दलहनी फसलों की खेती से बढ़ जाती है मिट्टी की उपजाऊ क्षमता, जानें कैसे?

दलहनी फसलों की खेती से बढ़ जाती है मिट्टी की उपजाऊ क्षमता, जानें कैसे?

दलहन या दलहनी फसलों के बारे में सभी जानते हैं. जिन फसलों या अन्न से दालें बनती हैं उसे दलहनी फसलें कहते हैं. इन फसलों की बुआई रबी और खरीफ दोनों मौसमों में की जाती है.

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दलहनी फसलों की खेती से बढ़ जाती है मिट्टी की उपजाऊ क्षमता, जानें कैसे?दलहनी फसलों की खेती

दालें आमतौर पर अपने पौष्टिक गुणों के लिए जानी जाती हैं. दालों में फाइबर, विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट और खनिज उचित मात्रा में पाए जाते हैं. दाल खाने से पाचन क्रिया संतुलित रहती है साथ ही शरीर की आंतरिक कमजोरी दूर करती है. डॉक्टर अक्सर बीमारियों में दाल का पानी पीने की सलाह देते हैं. शाकाहारी लोगों के लिए दालें प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत मानी जाती हैं. इसके साथ-साथ दालों की खेती करना भी किसानों के लिए फायदे का सौदा है.

दाल लगभग हर घर में हर रोज पकाए जाने वाला आहार है, इसलिए अच्छी किस्म के दालों की बाजार में मांग हमेशा बनी रहती है. जिससे किसान दाल की खेती करके मुनाफा भी कमा सकते हैं. इन सबके साथ-साथ दालों की खेती प्रकृति और पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होती है. ऐसे में आइए दालों के बारे में विस्तार जानते हैं-

दलहनी फसलें

दलहन या दलहनी फसलों के बारे में सभी जानते हैं. जिन फसलों या अन्न से दालें बनती हैं उसे दलहनी फसलें कहते हैं. इन फसलों की बुआई रबी और खरीफ दोनों मौसमों में की जाती है. देश में चना, मसूर, उड़द, मूंग, अरहर, राजमा, जैसी बहुत सी फसलें दलहनी फसलें होती हैं.

दलहनी फसलों का पर्यावरण में योगदान

दलहनी फसलें अच्छी उपज के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होती हैं. इनकी खेती से मिट्टी की निचली सतह में नाइट्रोजन के स्तर में वृद्धि होती है, क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया पाए जाते हैं. इन फसलों की खेती करने से अनावश्यक रुप से खेत में उगने वाले खरपतवार की मात्रा में भी कमी आती है. इन फसलों में सिंचाई की भी अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती, 2- 3 बार की सिंचाई भी पर्याप्त होती है. इसके साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने में मदद मिलती है.

इसके अलावा दलहनी फसलों में अधिक उर्वरक और कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं होती. दरअसल, दलहनी फसलों की जड़ों में ग्लोमेलिन प्रोटीन पाया जाता है जो मिट्टी के कणों को जोड़े रखता है. जिसके कारण मिट्टी का क्षरण नहीं होता, जल संचयन क्षमता बढ़ती है और मिट्टी का पीएच मान संतुलित रहता है.

फसल चक्र को बढ़ावा मिलता है

लगातार अनाज प्राप्त करने के लिए एक ही तरह की फसलों की बुआई करते रहने से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में कमी आती है, उनमें लगने वाले रोग और कीटों का प्रभाव अधिक रहता है. लेकिन दलहनी फसलों की बुआई करने से खेतों की बुआई में परिवर्तन आता है और फसल चक्र लागू होता है. 

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