वसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय, परभणी के नांदेड़ स्थित कपास अनुसंधान केंद्र ने कपास की तीन नई किस्में विकसित की हैं. अब इन किस्मों से किसानों को ज्यादा फायदा होगा. किसानों के लिए बीज की लागत कम करने में मदद मिलेगी. उत्पादन अच्छा होगा. इन किस्मों को शुष्क भूमि वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है. यह बीटी किस्म है. बीटी कॉटन के बीज के लिए किसानों को निजी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता था. जिससे उन्हें सीड पर ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता था. अब नई किस्में किसानों को एक विकल्प उपलब्ध कराएगी. यूनिवर्सिटी की ओर से यह दावा किया गया है.
नांदेड़ स्थित कपास अनुसंधान केंद्र ने पिछले छह वर्ष के शोध के बाद कपास की तीन बीटी किस्में तैयार की हैं. इनमें एनएच 1901 बीटी, एनएच 1902 बीटी और एनएच 1904 बीटी शामिल हैं. इन किस्मों को हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित केंद्रीय किस्म चयन समिति की बैठक में मंजूरी दी गई है. इनकी रोपण लागत संकर किस्मों की तुलना में कम होने का दावा किया गया है. दावा यह भी है कि इनके बीजों का तीन साल तक उपयोग किया जा सकता है.
इनमें खादों का इस्तेमाल भी कम होगा. इसलिए, हालांकि किसानों की ओर से कपास की ऐसी किस्मों की मांग है. लेकिन किस्मों की अनुपलब्धता के कारण, राज्य में सबसे अधिक संकर कपास की खेती की गई है. इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ही नई किस्में तैयार की गई हैं. महाराष्ट्र प्रमुख कपास उत्पादक है. यहां बड़े पैमाने पर किसान कॉटन की खेती पर निर्भर हैं. ये तीन नई किस्में महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश के लिए मुफीद हैं.
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दावा है कि परभणी कृषि विश्वविद्यालय कपास की सीधी किस्मों को बीटी तकनीक में परिवर्तित करने वाला राज्य का पहला कृषि विश्वविद्यालय बन गया है. इससे पहले यह प्रयोग नागपुर के केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र ने किया था. यह किस्म अब किसानों को आने वाले वर्ष में खेती के लिए उपलब्ध होगी. वहीं परभणी के महेबूब बाग कपास अनुसंधान केंद्र ने स्वदेशी कपास की एक सीधी किस्म 'पीए 833' विकसित की है. जो दक्षिण भारत के लिए उपयुक्त है.
कपास की इन तीन नई किस्मों में संकर वैराइटी की तुलना में कम रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है. इस किस्म में रस चूसने वाले कीट, जीवाणु झुलसा रोग तथा पत्ती धब्बा रोगों नहीं लगता. यह इन रोगों के प्रति सहनशील है. इस किस्म की कपास की उपज 35 से 37 प्रतिशत है. धागों की लंबाई मध्यम है. मजबूती और टिकाऊपन भी अच्छा है. यूनिवर्सिटी का दावा है कि यह किस्म सघन खेती के लिए भी अच्छी है.
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