हिमालय की वादियों में पाए जाने वाले रुद्राक्ष के पौधों को बिहार के बेतिया जिले में रहने वाले किसान विजय कुमार पांडेय अपने खेतों में उगा रहे हैं. उनका कहना है कि एक पेड़ से एक क्विंटल तक रुद्राक्ष निकलता है. जिन्हें यह किसान लोगों को मुफ्त में बांट देता है. करीब चार साल से ये सिलसिला जारी है. किसान ने अगले साल में करीब पांच सौ से लेकर एक हजार तक रुद्राक्ष के पेड़ तैयार करने का लक्ष्य रखा है. यहां पंचमुखी से लेकर एकमुखी रुद्राक्ष तक के पौधे लगे हैं. बिहार में रुद्राक्ष उगना अपने आप में कमाल की बात है. अब इस किसान की देखादेखी दूसरे किसान भी यही काम करेंगे.
दरअसल, यह किसान लखनऊ केंद्रीय औषधीय अनुसंधान केंद्र से छह सात साल पहले पंचमुखी रुद्राक्ष का पौधा ले आया था. जबकि, एकमुखी रुद्राक्ष का पौधा केंद्रीय वन पर्यावरण अनुसंधान केंद्र देहरादून से लाया था. अभी पंचमुखी रुद्राक्ष के दो पेड़ तैयार हो गए हैं, जिसमे एक पेड़ से एक क्विंटल रुद्राक्ष निकलता है. जिन्हें किसान लोगों को मुफ्त में बांट देता है. पांडेय का कहना है कि मंदिरों से लेकर साधु या जो लोग भी आते हैं उन्हें बिना पैसों के रुद्राक्ष देता हूं.
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किसान विजय कुमार पांडेय ने बताया कि लखनऊ के वैज्ञानिकों ने हमारे इलाके के लिए इसे उपयुक्त नहीं बताया था,लेकिन मैंने प्रयोग के तौर पर इसे लगाया जो कि सफल रहा. उत्तराखंड से हमारे इलाके का क्लाइमेट मिलता है और ये पौधा हिमालय क्षेत्र में ही होता है. बगहा से लेकर किशनगंज तक का टेंपरेचर इसके लिए अनुकूल है.
पांडेय ने बताया कि लखनऊ के केंद्रीय औषधीय अनुसंधान केंद्र से सात साल पहले पंचमुखी रुद्राक्ष का पौधा लाया था और एकमुखी रुद्राक्ष का पौधा केंद्रीय वन पर्यावरण अनुसंधान केंद्र देहरादून से लाया था. तब लखनऊ के वैज्ञानिकों ने हमारे इलाके के लिए इसे उपयुक्त नहीं बताया था, लेकिन हमने प्रयोग के तौर पर इसे लगाया जो सफल रहा और आज के समय में पंचमुखी रुद्राक्ष के दो पेड़ तैयार हो गए हैं हालाकि,एकमुखी रुद्राक्ष दो सालों के बाद फलना शुरू होंगे, लेकिन पंचमुखी रुद्राक्ष पिछले चार- पांच सालों से फलना शुरू हो गए हैं. एक पेड़ से एक क्विंटल रुद्राक्ष निकलता है.
किसान पांडेय का कहना है कि वैसे रुद्राक्ष के पौधे हिमालय के रेंज में ही पाए जाते हैं. उत्तराखंड से लेकर उतरी बिहार का इलाका नेपाल से सटे होने के कारण हिमालय के बिल्कुल पास है. लिहाजा,उत्तराखंड के क्लाइमेट से इस इलाके का टेंपरेचर काफी मिलता है. इस तरह का टेंपरेचर पूरे बिहार में नहीं मिलकर केवल बगहा से लेकर किशनगंज तक के इलाके में ही मिलता हैं, क्योंकि 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक के टेंपरेचर में इसके फूल झड़ जाते हैं और रुद्राक्ष नहीं निकल पाता है. इसलिए,चंपारण का इलाका इसके लिए उपयुक्त है.
अब तक यह किसान सैकड़ों लोगों को मुफ्त में रुद्राक्ष बांट चुका है. इन पेड़ों से कई रुद्राक्ष के पेड़ तैयार कर ये मंदिरों में दे चुके हैं. रुद्राक्ष के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए इन्होंने करीब एक हजार रुद्राक्ष के पेड़ों को तैयार करने का लक्ष्य रखा है. रुद्राक्ष की मांग और उपलब्धता में काफी अंतर है लिहाजा ये इसे और बड़े स्तर पर उगाने की तैयारी में हैं. (रिपोर्ट/रमेंद्र कुमार गौतम)
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