धान के किसान अपनी फसलों को लेकर काफी चिंतित रहते हैं. सबसे पहले बारिश की मात्रा और फिर इस मौसम में उगने वाले खरपतवार, खाद-उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई, कीट-बीमारी के प्रकोप से बचने के क्या सही उपाय हैं, जिससे धान की अच्छी पैदावार हो सके. इन सभी काम के सही प्रबंधन से धान की फसल से बेहतर उपज ली जा सकती है. इस वर्ष खरीफ सीजन में अब तक 75 फीसदी से अधिक धान की रोपाई और बुआई का काम हो चुका है. कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार चार अगस्त 2023 तक 283 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई और रोपाई हुई है. धान की फसल शुरुआती विकास के अवस्था में है. इस फसल से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए इस समय कुछ अहम कृषि कार्य करना जरूरी है. राष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र कटक ने सुझाव दिया है जिसे अपनाकर आप धान की फसल से बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
राष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र कटक के अनुसार निचली भूमि वाले क्षेत्रों में, जहां धान की सीधी बुआई की गई है और खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवार नाशी का उपयोग नहीं किया गया है, उन खेतों से खरपतवार निकालकर, अर्ध गहरा और गहरे जल क्षेत्रों में 18 किलो यूरिया प्रति एकड़ टॉप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें. जहां वर्षा आधारित उथली और निचली भूमि है, जहां सीधी बुआई की गई है और खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए खरपतवार नाशी का उपयोग नहीं किया गया है, वहा खेतों से खरपतवार निकाल कर 36 किलो यूरिया प्रति एकड़ के हिसाब से टॉप ड्रेसिंग करें.
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अगर धान के खेत में पर्याप्त नमी हो तो रोपित या सीधी बुआई वाले धान खेतों में उर्वरकों की टॉप ड्रेसिंग करें. अन्यथा धान के खेत में उर्वरकों की टॉप ड्रेसिंग को तब तक के लिए स्थगित कर दें जब तक कि पर्याप्त मिट्टी की नमी या तो वर्षा या सिंचाई के पानी से प्राप्त न हो जाए. लंबे समय तक सूखे की स्थिति है और अगर सिंचाई का पानी उपलब्ध है तो धान की फसल में अधिकतम कल्ले निकलने की अवस्था के दौरान मिट्टी को नम बनाए रखने के लिए सिंचाई के पानी की पतली परत खेतों में बनाए रखें. जब खेत की मिट्टी में पर्याप्त नमी न हो तो चावल के खेत में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए खरपतवार नाशी का प्रयोग न करें.
अगर धान की नर्सरी में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण जैसे पीलापन और पत्ती के सिरे का भूरापन दिखाई दे तो समझ लें कि पोषक तत्वों की कमी है. इसके नियंत्रण के लिए यूरिया दो किलोग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में + जिंक सल्फेट एक किलोग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. धान की फसल में खैरा रोग जिंक की कमी के कारण होता है. इसमें पत्तों पर भूरे रंग का धब्बा होता है. इस बीमारी को पहचानना आसान है. इससे पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं और पौधा बौना रह जाता है और छोटा हो जाता है. इस रोग के नियंत्रण के लिए दो किलोग्राम जिंक सल्फेट और एक किलोग्राम बुझे हुए चूने को 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें. यदि बुझा हुआ चूना उपलब्ध न हो तो दो प्रतिशत यूरिया का प्रयोग किया जा सकता है.
धान के खेत में तना छेदक और पत्ता मोड़क बीमारी रोकने के लिए तीन फेरोमोन ट्रैप प्रति एकड़ हिसाब से रखें. जब भी नर कीट प्रति जाल में संख्या चार या पांच तक पहुंच जाए, तो अजाडिरक्टिन 0.15 फीसदी ईसी 800 मिली प्रति एकड़ दर से या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 फीसदी एससी 60 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी की दर से छिड़काव करे. किसान चाहें तो कार्टेप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 10 किग्रा प्रति एकड़ बुरकाव करें.
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जल्द में रोपाई किए गए धान की फसल में थ्रिप्स की समस्या देखी जाती है. अगर थ्रिप्स कीट खेतों में दिख रहे हैं तो नीम आधारित कीटनाशक या थियामेथोक्सम 25 फीसदी डब्ल्यूजी 40 ग्राम प्रति एकड़ दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं.
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