भारत में घटते जंगलों के चलते और इनमें घटते खाद्य संसाधनों के कारण कई राज्यों में जंगली जानवरों और इंसानों में संघर्ष के मामले बढ़ रहे हैं. इससे न सिर्फ माल की हानि होती है, बल्कि जानवरों और इंसानों की जान की हानि भी भी होती है. ऐसी ही स्थिति केरल में भी है, जहां किसान हाथियों के खेतों में घुसने से परेशान हैं तो वहीं डेयरी फार्मर्स बूढ़े बाघों के हमले से परेशान हैं. खेती नष्ट होने के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है और राजस्व में कमी आ रही है. साथ ही किसानों को जानवरों से जान के खतरे का डर भी लगा रहता है.
‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल में कई जगहों पर किसान रबर की खेती करने से कतरा रहे हैं, क्योंकि हाथी के हमले का डर बना रहता है. 57 साल के किसान जॉर्ज जोसेफ केरल के कोट्टायम जिले से सटे वन क्षेत्र कोरुथोडु में पिछले 35 साल से अपने दस एकड़ के बागान में रबर की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन अब जंगली हाथियों के कारण रबर की खेती में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, क्योंकि वह हाथी और जंगली सूअरों के आंतक के कारण सुबह के समय बागान पर नहीं जा सकते.
जॉर्ज ने बताया कि वह हफ्ते में एक बार ही रबर की खेती पर ध्यान दे पाते हैं, जिसकी वजह से उन्हें लगभग 40 किलोग्राम प्राकृतिक रबर शीट का नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस समय रबर का भाव 200 रुपये प्रति किलोग्राम मिल रहा है. बीते 2-3 सालों में जंगल से सटे इलाकों में इंसानों और जंगली जानवरों में सघंर्ष की स्थितियां ज्यादा देखनेको मिली है. किसानों के बीच फसल नुकसान, राजस्व में गिरावट, उत्पादकता में गिरावट और जान-माल के नुकसान जैसे खतरे पैदा हुए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, हैरिसन्स मलयालम लिमिटेड के सीईओ संतोष कुमार ने बताया कि पिछले कुछ सालों में इंसानों और जानवरों में संघर्ष का मुद्दा बहुत बड़ा हो गया है. जंगली जानवरों के हमले से जन हानि गंभीर चिंता का विषय बन गया है. चाय और नेचुरल रबर की कीमतों में गिरावट और उच्च लागत के कारण कंपनी गंभीर संकट से गुजर रही है और इसकी वजह से कई संपत्तियां इस खतरे का खामियाजा भुगत रही हैं. वहीं, इडुक्की जिले के मुन्नार में बूढ़े बाघों के हमले के कारण डेयरी फार्मिंग पर बुरा असर पड़ रहा है.
दरअसल, बूढ़े हो चुके बाघ जंगल में शिकार नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में वे डेयरी फार्म पर हमला कर पालतू जानवरों का शिकार करने के लिए हमला कर रहे हैं. मुन्नार के लक्ष्मी मिल्क प्रोड्यूसर कोऑपरेटिव सोसाइटी के अध्यक्ष आई. गुरुस्वामी ने बतया कि एक समय था जब डेयरी फार्मिंग का बिजनेस फल-फूल रहा था और ऊंचाइयों पर था, तब 7,000 से ज्यादा मवेशी पल रहे थे. लेकिन बाघों के हमलों के कारण किसान डेयरी फार्मिंग से दूर हटने लगे, अब मवेशियों की संख्या घटकर आधी से भी कम यानी 3,000 रह गई है. वहीं, दूध का उत्पादन पिछले साल के 5,000 लीटर से नीचे आकर 3,900 लीटर प्रतिदिन पर पहुंच गया है.
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