देश में खरीफ फसलों की बुवाई का समय शुरू हो चुका है और इसी के साथ दलहनी फसलों में अरहर (तुअर) की बुवाई भी तेजी से हो रही है. किसानों के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि अरहर की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी से लेकर बीज चयन, बीजोपचार, उर्वरक प्रबंधन और सिंचाई व्यवस्था तक हर पहलू पर सही ढंग से काम किया जाए. विशेषज्ञों के अनुसार अरहर की खेती के लिए जल निकास की व्यवस्था बेहद अहम है क्योंकि अगर खेत में पानी रुकता है तो अरहर की फसल में रोग और नुकसान की संभावना बढ़ जाती है. साथ ही, इसकी बुवाई उसी भूमि में करें जहां मिट्टी का पीएच 5.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए.
अरहर की खेती में नई प्रजातियों का चयन उत्पादन बढ़ाने का सबसे बड़ा साधन है. वर्ष 2017 में पूसा संस्थान से पूसा अरहर-16 किस्म जारी की गई है, जो मात्र 110-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस किस्म की औसत उपज 15-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है. इसके अलावा अन्य प्रमुख प्रजातियों में पूसा-991, पूसा-992, पूसा-2001, पूसा-2002 का भी अच्छा प्रदर्शन है. वहीं, लंबी अवधि वाली किस्मों में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मालवीय अरहर-13 और मालवीय अरहर-6 और नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय की नरेंद्र अरहर-1 और नरेंद्र अरहर-2 किस्में भी लोकप्रिय हैं.
इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट) के वैज्ञानिकों ने इतिहास रचते हुए भारत की पहली गर्मी सहन करने वाली अरहर की किस्म ‘आईसीपीवी 25444’ विकसित की है. यह विशेष किस्म भीषण गर्मी, यानी 45 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन करने में सक्षम है. खास बात यह है कि यह मात्र 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जो देश के किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.
इक्रीसेट द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, यह किस्म कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना में किए गए सफल परीक्षणों में दो टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन दे चुकी है. यह अरहर किस्म न केवल भारत, बल्कि दुनिया की पहली गर्मी-रोधी अरहर है. जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच यह फसल किसानों के लिए राहत लेकर आई है और भीषण गर्मी में भी बेहतर उत्पादन देने की क्षमता रखती है. यह किस्म भारतीय किसानों को जलवायु संकट से निपटने और फसल उत्पादकता बढ़ाने में मददगार साबित होगी.
फसल की अच्छी पैदावार के लिए प्रमाणित और क्वालिटी बीज का ही उपयोग करें. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालय से बीज प्राप्त कर सकते हैं. बीज बोने से पहले बीजोपचार अवश्य करें. इसके लिए प्रति किलोग्राम बीज में 2-2.5 ग्राम कार्बेंडाजिम में मिलाकर उपचार करें. इसके अलावा राइजोबियम कल्चर 200 ग्राम/10 किलोग्राम बीज के हिसाब से लगाएं. इसे आधे लीटर गुनगुने पानी में चिपचिपा पदार्थ (गोंद) मिलाकर ठंडा कर लें, फिर उसमें कल्चर डालें और बीजों को इस मिश्रण से अच्छी तरह लेपित कर छायादार स्थान पर सुखाकर बुवाई करें.
खेत की पहली गहरी जुताई मिट्टी पलट हल या डबल डिस्क से करें. इसके बाद 2-3 बार कल्टीवेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लें. अंत में रोटावेटर से सतह समतल कर लें. अरहर की खेती में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40-60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेंटीमीटर रखें. बीज की गहराई 4-5 सेंटीमीटर से अधिक न रखें. बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना जरूरी है, जिससे अंकुरण बेहतर हो सके. बरसात के मौसम में अरहर की बुवाई मेड़ पर करने से जलभराव की समस्या नहीं आती और फसल सुरक्षित रहती है.
अरहर दलहनी फसल है, लेकिन इसकी अच्छी पैदावार के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की जरूरत होती है. सामान्यतः 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 50 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. अगर डीएपी का उपयोग कर रहे हैं, तो अलग से नाइट्रोजन देने की जरूरतनहीं होती. जिन खेतों में पोटाश की कमी हो, वहां 20-25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दे सकते हैं. मगर उर्वरक का प्रयोग करने से पहले मृदा परीक्षण जरूर कराएं. इससे पता चलेगा कि किस पोषक तत्व की खेत में कितनी जरूरत है. बरसात के मौसम में अरहर को सिंचाई की जरूरत कम होती है. यदि बुवाई के 20-25 दिन बाद बारिश न हो तो हल्की सिंचाई करें.
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