करेला, लौकी, कद्दू, तरबूज, खरबूजा, पेठा, ककड़ी, टिण्डा और खीरा जैसी कद्दूवर्गीय फसलों का उत्पादन भी आसान नहीं है. क्योंकि इनमें बीमारियां बहुत लगती हैं और कीटों का अटैक भी खूब होता है. लेकिन फल मक्खी इनके लिए सबसे खतरनाक है. इसका सही समय पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह फसल को खराब कर देती है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से जुड़े कृषि वैज्ञानिक हनुमान सिंह ने इसके बारे में किसानों को विस्तार से जानकारी दी है, ताकि वो इससे फसल का बचाव कर सकें. सब्जी फसलों पर माहू यानी चेपा का भी अटैक होता है. लाल कद्दू भृंग भी सब्जी फसलों के लिए खतरनाक है.
फिलहाल बात करते हैं फल मक्खी का. जिसका वैज्ञानिक नाम बैक्टरोसेरा क्यूकुरबिटी है. इसकी पहचान यह है कि इसका वयस्क लाल भूरे रंग का होता है और वक्ष पर पीले रंग की मार्किंग होती है. फल मक्खी की मादा 6-7 मिमी आकार की होती है, जबकि नर अपेक्षाकृत छोटा होता है. मादा सफेद सिगार आकार के अंडे, कोमल एवं नरम फलों में 2 से 4 मिमी अंदर घुसकर देती है.
यह फल में छेद करके अंडे देती है, जिससे प्रभावित हिस्सा मुड़कर टेढ़ा हो जाता है. इसका किया गया छेद रोगजनक जैसे कि जीवाणु और कवक के लिए प्रवेश विन्दु का काम करता है. अंडे से मैगट निकलकर फल का गूदा खाती हैं. जिससे छोटे फलों की वृद्धि रुक जाती है और अंत में फल सड़कर डंठल से अलग होकर गिर जाते हैं.
रोगग्रस्त फसलों को नष्ट कर दें. गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें. फल मक्खी प्रतिरोधी किस्मों की बुआई करें. फल मक्खी की निगरानी के लिए फलों के बागों में मिथाइल यूजीनोल ट्रैप और क्यू-ल्योर ट्रैप लगाएं. फसल पर मैलाथियान 50 ईसी का 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.
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सब्जी फसलों में माहू का भी काफी प्रकोप होता है. पहचान यह है कि इस कीट के वयस्क हल्के रंग के होते हैं. कीट की पंख वाली अवस्था में इसका रंग भूरा होता है. ये लगभग 1.25 मिमी लंबे होते हैं. इसके शिशु दिखने में वयस्क के समान, लेकिन आकार में छोटे होते हैं. फसल पकने के बाद पंखदार वयस्क भी दिखाई देते हैं. इनके पंख पारदर्शी होते हैं, जिनमें काली नसें दिखाई पड़ती हैं.
इस कीट की वयस्क और शिशु के दोनों अवस्थाएं पौधों को नुकसान पहुंचाती हैं. कीट पौधों का रस चूसते हैं. इससे पौधा कमजोर हो जाता है और उनका विकास रुक जाता है. लगातार रस चूसने के कारण पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है जो बाद में सूख जाती हैं. इसके अलावा ये एक चिपचिपा पदार्थ निकालते हैं, जिसे हनीड्यू कहते हैं.
इस पदार्थ से पत्तियों में काला कवक बनने की स्थिति बढ़ जाती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा उत्पन्न होती है. इससे बचाव के लिए खरपतवार को नष्ट कर दें. नाइट्रोजन खाद का अधिक प्रयोग न करें. अगर इनका असर है तो इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1 मिली/3 लीटर की दर से छिड़काव करें.
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