
चावल दुनिया की सबसे अहम खाद्य फसलों में से एक है, जो दुनिया के 50 परसेंट से अधिक आबादी की भोजन जरूरतों को पूरा करता है. भारत में 464 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती होती है. पारंपरिक तरीके से धान की खेती में नर्सरी पौधों की मुख्य खेत में रोपाई की जाती है, जो पानी और श्रम की अधिक मांग करती है. मजदूरों की कमी, भूजल की गिरावट और जल संकट के कारण धान की खेती में समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. कृषि विशेषज्ञों का सुझाव है कि किसानों को रोपाई तकनीक के बजाय सीधी बुवाई (डीएसआर) तकनीक अपनानी चाहिए. सीधी बोई गई धान की फसल 7-14 दिन जल्दी पकती है, रबी की फसल की समय पर बुवाई की जा सकती है. सीधी बुवाई (डीएसआर) तकनीक से पानी और श्रम की बचत होती है और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे यह तकनीक धान की खेती के लिए एक बेहतर विकल्प बन रही है.
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, रोपाई विधि से 1 किलो धान पैदा करने में 5000 लीटर तक पानी की जरूरत होती है. यह फसल पानी की अत्यधिक मांग के कारण जानी जाती है, जबकि सिंचाई के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा कम हो रही है. ताजा पानी का 70 परसेंट कृषि सिंचाई के लिए उपयोग होता है और एशिया में यह आंकड़ा 90 परसेंट तक पहुंचता है. एशिया में कुल सिंचाई जल का लगभग 50 परसेंट और दुनिया के कुल ताजे पानी का 24-30 परसेंट धान की खेती में उपयोग होता है. ICAR के मुताबिक, भारत में 83 परसेंट जल उपयोग सिंचाई के लिए होता है और इसका 40 परसेंट धान की खेती में जाता है.
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बढ़ती जनसंख्या, जलस्तर में गिरावट, गुणवत्ता में गिरावट, अप्रभावी सिंचाई प्रणालियों और गैर-कृषि क्षेत्रों के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण कृषि के लिए पानी की हिस्सेदारी तेजी से घट रही है. 1950 और 2005 के बीच प्रमुख एशियाई देशों में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में 34-76 परसेंट की कमी आई है और 2050 तक 18-88 परसेंट की कमी होने की उम्मीद है. भारत में, 1951 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 5177 घन मीटर थी, जो 2021 में 1486 घन मीटर और 2031 तक 1367 घन मीटर होने का अनुमान है.
धान की पारंपरिक रोपाई पद्धति से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है. इसके अलावा, यह तकनीक बहुत अधिक ऊर्जा का उपयोग करती है, जिससे धान की खेती कम लाभकारी बनती जा रही है. इसलिए, कृषि विशेषज्ञ कम लागत, कम पानी और कम श्रम से धान की खेती करने के लिए सीधी बुवाई (डीएसआर) तकनीक का सुझाव दे रहे हैं.
नर्सरी से रोपाई की बजाय सीधी बुवाई में धान के बीजों की बुवाई सीधे मुख्य खेत में की जाती है. यह तकनीक अधिक उत्पादक, पर्यावरण के अनुकूल और आर्थिक रूप से व्यावहारिक है. इसे दो तरह से किया जाता है.
इस विधि में खेत की तैयारी के लिए शून्य जुताई या न्यूनतम जुताई करके पावर चालित सीड ड्रिल से धान की सीधी बुवाई की जाती है. यह विधि बीज और समय की बचत करती है और खरपतवार नियंत्रण भी आसान बनाती है.
इस विधि में खेत में पडलिंग के बाद अंकुरित बीजों की बुवाई की जाती है. जब अंकुरित बीजों को मिट्टी की सतह पर बोया जाता है तो इसे अवायवीय सीधी-गीली बुवाई कहा जाता है. इसके तहत बीजों की बुवाई छिड़काव द्वारा या पंक्तियों में बुवाई के लिए ड्रम सीडर या फ़रो ओपनर और क्लोज़र हल्के सीडर का उपयोग किया जाता है.
बेहतर उपज पाने के लिए किस्मों का चयन अहम है. अगर बेहतर सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो तो हल्की बनावट वाली बलुई दोमट मिट्टी में 100-135 दिन वाली प्रजातियों का चयन करना चाहिए, जबकि भारी बनावट वाली मिट्टी के लिए 135-165 दिन वाली मध्यम से देर तक पकी हुई किस्में उगाई जानी चाहिए.
मॉनसूनी बारिश का उपयोग करने के लिए, डीएसआर की बुवाई का समय मॉनसून की शुरुआत से लगभग 10-15 दिनों पहले है. धान की बुवाई का सर्वोत्तम समय मई का अंतिम सप्ताह बेहतर माना जाता है क्योकि पंजाब में 1 से 15 जूलाई तक मॉनसून आता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में 20 जून से लेकर 1 जूलाई तक आता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में 10 जून से 15 जून तक और बंगाल में 1 जून से 15 जून तक सीधी बुवाई की जाती है.
श्रम की बचत: गीली डीएसआर तकनीक में 46 परसेंट और सूखी सीधी बुवाई में 60 परसेंट श्रम की बचत होती है. रोपाई जैसे श्रम कार्य से मुक्ति मिलती है और बुवाई निर्धारित समय सीमा में और कम समय में की जा सकती है.
पानी की बचत: सीधी बुवाई से 12-35 परसेंट पानी की बचत होती है. पारंपरिक रोपाई की तुलना में सीधी बुवाई में पानी की मांग कम होती है, जिससे जल संकट से निपटने में मदद मिलती है.
पर्यावरण पर प्रभाव: विभिन्न प्रकार के डीएसआर में मीथेन उत्सर्जन को 6-92 परसेंट तक कम किया जा सकता है. इससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा कम होती है.
फसल की समय पर परिपक्वता: सीधी बोई गई धान की फसल 7-14 दिन जल्दी पकती है, जिससे आगामी फसल की समय पर बुवाई की जा सकती है. यह किसानों के लिए अतिरिक्त लाभदायक होता है क्योंकि इससे फसल चक्र को बनाए रखना आसान हो जाता है.
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सीधी बुवाई (DSR) तकनीक से पानी और श्रम की बचत होती है और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे यह धान की खेती के लिए एक उपयुक्त विकल्प बनता है. किसानों के लिए यह तकनीक अधिक उत्पादकता, कम लागत और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने का एक प्रभावी तरीका साबित हो सकती है.
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