यह खबर आंध्र प्रदेश से है जहां सोयाबीन की राह पर मूंगफली चल पड़ी है. यहां राह का अर्थ एमएसपी से है. जिस तरह सोयाबीन एमएसपी के लिए तरस रहा है, उसी तरह आंध्र प्रदेश में मूंगफली भी तरस रही है. ये हालत तब है जब देश में खाद्य तेलों के भाव आसमान छू रहे हैं.
इस भरी महंगाई में किसान मूंगफली और सोयाबीन के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP के लिए जूझ रहे हैं. आंध्र के कुरनूल इलाके में हालत ये हो गई है कि कम भाव के चलते किसान मूंगफली की खेती छोड़ने लगे हैं. आइए पूरी रिपोर्ट जान लेते हैं.
कुरनूल और नंदयाल जिलों के किसान बेमौसमी बारिश और गिरते बाजार मूल्यों के कारण मूंगफली की खेती से भाग रहे हैं. इन दो जिलों में मूंगफली की खेती पारंपरिक रूप से लगभग एक लाख हेक्टेयर में होती थी, लेकिन इसकी खेती घटकर 40,000-45,000 हेक्टेयर रह गई है, जो इस क्षेत्र की कृषि प्रोफ़ाइल में बदलाव का संकेत है.
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कुरनूल जिला अनंतपुर के बाद राज्य में मूंगफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. जुलाई में कम बारिश के कारण फसल को भारी नुकसान हुआ, जिसके चलते प्रति एकड़ 8-14 बैग की उपज कम हुई.
किसान बीज, खाद, मजदूरी और उपज की ढुलाई सहित बढ़े लागत का हवाला देते हैं, जो बढ़कर 30,000-35,000 रुपये प्रति एकड़ हो गई है. बरसात के मौसम में प्रति एकड़ 10 बैग से अधिक उपज नहीं होने के कारण, किसानों के लिए 5,000-6,000 रुपये प्रति एकड़ का नुकसान अब भारी पड़ रहा है. बाजार की कीमतों में गिरावट ने समस्या को और बढ़ा दिया है.
तीन महीने पहले मूंगफली की कीमत 7,000 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक थी, लेकिन अब कीमतें 5,000-6,000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं. अदोनी के एक किसान ए रंगप्पा ने 'डेक्कन क्रॉनिकल' से कहा, "कीमतों में उतार-चढ़ाव और खेती से जुड़ी समस्याओं के कारण हमें लगातार नुकसान हो रहा है. इन नुकसान और परेशानी को देखते हुए हम धीरे-धीरे दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं."
कुरनूल जिले में चना, सूरजमुखी, चावल, बाजरा, कपास और प्याज सहित प्रमुख फसलों की खेती के लिए "परती-चना" फसल सिस्टम अपनाया जाता है. जबकि धान, कपास और अरहर की फसलें बरसात के मौसम में प्रमुख होती हैं, चना, ज्वार और सूरजमुखी को बरसात के बाद की फसलों के रूप में तरजीह दी जाती है.
मूंगफली एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है, जो भारत के कुल तिलहन उत्पादन में 35.29 प्रतिशत का योगदान देती है. हालांकि, पिछले दो दशकों में इसकी खेती में गिरावट आई है. इस अवधि के दौरान, राष्ट्रीय रकबा 83 लाख हेक्टेयर से घटकर 49.71 लाख हेक्टेयर रह गया.
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हरित क्रांति के दौरान तिलहन उत्पादन को बढ़ाने के लिए कुरनूल जैसे इलाके में मूंगफली की खेती शुरू की गई थी. यहां 2021-22 में सभी फसलों में लगभग 95 प्रतिशत इसकी हिस्सेदारी होती थी जो 2022-23 में घटकर 60 प्रतिशत और 2023-24 में 45 प्रतिशत रह गई. अगर यही ट्रेंड जारी रहता है, तो भविष्य में इस क्षेत्र में मूंगफली की खेती गायब हो सकती है.
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