में दलहन फसलें करीब 140 लाख हेक्टेयर में बोई जाती हैं. ऐसे में इस बार बुवाई सिर्फ 50 फीसदी ही हो सकी है. क्योंकि कुछ राज्यों में बाढ़ है, अतिवृष्टि है और कुछ में सूखे की नौबत है. कर्नाटक और महाराष्ट्र दलहन फसलों के बड़े उत्पादक हैं और दोनों में बुवाई पिछड़ी हुई है. कर्नाटक में 14 जुलाई तक पिछले साल की तुलना में दलहन फसलों का रकबा 8.74 लाख हेक्टेयर कम था. जबकि महाराष्ट्र 4.99 लाख हेक्टेयर एरिया कम था. ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, हरियाणा, बिहार और आंध्र प्रदेश में भी कम बुवाई के आंकड़े सामने आए हैं. हालांकि, राजस्थान में पिछले साल के मुकाबले 6.23 लाख हेक्टेयर बुवाई बढ़ गई है. उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी दलहन फसलों का एरिया पिछले साल से ज्यादा है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत में सभी तरह की दालों का उत्पादन 2022-23 में 278.10 लाख टन हुआ है. जो कि अब तक का रिकॉर्ड है. पिछले एक दशक से दलहन फसलों की खेती बढ़ रही है. लेकिन, उत्पादन भी रेकॉर्ड बना रहा है और मांग बढ़ने का भी रिकॉर्ड ही बन रहा है. बताया गया है कि इस समय देश में सभी तरह की दालों का कुल कारोबार लगभग 2 लाख करोड़ रुपये का है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार साल 2022-23 के दौरान कुल दलहन उत्पादन 278.10 लाख टन है जो पिछले वर्ष के 273.02 लाख टन उत्पादन की तुलना में 5.08 लाख टन अधिक है. पिछले पांच वर्षों के औसत दलहन उत्पादन की तुलना में इस बार दलहन उत्पादन 31.54 लाख टन अधिक है.
कमोडिटी विशेषज्ञों के अनुसार देश में मसूर की दाल के उत्पादन और मांग में करीब 8 लाख टन का अंतर है. जबकि उड़द दाल की मांग और उत्पादन में 5 लाख टन का अंतर बताया गया है. अरहर दाल के प्रोडक्शन और डिमांड में लगभग 7 लाख टन का अंतर आ रहा है. इसे पूरा करने के लिए सरकार मोजांबिक, म्यांमार और तंजानिया आदि देशों से दाल इंपोर्ट कर रही है. क्योंकि दाल शाकाहारी लोगों का प्रमुख भोजन है. उनके लिए यह प्रोटीन का एक सस्ता सोर्स है. खास बात यह है कि भारत में दलहन फसलों की खेती रबी, खरीफ और जायद तीनों फसल सीजन में की जाती है.
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