भारत बनेगा दुनिया का सबसे बड़ा मसूर उत्पादक देश! कनाडा और ऑस्ट्रेलिया को ऐसे देगा मात

भारत बनेगा दुनिया का सबसे बड़ा मसूर उत्पादक देश! कनाडा और ऑस्ट्रेलिया को ऐसे देगा मात

मसूर का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) साल 2017-18 में 4,250 रुपये प्रति क्विंटल था, जो साल 2023-24 में बढ़कर 6,425 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. कीमत में यह बढ़ोतरी अपने आप में 52 प्रतिशत से भी अधिक है.

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भारत बनेगा दुनिया का सबसे बड़ा मसूर उत्पादक देश! कनाडा और ऑस्ट्रेलिया को ऐसे देगा मातदेश में होगा बंपर मसूर का उत्पादन. (सांकेतिक फोटो)

भारत भले ही अपनी डिमांड को पूरा करने के लिए दलहन का आयात करता है, लेकिन इस साल वह विश्व का सबसे बड़ा मसूर उत्पादक देश बन सकता है. क्योंकि इंडिया में इस साल रिकॉर्ड तोड़ मसूर उत्पादन की उम्मीद है. उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह का कहना कि देश में इस साल लगभग 1.6 मिलियन टन मसूर उत्पादन का अनुमान लगाया गया है. जबकि, विश्व के बड़े मसूर उत्पादक देश कनाडा में इस बार 1.5 मिलियन और ऑस्ट्रेलिया में 1.4 मिलियन टन प्रोडक्शन की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि अगर भारत अपने अनुमान पर खड़ा उतरता है, तो दुनिया का सबसे बड़ा मसूर उत्पादक देश बन जाएगा. 

खास बात यह है कि मसूर का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) साल 2017-18 में 4,250 रुपये प्रति क्विंटल था, जो साल 2023-24 में बढ़कर 6,425 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. कीमत में यह बढ़ोतरी अपने आप में 52 प्रतिशत से भी अधिक है. हालांकि, साल 2018-19 में मसूर का उत्पादन घटकर 1.23 मिलियन टन पर पहुंच गया था. इसके बाद से सरकार किसानों को मसूर की खेती करने के लिए प्रेरित भी कर रही है. साथ ही हर साल एमएसपी में बढ़ोतरी भी कर रही है.

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मसूर का मंडी रेट

वर्तमान में मसूर का मंडी रेट लगभग 6,100- 6,125 रुपये प्रति क्विंटल है, जो एमएसपी से नीचे है. जबकि कुछ महीने पहले यह 7,500- 8,000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास कारोबार कर रहा था. चालू सीजन में, 12 जनवरी तक मसूर का रकबा 19.45 लाख हेक्टेयर था, जो पिछले साल की इसी अवधि के 18.39 लाख हेक्टेयर से 6 प्रतिशत अधिक है. व्यापार सूत्रों ने कहा कि कनाडा ने 1.67 मिलियन टन मसूर उत्पादन का अनुमान लगाया गया था, लेकिन उसने इसे लगभग 30 प्रतिशत कम कर दिया गया है. ऐसे में भारत दुनिया सबसे बड़ा मसूर का उत्पादन करने वाला देश बन सकता है.

दलहन उत्पादन में बनेगा आत्मनिर्भर

रोहित कुमार सिंह ने आगे कहा कि भारत दिसंबर 2027 तक देश को दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रहा है. लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि देश को कुछ समय के लिए दलहन आयात की जरूरत पड़ती है. उन्होंने कहा कि चना उत्पादन के मामले में हम आत्मनिर्भर हैं. खपत से ज्यादा चने का उत्पादन देश में होता है. लेकिन उड़द और तुअर का प्रोडक्शन डिमांड के मुकाबले कम है. ऐसे में हमे जरूरत को पूरा करने के लिए आयात करना पड़ता है. वहीं, ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन (जीपीसी) के अध्यक्ष विजय अयंगर ने कहा कि चूंकि भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है, इसलिए वैश्विक हितधारकों को भारत में लाना एक कनेक्टिंग लिंक बनाना होगा. 

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