अपने पोषक गुणों और वाजिब दाम में मिलने के चलते अमरूद (Guava cultivation) को गरीबों का सेब कहा जाता है. पर, गरीबों के इस सेब के वजूद पर निमेटोड के संक्रमण (Nematode infection) का खतरा है. थाई पिंक और ताइवान पिंक जैसी विदेशी प्रजातियों के साथ ही यह संक्रमण भी आया. यह इतना तेजी से फैलता है कि वर्तमान में अमरूद के करीब आधे बागान इसकी चपेट में आ चुके हैं. निमेटोड संक्रमण से अमरूद के बागानों पर उत्पन्न संकट को केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान की ओर से पिछले दिनों मुख्य सचिव के जरिए योगी सरकार को अवगत कराया जा चुका है. उम्मीद है कि बागवानों के हित से जुड़े इस मामले में सरकार जल्द ही कोई एक्शन लेगी.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) के वैज्ञानिकों द्वारा पिछले पांच वर्षों में किए गए सर्वेक्षण में भी इस संक्रमण के खतरे का जिक्र है. संस्थान के निदेशक डॉ. टी दामोदरन ने इस संक्रमण को अमरूद की फसल के लिए बड़ा संकट बताया है.
निमेटोड के संक्रमण से अमरूद के बागवानों को कई तरह से नुकसान होता है. मसलन संक्रमण के कारण फलों की गुणवत्ता और उपज प्रभावित होती है. साथ ही नियमित अंतराल पर संक्रमण के प्रबंधन के लिए किए जाने वाले खर्च से उत्पादन की लागत बढ़ जाती है.
बागों से निमेटोड संक्रमण को खत्म करना संभव नहीं. सिर्फ इसका प्रबंधन ही एक हद तक संभव है. वह भी मुश्किल से. इसमें फ्लोपायरम का प्रयोग अपेक्षाकृत असरदार पाया गया लेकिन यह महंगा है. साथ ही इसका असर भी मात्र छह माह तक ही रहता है.
मुख्य क्षेत्र में रोपाई से 15 दिन पहले निमेटोड संक्रमित ग्राफ्ट की मिट्टी और जड़ों को फ्लोपायरम 0.05% घोल से उपचारित किया जाना चाहिए. ग्राफ्ट को जितना संभव हो उतना गहरा रोपण किया जाना चाहिए और फ्लोपायरम के 0.05% घोल के 2 लीटर प्रति पौधे की दर पर प्रयोग किया जाना है. अमरूद के बाग की स्थापना के लिए खेत का चयन भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारी मिट्टी निमेटोड के लिए दमनकारी होती है. सबसे अच्छा तरीका यह सुनिश्चित करना है कि नए अमरूद के बाग की स्थापना के लिए चुने गए क्षेत्र में रूट-नॉट निमेटोड की अनुपस्थिति और आईसीएआर फ्यूसिकॉन्ट, सीआईएसएच बैक्टीरियल बायो-एजेंट जैसे जैव-एजेंटों का निरंतर उपयोग किया जाए.
संस्थान के वैज्ञानिको ने सीडियम कैटलीनम और अंतर-विशिष्ट मोले रूटस्टॉक जैसे रूटस्टॉक्स की भी पहचान की है जो निमेटोड के प्रति उच्च स्तर की सहिष्णुता दिखाते हैं. इस रोग के प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक रूटस्टॉक्स के तेजी से गुणन पर गंभीरता से काम कर रहे है. ट्राइकोडर्मा हर्जियानम, पोकोनिया क्लैमाइडोस्पोरिया, पर्प्यूरोसिलियम लिलेसीनम, बैसिलस एमिलोलिकेफेसिएन्स जैसे जैव-नियंत्रक एजेंट भी निमेटोड संक्रमण के प्रबंधन में प्रभावी हैं. पर, बार-बार दोहराने की आवश्यकता होती है. अन्तर शस्यन और जैविक उत्पादों में सूत्रकृमि प्रतिरोधी फसलों का उपयोग मामूली रूप से प्रभावी पाया गया है.
अमरूद की फसल पर संस्थान के रोग विशेषज्ञ डॉ. पीके शुक्ल द्वारा किए गए अध्ययनों से साबित हुआ है कि अमरूद की विदेशी प्रजातियां निमेटोड संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील हैं. जबकि इलाहाबाद सफेदा जैसी पारंपरिक किस्म और स्वदेशी रूप से जारी की गई किस्मों जैसे धवल, ललित, लालिमा, श्वेता आदि में विदेशी किस्मों की तुलना में निमेटोड के प्रति सहिष्णुता अधिक पायी जाती है. बागवानों, किसानों और किचेन गार्डन में लगाने के लिए इन्ही प्रजातियों को प्रोत्साहित किया जाय. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने श्वेता और ललित जैसे अमरूद की किस्मों को संरक्षित किया है. इन प्रजातियों को केंद्र और राज्य सरकारों ने बागवानों के लिए संस्तुत भी किया है.
यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए की इन प्रजातियों की बिक्री केवल उन नर्सरियों से हो जिन्होंने स्रोत संस्थान से प्रौद्योगिकी प्राप्त की है. जो पौध उत्पादक अवैध रूप से इसे बेच रहे हैं, उन पर सख्ती से करवाई की जाय। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के डॉ. प्रभात कुमार के साथ वैज्ञानिकों की टीम ने रोपण सामग्री के साथ निमोटेड के प्रसार से बचने के लिए तकनीक भी तैयार की है.
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